Wednesday, August 27, 2014

आक्रोश



अक्सर
हादसा होने के बाद....
उसके अंजाम के डर से ....
सन्नाटे गूँजा करते हैं भीतर..... !
और खड़े हो जाते हैं पहाड़ पलों के -
(एक एक पल तब
पहाड़ सा लगता है )
तुम जब आपा खो
बरस पड़ते हो मुझपर...!!
और मैं खोजती रह जाती हूँ
वजह ......
उस आक्रोश की..!!!

11 comments:

  1. बहोत बहोत आभार राजेन्द्रजी

    ReplyDelete
  2. बहोत बहोत आभार राजेन्द्रजी

    ReplyDelete
  3. शांत और स्थिर चित्त का मंथन ....सारगर्भित ....!!

    ReplyDelete
  4. बहुत कुछ कह दिया कुछ शब्दों में...बहुत सुन्दर

    ReplyDelete
  5. आक्रोश एक परिवर्तन है - कभी स्वयं के लिए,
    कभी सामनेवाले के लिए

    ReplyDelete
  6. आक्रोश की वजह नहीं ? बस निकालने का माध्यम होता है.
    कम शब्दों में बड़ी बात कही आपने.

    ReplyDelete
  7. न जाने कब चेतना लौटेगी समय रहते।
    --
    सुन्दर प्रस्तुति।

    ReplyDelete
  8. सच है अंजाम का डर चैन नहीं लेने देता. बहुत सुन्दर रचना.

    ReplyDelete
  9. और मैं खोजती रह जाती हूँ
    वजह ......
    उस आक्रोश की..-----

    इस खोज का न कोई सिरा है न अंत--- हम जानते हुए भी
    सुख की खोज जारी रखतें हैं ----
    मन का सच-- बहुत सुन्दर
    उत्कृष्ट
    सादर ----

    ReplyDelete
  10. शायद हादसे के अंजाम का डर ही आक्रोश ला देता है ...

    ReplyDelete