Thursday, October 9, 2014

जूनून



घंटों बीत जाते हैं सोचते सोचते
अगर ऐसा न होकर
कुछ ऐसा हुआ होता तो -
उसने यह न कहकर
 कुछ यह कहा होता तो -
तो मैं भी कुछ ऐसा कहती !
शनै: शनै:
मैं बादलों पर उतर आती
नर्म फाये तलवे गुदगुदाते
और ज़मीन कोसों दूर रह जाती
तभी सच के ठन्डे स्पर्श से
संक्षेपित-
मैं हरहराकर
ज़मीन से टकराती
पर वह चोट
रोक न पाती मुझे
अगले ही पल
वही सिलसिला फिर रवां हो जाता.....
जूनून जो ठहरा !

सरस

32 comments:

  1. जूनून होने का,
    उसमें डूबने का
    उसके संग उड़ने का
    इसे शब्द नहीं दे सकते - ये ऐसे होता, ये कहते,यूँ कहते - जुनूनी सिलसिला है

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    1. हार्दिक आभार रश्मिजी

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  2. वाह .... कमाल है अनथक सा ये सिलसिला ....

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    1. शुक्रिया मोनिका जी

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  3. वाह ! बहुत सुन्दर
    ……

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    1. हार्दिक आभार मृदुलाजी

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  4. ये जूनून ही तो जिंदा रखता है हमें...,

    सुंदर कविता दीदी

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  5. बहुत सुंदर भावावियक्ति ॥

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    1. हार्दिक आभार नीरज जी

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  6. Bahut sunder ... Is zunoon ke liye shubhkaamnnaayein aapko !!

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    1. शुक्रिया अपर्णा जी

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  8. ज़ुनून जिंदगी की मुस्‍कान ....

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  9. हाँ ऐसा ही तो होता है ...और यूँ ही चलता रहता है. बेहद सुन्दर पंक्तियाँ.

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  10. मैं हरहराकर
    ज़मीन से टकराती ---- आपकी कविताओं में जीवन को जीने की एक अलग तरह की व्याख्या रहती है ---- वाह बहुत सुंदर
    सादर --

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    1. हार्दिक आभार ज्योति जी

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  11. जीवन के लिए कई बार जूनून का रहना जरूरी होता है ...
    बहुत खूब लिखा है ...

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    1. हार्दिक आभार दिगंबर नास्वाजी

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  12. इस रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार यशोदा जी

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  13. शुक्रिया ओमकार जी

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  14. बहुत खूब...बहुत ही जुनुनी रचना...

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  15. ऐसा नहीं वैसा हुआ होता ... ऐसे नहीं वैसे किया होता .... सच हर पल कुछ ऐसा ही सोचते हैं ... सोचने का भी जूनून ही तो होता है

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