५४ साल लम्बी यादें........उतार चढ़ावों से भरीं, जिसमें बहुत कुछ बीता.....
कुछ फाँस सा असहनीय पीड़ा दे गया ....
कुछ अनायास ही खिल आनेवाली मुस्कराहट का सबब बन गया....
कुछ एक कविता बन मुखरित हो गया...
कुछ , बस यूहीं धूप में छाँव सा ठंडक पहुंचा गया ......
और यादों का यह काफिला , पृष्ट दर पृष्ट पूरा जीवन बन गया
जिसमें गाहे बगाहे, कुछ सुरीले, सुखद क्षण,
.....मेरे हिस्से की धूप बन गए.....
अक्सर
हादसा होने के बाद....
उसके अंजाम के डर से ....
सन्नाटे गूँजा करते हैं भीतर..... !
और खड़े हो जाते हैं पहाड़ पलों के -
(एक एक पल तब
पहाड़ सा लगता है )
तुम जब आपा खो
बरस पड़ते हो मुझपर...!!
और मैं खोजती रह जाती हूँ
वजह ......
उस आक्रोश की..!!!