अपने आसपास जमे चेहरों को देख,
न जाने कितनी बार ....
कई हिस्सों में विभक्त हुई हूँ -
अन्तरिक्ष में डूबते , उबरते ...
किसी मज़बूत सतह की खोज में -
कई बार देखा है एक दानव ...
रस्सियों में जकड़ा हुआ ....
फिर उसने मुझे करीब से देखकर -
दे पटका है किसी मज़बूत सतह पर -
और में
एक मज़बूत सतह पाकर ..
पागलोंसी अपने हाथ पैर -
इकठ्ठा करती फिरी हूँ...
...अपने आसपास जमे चेहरों को देख
न जाने कितनी बार ..
कई हिस्सों में विभक्त हुई हूँ!!!!!!!
न जाने कितनी बार ....
कई हिस्सों में विभक्त हुई हूँ -
अन्तरिक्ष में डूबते , उबरते ...
किसी मज़बूत सतह की खोज में -
कई बार देखा है एक दानव ...
रस्सियों में जकड़ा हुआ ....
फिर उसने मुझे करीब से देखकर -
दे पटका है किसी मज़बूत सतह पर -
और में
एक मज़बूत सतह पाकर ..
पागलोंसी अपने हाथ पैर -
इकठ्ठा करती फिरी हूँ...
...अपने आसपास जमे चेहरों को देख
न जाने कितनी बार ..
कई हिस्सों में विभक्त हुई हूँ!!!!!!!
वाह!...बहुत ही बढ़िया।
ReplyDeleteसादर
वाह!!!!!!!!बहुत अच्छी प्रस्तुति,इस सुंदर रचना के लिए बधाई,...
ReplyDeleteMY NEW POST ...काव्यान्जलि ...होली में...
...अपने आसपास जमे चेहरों को देख
ReplyDeleteन जाने कितनी बार ..
कई हिस्सों में विभक्त हुई हूँ……………और फिर जुडी हूँ विभक्त होने के लिये
सरस जी, बहुत ही अद्भुत अभिव्यक्ति है आपकी ... पता नहि कितनी ही बार, कितने हिस्सो में विभक्त होते हैं हुं !!
ReplyDeleteजितने हिस्से , उतने अनुभव ...
ReplyDeleteइस सुंदर रचना के लिए बधाई,"कई हिस्सों में विभक्त हुई हूँ……………और फिर जुडी हूँ विभक्त होने के लिये"
ReplyDeletewelcome on MY NEW POST "MAAN"
विभक्त होना और फिर जुड़ना ... गहन अभिव्यक्ति
ReplyDeleteवाह ......बेहतरीन और शानदार.....बहुत ही अच्छी लगी पोस्ट.....हैट्स ऑफ इसके लिए ।
ReplyDeleteवाह!!!सुन्दर भाव...
ReplyDeleteसरस जी आपकी बिटिया बहुत प्यारा लिखती हैं..हमने बेटे को पढवाई उनकी रचना...मेरा स्नेह उसको दीजियेगा.
सादर.
बहुत बहुत धन्यववाद विद्याजी !
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