Thursday, March 27, 2014

ख़्वाब -






नीलाभवर्ण बादलों में छिपी बूँदें 
वे ख़्वाब हैं 
जो देखे थे हमने 
कभी झील के किनारे उस बेंच पर 
कभी बारिश में ठिठुरते हुए 
तो कभी 
तुम्हारी छूटती ट्रेन को दौड़कर पकड़ते हुए 

सोचा न था कभी 
वाष्प बन 
वह हो जायेंगे दूर 
हमारी पहुँच के परे 

लेकिन 
संवेदनाओं की नमी
उन्हें दूर न रख सकी 
अब्र कणों से फिर बिछ गए  
चहुँ ओर......


Monday, March 3, 2014

शापित



सूरज उससे अनभिज्ञ है
किरणें अनजान !
ख़ौफ़ज़दा रहती है वह
शाम के धुंधलके से -
और रात लाती है फरमान !
चल तेरे मरना का वक़्त आ गया

बंद कर देती  है सारी
ख्वाइशें , सपने , यादें
और रख देती है वह संदूकची
उसी आले पर .....
जड़ लेती है चेहरे पर हंसी -
पोत लेती है रंग रोगन -
और बन जाती है नुमाइश ...

हसरतों पर कोई पाबंदी नहीं
जितना चाहे चुग्गा डाल दे
घेरे रहती हैं उसे -
पर पालती नहीं उन्हें
लहू लुहान होने के डर से
और नामुराद आंसू-
मूँह छिपाये फिरते हैं

हंसी उसका वस्त्र है
और उपहास उसकी नियति
और रिश्ते....!
एक मृगमरीचिका -
जिसमें केवल आस है
यहाँ लोग रिश्ते कायम तो करते हैं
निभाते नहीं
सदियों से ब्रह्मकमल सी खिलती आयी है
सुबह होते ही ...मुरझा जाने के लिए ....