रिश्ते
वह विश्वास !
जो अदम्य है ..
अगाध है ...
अद्भुत है ...
जो उस खिलखिलाते
बच्चे में
जिसे आसमान में उछाला
है ,
लोकने के लिए
....!!
वह लक्ष्मण रेखा
जो तै करती
है सीमाएं
आचरण की ...
व्यवहार की...
और उनसे जुड़े
सही गलत की
....
वह बोझ ..!
जिसे कभी चाहकर....
कभी मजबूरी में ...
सहना है
खुशी....
और कड़वाहटओं के बीच...!!
वह सौगातें ...!
जो धरोहर सी....
महफूज़ रखते हैं
कभी ..
और कभी...
कूड़े के ढेर
पर छोड़ आते
हैं ....!!!
नाज़ुक से ...
कभी कांच से
...
रेशम के धागे
से कभी ...
पर बला की
कूवत
संजोये रहते हैं
...!!!
नाज़ुक से ...
ReplyDeleteकभी कांच से ...
रेशम के धागे से कभी ...
पर बला की कूवत
संजोये रहते हैं ..
---------------
पढ़कर निशब्द हूँ ... टिप्पणी के लिए कोई शब्द आसपास नहीं है ....
वाह !!! बहुत सुंदर भावों की अभिव्यक्ति,निशब्द करती रचना,
ReplyDeleteRECENT POST: होली की हुडदंग ( भाग -२ )
रिश्तों को पिरोया है आपने फूलों की तरह धागों में ,फिर बांधकर सीमा में सहनशीलता दे दी , धरोहर होते है हमारे नाज़ुक रिश्ते ....
ReplyDeleteक्या बात है आपकी प्रस्तुति के क्या कहने
रिश्ते...
ReplyDeleteवो स्पंदन
जो सीने में एहसास कराता है
कि आप जिंदा हो...
बहुत सुन्दर सरस जी....
सादर
अनु
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteनाज़ुक से ...
ReplyDeleteकभी कांच से ...
रेशम के धागे से कभी ...
पर बला की कूवत
संजोये रहते हैं ...!!!
bahut khoob
sunder bhav
rachana
परिभाषाओं की ये तीसरी कड़ी भी उतनी ही प्यारी.
ReplyDeleteरिश्ते जो कभी रिसते हैं तो कभी मरहम से ,बहुत अपने से !
ReplyDeleteयही तो है रिश्तों की महिमा
ReplyDeleteबहुत सुन्दर....होली की हार्दिक शुभकामनाएं ।।
ReplyDeleteपधारें कैसे खेलूं तुम बिन होली पिया...
बहुत ही सुन्दर भावों की प्रस्तुति,आभार.
ReplyDelete
ReplyDeleteकल दिनांक 31/03/2013 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
धन्यवाद!
बहुत सुन्दर परिभाषा में बाँधा है रिश्तों को,,, सरस जी ... सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteaap jo paribhashayen gadhti hain, pratyek itni sateek hoti hain, mano yahi uska asli arth hon, aur fir dusri paribhasha padhte hain to lagta hai 'ye bhi sahi hai'....vakai apka nazariya behad sundar, creative aur vyapak hai...........liked it!
ReplyDeleteवाह बहुत सुंदर !
ReplyDeleteआज की ब्लॉग बुलेटिन क्योंकि सुरक्षित रहने मे ही समझदारी है - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
वाह बहुत सुंदर !
ReplyDeleteसुन्दर विश्लेषण - आधार एक ही सहज विश्वास की डोर हल्का और भारीपन दोनों को साधती है !
ReplyDeleteरिश्तों के सधे तारों की मीठी झंकार सी रचना है ,लाजवाब ।
ReplyDeleteरिश्तों को अनेक रंगों में उतारती है ये परिभाषाएँ ...
ReplyDeleteबहुत लाजवाब होते हैं ये रिश्ते ...
सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteकितनी सुंदर परिभाषाएं दी हैं आपने रिश्तों की सरस जी ,
ReplyDeleteहम रिश्तों को कितनी तरह से अभिव्यक्त करते हैं,आपने बहुत
खूबसूरती से शब्दों में उतारा है.....
साभार.....
बहुत सुन्दर परिभाषा रिश्तों की .......
ReplyDeleteपरतों को उघारती हुई ये परिभाषाएं अच्छी बन पड़ी है..
ReplyDeletebahut khoob sunder bimbon ke sath sunder kavita
ReplyDeleterachana
सुन्दर परिभाषाएं......अच्छी चल रही है सीरिज.....शुभकामनायें।
ReplyDeleteवह विश्वास !
ReplyDeleteजो अदम्य है ..
अगाध है ...
अद्भुत है ...
जो उस खिलखिलाते बच्चे में
जिसे आसमान में उछाला है ,
लोकने के लिए ....!!
बहुत खूब ....
चाहकर....
ReplyDeleteकभी मजबूरी में ...
सहना है
खुशी....
और कड़वाहटओं के बीच...!!
bahut hi sundar aur prabhavshali paribhasha ki prastuti lajbab lagi .....sadar aabhar
सभी परिभाषाएं सटीक. ये मेरे मन के ज्यादा करीब...
ReplyDeleteवह लक्ष्मण रेखा
जो तै करती है सीमाएं
आचरण की ...
व्यवहार की...
और उनसे जुड़े सही गलत की ....
शुभकामनाएँ.
वह बोझ ..!
ReplyDeleteजिसे कभी चाहकर....
कभी मजबूरी में ...
सहना है
खुशी....
और कड़वाहटओं के बीच...!!
रिश्ते भी तो बोझ बन जाते हैं ... सटीक अभिव्यक्ति