Thursday, April 4, 2013

शीशा







एक पुरानी कविता जो स्कूल में लिखी थी


एक अंतराल के बाद देखा...
मांग के करीब सफेदी उभर आई है
आँखें गहरा गयी हैं,
दिखाई भी कम देने लगा है...
कल अचानक हाथ कापें ..
दाल का दोना बिखर गया-
थोड़ी दूर चली ,
और पैर थक गए .
अब तो तुम भी देर से आने लगे हो..
देहलीज़ से पुकारना ,अक्सर भूल जाते हो
याद है पहले हम हार रात पान दबाये,
घंटों घूमते रहते...
..अब तुम यूहीं टाल जाते हो...
कुछ चटख उठता है-
आवाज़ नहीं होती ...
पर जानती हूँ
कुछ साबित नहीं रह जाता.....
और यह कमजोरी...
यह गड्ढे....
यह अवशेष .....
जब सतह पर उभरे ...
एक चटखन उस शीशे में बिंध गयी ..
और तुम उस शीशे को...
फिर कभी देख सके...!

32 comments:

  1. कुछ चटख उठता है-
    आवाज़ नहीं होती ...
    पर जानती हूँ
    कुछ साबित नहीं रह जाता.....
    .....
    एक सच इन पंक्तियों से भी झांक रहा है
    बेहद गहन भाव लिये अनुपम प्रस्‍तुति
    सादर

    ReplyDelete
  2. ये ही जीवन के सच हैं,मुठ्ठी में बंद रेत सी यूँ ही तमाम होती जिंदगी .....
    बहुत गंभीर व मार्मिक.....
    साभार....

    ReplyDelete
  3. ओह..सच कब वक़्त निकल जाता है पता नहीं चलता.

    ReplyDelete
  4. स्कूल .... अबोध उम्र में अनुभुतित गहरे भाव . परिवेशीय दृष्टिकोण अद्भुत है

    ReplyDelete
  5. :) बहुत सुंदर अभिव्यक्ति!
    छोटी-छोटी बातें हमारे जीवन में कितना महत्व रखतीं हैं...
    ~सादर!!!

    ReplyDelete
  6. गहन भाव लिए बहुत सुंदर अभिव्यक्ति!

    ReplyDelete
  7. बहुत गहन अभिव्यक्ति ....सुखमय पल काश सदा सहेज पायें ....

    ReplyDelete

  8. जब सतह पर उभरे ...
    एक चटखन उस शीशे में बिंध गयी ..
    और तुम उस शीशे को...
    फिर कभी न देख सके...!------अदभुत

    बढ़ती उम्र के बीच इतनी गहन कल्पना
    सटीक कहन सुंदर फेंटेसी----वाह क्या कहने
    आपको और आपकी लेखनी को प्रणाम

    ReplyDelete
  9. अब तो तुम भी देर से आने लगे हो..
    देहलीज़ से पुकारना ,अक्सर भूल जाते हो
    याद है पहले हम हार रात पान दबाये,
    घंटों घूमते रहते...
    ..अब तुम यूहीं टाल जाते हो...
    कुछ चटख उठता है-
    आवाज़ नहीं होती ...
    पर जानती हूँ
    कुछ साबित नहीं रह जाता...

    शायद आपने उन क्षणों में जीवन के गहरे हिस्से को झांक लिया बहुत ही खुबसूरत नहीं मर्मस्पर्शी

    ReplyDelete
  10. अबोध उम्र......वह हवा ...हवा में तितली सी इठलाती सी वह याद तुम्हारी

    ReplyDelete
  11. कितना कुछ हुआ पर अकथित रहा ..... सुंदर बिम्ब लिए रचना

    ReplyDelete
  12. छोटी उम्र की परिपक्वता है इस कविता में !

    ReplyDelete
  13. bahut sundar abhivyakti saras ji badhai aapko ....purani rachnaye sada man ke kor bhigo deti hai .

    http://sapne-shashi.blogspot.com

    ReplyDelete
  14. बहुत उम्दा सार्थक रचना ,,,,
    याद है पहले हम हार रात पान दबाये,( हर )

    Recent post : होली की हुडदंग कमेंट्स के संग

    ReplyDelete
  15. छोटी छोटी बातें जो हमारे जीवन में घटित होती हैं उनका कितना महत्व है आपने बहुत ही सुन्दरता से बता दिया. हार्दिक बधाई स्वीकारें.

    ReplyDelete
  16. bahut kuch kahti hai aapki rachna ..........bahut pasand aayi

    ReplyDelete
  17. अब तो तुम भी देर से आने लगे हो..
    देहलीज़ से पुकारना ,अक्सर भूल जाते हो
    याद है पहले हम हार रात पान दबाये,
    घंटों घूमते रहते...
    ..अब तुम यूहीं टाल जाते हो...
    कुछ चटख उठता है-
    आवाज़ नहीं होती ...
    पर जानती हूँ
    कुछ साबित नहीं रह जाता.....करवट लेती जिंदगी- गहन चित्रण
    LATEST POST सुहाने सपने

    ReplyDelete
  18. umra ke aakhiri padav ke anubhavon ko aapne school dino me hi itni gahrai se samajh dala, aapki sanvedansheelta aur kalpanasheelta ko salaam!! dusri baat ye ki, dhalti umra me stri aur chatkhe hue sheeshe ke beech samroopta ka sambandh....! bhavnatmak rishta bana dala hai.

    ReplyDelete
  19. ..अब तुम यूहीं टाल जाते हो...
    कुछ चटख उठता है-
    आवाज़ नहीं होती ...
    पर जानती हूँ
    कुछ साबित नहीं रह जाता.....


    बहुत ही सुन्दर कविता ...

    ReplyDelete
  20. ये तो बहुत मैच्योर कविता है।

    ReplyDelete
  21. बहुत ही गहरी बातें ... बहुत बढ़िया बधाई लीजिये !

    ReplyDelete
  22. बहुत ही उम्दा सार्थक रचना.

    ReplyDelete
  23. इतने गहन भाव......दिल के कोने में दबे अहसासों का खूबसूरती से बयां करती ये पोस्ट लाजवाब लगी ।

    ReplyDelete
  24. शब्द शब्द गहरे उतरता गया...

    ReplyDelete
  25. शब्द शब्द गहरे उतरता गया...

    ReplyDelete
  26. समय के साथ सब कुछ ऐसे ही बदल जाता है शायद
    सुन्दर रचना !

    ReplyDelete
  27. सुन्दर चित्र के साथ एक अच्छी कविता |

    ReplyDelete
  28. ओह यह स्कूल के दिनों की रचना ..... उम्र के फासले बिना अनुभव के भी पार कर लिए .... बहुत सुंदर

    ReplyDelete
  29. स्कूल के दिनों की लिखी रचना इतनी परिपक्व और गहन! सादर नमन.

    ReplyDelete