घंटों बीत जाते हैं सोचते सोचते
अगर ऐसा न होकर
कुछ ऐसा हुआ होता तो -
उसने यह न कहकर
कुछ यह कहा होता तो -
तो मैं भी कुछ ऐसा कहती !
शनै: शनै:
मैं बादलों पर उतर आती
नर्म फाये तलवे गुदगुदाते
और ज़मीन कोसों दूर रह जाती
तभी सच के ठन्डे स्पर्श से
संक्षेपित-
मैं हरहराकर
ज़मीन से टकराती
पर वह चोट
रोक न पाती मुझे
अगले ही पल
वही सिलसिला फिर रवां हो जाता.....
जूनून जो ठहरा !
सरस
जूनून होने का,
ReplyDeleteउसमें डूबने का
उसके संग उड़ने का
इसे शब्द नहीं दे सकते - ये ऐसे होता, ये कहते,यूँ कहते - जुनूनी सिलसिला है
हार्दिक आभार रश्मिजी
Deleteवाह .... कमाल है अनथक सा ये सिलसिला ....
ReplyDeleteशुक्रिया मोनिका जी
Deleteजूनून कायम रहे ........
ReplyDeleteशुक्रिया मुकेश
Deletebahut sundar .
ReplyDeleteआभार रेखाजी
Deleteवाह ! बहुत सुन्दर
ReplyDelete……
हार्दिक आभार मृदुलाजी
Deleteये जूनून ही तो जिंदा रखता है हमें...,
ReplyDeleteसुंदर कविता दीदी
शुक्रिया सीमा
Deleteबहुत सुंदर भावावियक्ति ॥
ReplyDeleteहार्दिक आभार नीरज जी
Deleteबहुत सुन्दर ..
ReplyDeleteशुक्रिया कविता
DeleteBahut sunder ... Is zunoon ke liye shubhkaamnnaayein aapko !!
ReplyDeleteशुक्रिया आपका ....
Deleteachchhe bhawao ka sanyojan
ReplyDeleteशुक्रिया अपर्णा जी
Deleteज़ुनून जिंदगी की मुस्कान ....
ReplyDeleteशुक्रिया सदाजी
Deleteहाँ ऐसा ही तो होता है ...और यूँ ही चलता रहता है. बेहद सुन्दर पंक्तियाँ.
ReplyDeleteशुक्रिया शिखा
Deleteमैं हरहराकर
ReplyDeleteज़मीन से टकराती ---- आपकी कविताओं में जीवन को जीने की एक अलग तरह की व्याख्या रहती है ---- वाह बहुत सुंदर
सादर --
हार्दिक आभार ज्योति जी
Deleteजीवन के लिए कई बार जूनून का रहना जरूरी होता है ...
ReplyDeleteबहुत खूब लिखा है ...
हार्दिक आभार दिगंबर नास्वाजी
Deleteइस रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार यशोदा जी
ReplyDeleteशुक्रिया ओमकार जी
ReplyDeleteबहुत खूब...बहुत ही जुनुनी रचना...
ReplyDeleteऐसा नहीं वैसा हुआ होता ... ऐसे नहीं वैसे किया होता .... सच हर पल कुछ ऐसा ही सोचते हैं ... सोचने का भी जूनून ही तो होता है
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