एक पुरानी कविता जो
स्कूल में लिखी
थी
एक अंतराल के बाद
देखा...
मांग के करीब
सफेदी उभर आई
है
आँखें गहरा गयी
हैं,
दिखाई भी कम
देने लगा है...
कल अचानक हाथ कापें
..
दाल का दोना
बिखर गया-
थोड़ी दूर चली
,
और पैर थक
गए .
अब तो तुम
भी देर से
आने लगे हो..
देहलीज़ से पुकारना
,अक्सर भूल जाते
हो
याद है पहले
हम हार रात
पान दबाये,
घंटों घूमते रहते...
..अब तुम यूहीं
टाल जाते हो...
कुछ चटख उठता
है-
आवाज़ नहीं होती
...
पर जानती हूँ
कुछ साबित नहीं रह
जाता.....
और यह कमजोरी...
यह गड्ढे....
यह अवशेष .....
जब सतह पर
उभरे ...
एक चटखन उस
शीशे में बिंध
गयी ..
और तुम उस
शीशे को...
फिर कभी न
देख सके...!
कुछ चटख उठता है-
ReplyDeleteआवाज़ नहीं होती ...
पर जानती हूँ
कुछ साबित नहीं रह जाता.....
.....
एक सच इन पंक्तियों से भी झांक रहा है
बेहद गहन भाव लिये अनुपम प्रस्तुति
सादर
ये ही जीवन के सच हैं,मुठ्ठी में बंद रेत सी यूँ ही तमाम होती जिंदगी .....
ReplyDeleteबहुत गंभीर व मार्मिक.....
साभार....
ओह..सच कब वक़्त निकल जाता है पता नहीं चलता.
ReplyDeleteस्कूल .... अबोध उम्र में अनुभुतित गहरे भाव . परिवेशीय दृष्टिकोण अद्भुत है
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDelete:) बहुत सुंदर अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteछोटी-छोटी बातें हमारे जीवन में कितना महत्व रखतीं हैं...
~सादर!!!
गहन भाव लिए बहुत सुंदर अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteबहुत गहन अभिव्यक्ति ....सुखमय पल काश सदा सहेज पायें ....
ReplyDelete
ReplyDeleteजब सतह पर उभरे ...
एक चटखन उस शीशे में बिंध गयी ..
और तुम उस शीशे को...
फिर कभी न देख सके...!------अदभुत
बढ़ती उम्र के बीच इतनी गहन कल्पना
सटीक कहन सुंदर फेंटेसी----वाह क्या कहने
आपको और आपकी लेखनी को प्रणाम
अब तो तुम भी देर से आने लगे हो..
ReplyDeleteदेहलीज़ से पुकारना ,अक्सर भूल जाते हो
याद है पहले हम हार रात पान दबाये,
घंटों घूमते रहते...
..अब तुम यूहीं टाल जाते हो...
कुछ चटख उठता है-
आवाज़ नहीं होती ...
पर जानती हूँ
कुछ साबित नहीं रह जाता...
शायद आपने उन क्षणों में जीवन के गहरे हिस्से को झांक लिया बहुत ही खुबसूरत नहीं मर्मस्पर्शी
अबोध उम्र......वह हवा ...हवा में तितली सी इठलाती सी वह याद तुम्हारी
ReplyDeletejivan ki gahrayee men utrati huyee rachna.
ReplyDeleteकितना कुछ हुआ पर अकथित रहा ..... सुंदर बिम्ब लिए रचना
ReplyDeleteछोटी उम्र की परिपक्वता है इस कविता में !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर.
ReplyDeletebahut sundar abhivyakti saras ji badhai aapko ....purani rachnaye sada man ke kor bhigo deti hai .
ReplyDeletehttp://sapne-shashi.blogspot.com
बहुत उम्दा सार्थक रचना ,,,,
ReplyDeleteयाद है पहले हम हार रात पान दबाये,( हर )
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छोटी छोटी बातें जो हमारे जीवन में घटित होती हैं उनका कितना महत्व है आपने बहुत ही सुन्दरता से बता दिया. हार्दिक बधाई स्वीकारें.
ReplyDeletebahut kuch kahti hai aapki rachna ..........bahut pasand aayi
ReplyDeleteअब तो तुम भी देर से आने लगे हो..
ReplyDeleteदेहलीज़ से पुकारना ,अक्सर भूल जाते हो
याद है पहले हम हार रात पान दबाये,
घंटों घूमते रहते...
..अब तुम यूहीं टाल जाते हो...
कुछ चटख उठता है-
आवाज़ नहीं होती ...
पर जानती हूँ
कुछ साबित नहीं रह जाता.....करवट लेती जिंदगी- गहन चित्रण
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umra ke aakhiri padav ke anubhavon ko aapne school dino me hi itni gahrai se samajh dala, aapki sanvedansheelta aur kalpanasheelta ko salaam!! dusri baat ye ki, dhalti umra me stri aur chatkhe hue sheeshe ke beech samroopta ka sambandh....! bhavnatmak rishta bana dala hai.
ReplyDelete..अब तुम यूहीं टाल जाते हो...
ReplyDeleteकुछ चटख उठता है-
आवाज़ नहीं होती ...
पर जानती हूँ
कुछ साबित नहीं रह जाता.....
बहुत ही सुन्दर कविता ...
ये तो बहुत मैच्योर कविता है।
ReplyDeleteबहुत ही गहरी बातें ... बहुत बढ़िया बधाई लीजिये !
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा सार्थक रचना.
ReplyDeleteइतने गहन भाव......दिल के कोने में दबे अहसासों का खूबसूरती से बयां करती ये पोस्ट लाजवाब लगी ।
ReplyDeleteशब्द शब्द गहरे उतरता गया...
ReplyDeleteशब्द शब्द गहरे उतरता गया...
ReplyDeleteसमय के साथ सब कुछ ऐसे ही बदल जाता है शायद
ReplyDeleteसुन्दर रचना !
सुन्दर चित्र के साथ एक अच्छी कविता |
ReplyDeleteओह यह स्कूल के दिनों की रचना ..... उम्र के फासले बिना अनुभव के भी पार कर लिए .... बहुत सुंदर
ReplyDeleteस्कूल के दिनों की लिखी रचना इतनी परिपक्व और गहन! सादर नमन.
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