५४ साल लम्बी यादें........उतार चढ़ावों से भरीं, जिसमें बहुत कुछ बीता.....
कुछ फाँस सा असहनीय पीड़ा दे गया ....
कुछ अनायास ही खिल आनेवाली मुस्कराहट का सबब बन गया....
कुछ एक कविता बन मुखरित हो गया...
कुछ , बस यूहीं धूप में छाँव सा ठंडक पहुंचा गया ......
और यादों का यह काफिला , पृष्ट दर पृष्ट पूरा जीवन बन गया
जिसमें गाहे बगाहे, कुछ सुरीले, सुखद क्षण,
.....मेरे हिस्से की धूप बन गए.....
Wednesday, August 27, 2014
आक्रोश
अक्सर
हादसा होने के बाद....
उसके अंजाम के डर से ....
सन्नाटे गूँजा करते हैं भीतर..... !
और खड़े हो जाते हैं पहाड़ पलों के -
(एक एक पल तब
पहाड़ सा लगता है )
तुम जब आपा खो
बरस पड़ते हो मुझपर...!!
और मैं खोजती रह जाती हूँ
वजह ......
उस आक्रोश की..!!!
बहोत बहोत आभार राजेन्द्रजी
ReplyDeleteबहोत बहोत आभार राजेन्द्रजी
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteशांत और स्थिर चित्त का मंथन ....सारगर्भित ....!!
ReplyDeleteबहुत कुछ कह दिया कुछ शब्दों में...बहुत सुन्दर
ReplyDeleteआक्रोश एक परिवर्तन है - कभी स्वयं के लिए,
ReplyDeleteकभी सामनेवाले के लिए
आक्रोश की वजह नहीं ? बस निकालने का माध्यम होता है.
ReplyDeleteकम शब्दों में बड़ी बात कही आपने.
न जाने कब चेतना लौटेगी समय रहते।
ReplyDelete--
सुन्दर प्रस्तुति।
सच है अंजाम का डर चैन नहीं लेने देता. बहुत सुन्दर रचना.
ReplyDeleteऔर मैं खोजती रह जाती हूँ
ReplyDeleteवजह ......
उस आक्रोश की..-----
इस खोज का न कोई सिरा है न अंत--- हम जानते हुए भी
सुख की खोज जारी रखतें हैं ----
मन का सच-- बहुत सुन्दर
उत्कृष्ट
सादर ----
शायद हादसे के अंजाम का डर ही आक्रोश ला देता है ...
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