Friday, March 29, 2013

परिभाषाएं...( ३)




रिश्ते

वह विश्वास !
जो अदम्य है ..
अगाध है ...
अद्भुत है ...
जो उस खिलखिलाते बच्चे में
जिसे आसमान में उछाला है ,
लोकने के लिए ....!!

वह लक्ष्मण रेखा
जो तै करती है सीमाएं
आचरण की ...
व्यवहार की...
और उनसे जुड़े सही गलत की ....

वह बोझ ..!
जिसे कभी चाहकर....
कभी मजबूरी में ...
सहना है
खुशी....
और कड़वाहटओं के बीच...!!

वह सौगातें ...!
जो धरोहर सी....
महफूज़ रखते हैं कभी ..
और कभी...
कूड़े के ढेर पर छोड़ आते हैं ....!!!

नाज़ुक से ...
कभी कांच से ...
रेशम के धागे से कभी ...
पर बला की कूवत 
संजोये रहते हैं ...!!!

Wednesday, March 27, 2013

परिभाषाएं - (२ )




तारे

वह तिलिस्म -
जो सारी दूरी मिटा देते हैं -
धरती और आकाश के बीच !

वह रहनुमा -
जो भटके हुओं की होते हैं -
आखरी उम्मीद !

वह अपने -
जो आशिश्ते हैं -
अपने से दूर अपनों को !

Tuesday, March 19, 2013

परिभाषाएं - (१ )




चाँद -

सपनों की वह दुनिया
जहाँ कहानियाँ बुनी जाती हैं  -
और कते हुए सूत के छोर से बंधी
हम तक पहुँच जाती हैं ...

वह हमदर्द !
जो हर तड़प से वाकिफ़ है
जो हर उस हिचकी की वजह जानता है
जो विरह के रुदन से उठती है .....

वह क़ासिद !
जिससे सबको उम्मीद है
की हर हाल में , मेरा पैगाम
वह माहि तक पहुंचा ही देगा .....

वह दाता !
जिससे हर सुहागन
कुछ साल उधार माँगती है
कि उसका सुहाग बना रहे .....

वह दानवीर !
जो देता है , देता जाता है
इस दर्जा कि खुद रीता हो जाता है
लेकिन दुआओं के असर से फिर बढ़ जाता है
जो एवज में मिलतीं हैं उसे ....

Sunday, March 10, 2013

श्रद्धांजलि






१० मार्च...आज पापा का जन्म दिन है आज से ४ साल पहले पापा कैंसर से लड़ते हुए  २१ जून को हमें छोड़ कर चले गए . उनकी चौथी पुण्यतिथि पर मैंने अपने ब्लॉग पर एक पोस्ट डाली थी जो आज आप सबके साथ शेयर करना चाहती हूँ ......
http://merehissekidhoop-saras.blogspot.in/2012/06/blog-post_1410.html

यह किताब पापा का सपना थी ...१० वर्ष के अथक शोध के बाद उन्होंने इस काव्य नाट्य की रचना की ...वे चाहते थे यह किताब सब तक पहुंचे ...लेकिन उनका यह सपना उनके जीते जी पूरा न हो सका .....उनके सपने को पूरा करने का यह बीड़ा मैंने उठाया और आज यह किताब

 http://www.infibeam.com/Books/agyaat-raavan-shabd-kumar/9788188216826.html
 और
http://www.flipkart.com/search/a/booksquery=agyaat+raavan&vertical=books&dd=0&autosuggest%5Bas%5D=off&autosuggest%5Bas-submittype%5D=entered&autosuggest%5Bas-grouprank%5D=0&autosuggest%5Bas-overallrank%5D=0&autosuggest%5Borig-query%5D=&autosuggest%5Bas-shown%5D=off&Search= &otracker=start&_r=XCS_bwZ_ge8x3giVCX_5fw--&_l=MHzwajeMCXBPHY1KaGPeZQ--&ref=2188d43d-ed74-492c-b270-ffe62252495f&selmitem=Books&ab_as_bucket=queries-fallback

 पर उपलब्ध है .......मुझे ख़ुशी है की पापा का यह सपना पूरा हुआ ....हम सबकी तरफसे पापा को यही श्रद्धांजलि है .....

Thursday, March 7, 2013

मैं नारी हूँ .....




मुझे गर्व है की मैं एक औरत हूँ ....
अपने घर की धुरी ....

दिन की पहली घंटी आवाहन करती है मेरा -
मेहरी आयी है ...
"अरे सुनती हो ...चाय ले आओ "
पतिदेव की बेड टी ..
"बहू नाश्ता ..ठीक ८  बजकर २० मिनिट पर चाहिए "
"माँ...टिफ़िन...स्कूल को देर हो रही है "
"अरे सुनो ऑफिस का समय हो रहा है "
"बीबीजी ...दूध ले लीजिये .."
"सब्जीईईइ........."
सब्ज़ीवाले की पुकार !
इस बीच थोड़े थोड़े अंतराल पर बजती टेलेफोन की घंटी ..

"बहू खाना तैयार है ....?"
"माँ भूख लगी "....स्कूल से लौटे बच्चे
"क्यों चाय नहीं पिलाओगी "
...दफ्तर से लौटे पतिदेव

"रात के खाने में क्या है "
"बहू खाना लगाओ "
"सुनो थोड़ी देर मेरे पास भी बैठ जाओ "
"माँ भूख लगी है "
चौका समेटा-
दिन ख़त्म...!!!

१० हाथ हैं मेरे ....
क्या यह पुरुषों के लिए संभव है ....?
तभी तो कहती हूँ
अपने घर की धुरी हूँ मैं ...!!!!!

प.स.  बीमार पड़ने की तो कहीं गुंजाइश ही नहीं.....!!!!!!!



HAPPY WOMEN'S DAY...:) :) :)

Monday, March 4, 2013

....बोझ




अपने दर्द, अपनी तकलीफें
छिपाने की तुम्हारी हर कोशिश
नाकाम हो जाती है -
जब सोते हुए -
तुम्हारे धूप से झुलसे
माथे की सिलवटों के बीच
छिपी श्वेत गहरायी लकीरें पढ़ती हूँ ...
उस शांत नीरव चेहरे से
रिसती थकान
तुम्हारी तकलीफें  ...
तुम्हारे बोझ को मेरे सामने
उघाड़ देती हैं ....

कितना सहते हो घर से बाहर !
और ऐसे में
जब अनायास ही
तुम्हारी खीज पर बिफर पड़ती हूँ -
तब!
नहीं छिप पाता वह तुम्हारा
टूटकर बिखरना !

तुम मुझसे सिर्फ
सुकून ही तो मांगते हो -
दुनिया से मिले बोझों को
कुछ देर उतारना चाहते हो ...
मेरी गोद में सर रख -
हलके होना चाहते हो !

और मैं...
तुम्हारे तेवर ...
तुम्हारी झुंझलाहट के एवज में -
छीन लेती हूँ -
वह छोटासा सुख !
और पोस्ती हूँ 'अपने' अहम् को !!!