बगुलों के पंखों पर बैठी वह -
चुपके से घर आयी -
आंगन के नीम के पत्तों पर -
एक स्मित हास सी छाई..
चंदा से छिटकी ,
रूठके वह,
जब सिरहाने आ बैठी-
तो बीती यादें बेला बन
हर सू आँगन में महकीं
चंदा ने मनुहार कर ..
फिर उसको पास बुलाया -
पौ फटते ही ...फिर चांदनी को अपने पास ही पाया...
चुपके से घर आयी -
आंगन के नीम के पत्तों पर -
एक स्मित हास सी छाई..
चंदा से छिटकी ,
रूठके वह,
जब सिरहाने आ बैठी-
तो बीती यादें बेला बन
हर सू आँगन में महकीं
चंदा ने मनुहार कर ..
फिर उसको पास बुलाया -
पौ फटते ही ...फिर चांदनी को अपने पास ही पाया...
चाँदनी का सुंदर वर्णन....
ReplyDeletewaah...
ReplyDeleteadbhut..
ReplyDeleteबहुत बहतरीन प्रस्तुति,इस सुंदर रचना के लिए बधाई,...
ReplyDeleteMY NEW POST ...काव्यान्जलि ...होली में...
bahut pyaari rachna hai saras ji
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