मुझे गर्व है की मैं एक औरत हूँ ....
अपने घर की धुरी ....
दिन की पहली घंटी आवाहन करती है मेरा -
मेहरी आयी है ...
"अरे सुनती हो ...चाय ले आओ "
पतिदेव की बेड टी ..
"बहू नाश्ता ..ठीक ८ बजकर २० मिनिट पर चाहिए "
"माँ...टिफ़िन...स्कूल को देर हो रही है "
"अरे सुनो ऑफिस का समय हो रहा है "
"बीबीजी ...दूध ले लीजिये .."
"सब्जीईईइ........."
सब्ज़ीवाले की पुकार !
इस बीच थोड़े थोड़े अंतराल पर बजती टेलेफोन की घंटी ..
"बहू खाना तैयार है ....?"
"माँ भूख लगी "....स्कूल से लौटे बच्चे
"क्यों चाय नहीं पिलाओगी "
...दफ्तर से लौटे पतिदेव
"रात के खाने में क्या है "
"बहू खाना लगाओ "
"सुनो थोड़ी देर मेरे पास भी बैठ जाओ "
"माँ भूख लगी है "
चौका समेटा-
दिन ख़त्म...!!!
१० हाथ हैं मेरे ....
क्या यह पुरुषों के लिए संभव है ....?
तभी तो कहती हूँ
अपने घर की धुरी हूँ मैं ...!!!!!
प.स. बीमार पड़ने की तो कहीं गुंजाइश ही नहीं.....!!!!!!!
HAPPY WOMEN'S DAY...:) :) :)
बहुत सुन्दर और सम्पूर्ण चित्रण भारतीय नारी का .
ReplyDeleteनमन नमन नमन
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति आदरेया--
शुभकामनायें-
सादर
बढिया
ReplyDeleteवास्तव में स्त्री पूरे परिवार की धुरी होती है,बहुत ही लाजबाब अभिव्यक्ति,,बधाई ,,सरस जी
ReplyDeleteRecent post: रंग गुलाल है यारो,
धुरी भी और चकरघिन्नी भी :).पर सच है महिलायें इसमें भी ख़ुशी पाती हैं.
ReplyDeleteबिल्कुल सच कहा आपने ... अनुपम भावों का संगम ... यह अभिव्यक्ति
ReplyDeleteसार्थक अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार (9-3-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
सूचनार्थ!
माँ .... मुझे भूख लगी है ...
ReplyDeleteहर दिन .. हर पल व पूरी कायनात पर आप और आप ...
itna kam ek sath kaise?
ReplyDelete१० हाथ हैं मेरे ....
ReplyDeleteक्या यह पुरुषों के लिए संभव है ....?
तभी तो कहती हूँ
अपने घर की धुरी हूँ मैं
आपने नारी के सभी रूपों को जीवंत कर दिया .बहुत ही शानदार
मातृ-देवियों के हाथ इसीलिये केवल दो न हो कर 10,12,16 चित्रित किये जाते हैं
ReplyDeleteनारी के सभी रूपों की सार्थक प्रस्तुतीकरण.
ReplyDeleteअपने हिस्से की धूप अब अपनी उष्णता को पहचान गयी है..
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteअनुभवों की समष्टि है आपकी रचना
ReplyDeletelatest postमहाशिव रात्रि
latest postअहम् का गुलाम (भाग एक )
तभी तो कहती हूँ
ReplyDeleteअपने घर की धुरी हूँ मैं ...!!!!!
और इसी में सच्चे सुख का अनुभव करती हूँ .... सबके मन की बात कह दी आपने... :)
शुभकामनायें........
Bhartiya nari ka bhavbhara chitran ....bahut sundar rachna Saras ji .
ReplyDeleteइसीलिए तो कहते हैं... हर दिन ही Women's Day है.... :-)
ReplyDelete~सादर!!!
१० हाथ हैं मेरे ....
ReplyDeleteक्या यह पुरुषों के लिए संभव है ....?
तभी तो कहती हूँ
अपने घर की धुरी हूँ मैं ...!!!!!
....बिल्कुल सच...बहुत सुन्दर और सार्थक चित्रण...
लाजवाब प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteमहाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ...
:) kisi bhi ghar ki dhuri hai mahila...
ReplyDeletehappy womens day didi..
सुंदर अभिव्यक्ति....
ReplyDeleteभारतीय नारी का सटीक चित्रण ।
ReplyDeletebahut sundar ...
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDelete