सलीब !
वह बोझ !
जिसे हर किसी को ढोना है
अलग अलग पड़ावों पर
अलग अलग रूपों में ....!!!
वह सज़ा !
जो समाज के ठेकेदारों ने
बेगुनाहों को दी है
बगैर सच जाने .....!!!
वह लेखा जोखा !
जहाँ अपने हर किये की
सफाई देनी होती है
समाज को ...खुद को ......!!!
वह सांत्वना !
जो कभी कभी
अपने ही पापों का बोझ
कुछ कम कर देती है .....!!!
वह उम्मीद का क़तरा !
जो इंसान की हिम्मत को
कुछ और ठेलता है -
'बस अब दर्द ख़त्म ही हुआ',समझाता हुआ ....!!!
वह ख़तरा !
जो हरदम अहसास दिलाता है
की जहाँ यह बोझ उतरा
तुम्हारा अंत नज़दीक है ......!!!
वह घाव !
जो अपनों के दिए दर्द हैं
जो कभी अनजाने में ...कभी जबरन
कर दिए थे ...रूह पर .......!!!
वह धरोहर !
जिसे सहेजना है
उम्र के आखरी पड़ाव तक
बिना रियायत .......!!!
बेहतरीन उअर लाजवाब......हैट्स ऑफ इसके लिए ।
ReplyDeleteबढ़िया परिभाषाएं .आखिरी वाली जोरदार है.
ReplyDeleteवह धरोहर !
ReplyDeleteजिसे सहेजना है
उम्र के आखरी पड़ाव तक
बिना रियायत .......!!!
क्या बात है !!! बहुत खूब कहा आपने !!!!!!!!!
kisi cheez ko alag-alag aur itne kalatmak dhang se dekh leti hain aap, bahut sundar likha hai aapne aur Saleeb ko kisi dharm-mazhab se na jodkar zindagi k pahluon se joda hai, ye zyada sukhad hai!
ReplyDeletebahut hi sundar rachna lagi yah mujhe ...
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन रचना की प्रस्तुति,आभार.
ReplyDelete"महिलाओं के स्वास्थ्य सम्बन्धी सम्पूर्ण जानकारी
Delete"
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार १६ /४/ १३ को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां स्वागत है ।
ReplyDeleteरचना को चुनने के लिए आपका हार्दिक आभार राजेशजी ...:)
Deleteवह घाव !
ReplyDeleteजो अपनों के दिए दर्द हैं
जो कभी अनजाने में ...कभी जबरन
कर दिए थे ...रूह पर ..
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निशब्द करते हैं आपके शब्द ....
बहुत सुंदर परिभाषाएँ... भाभी !
ReplyDeleteसलीब अपने हिस्से का,कीलें अपना स्वभाव
ReplyDeleteहर परिभाषा अपने आप में सटीक .... सोचने को विवश करती हुई ।
ReplyDeleteबहुत उत्कृष्ट ,निशब्द करती सुंदर प्रस्तुति,आभार सरस जी
ReplyDeleteRecent Post : अमन के लिए.
नतीजा यही कि एक बोझ जो आजीवन ढोना है!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति !
ReplyDeletelatest post"मेरे विचार मेरी अनुभूति " ब्लॉग की वर्षगांठ
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वह लेखा जोखा !
ReplyDeleteजहाँ अपने हर किये की
सफाई देनी होती है
समाज को ...खुद को ...
सच कहा है ... जवाब देना होता है अपने किये का ... सलीब देख के डर तभी लगता है ... इस मंजर पे अपने आप ही सच निकलने लगता है ...
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteआपके सलीब को समर्पित
ReplyDeleteक्यों मान लें किसी दायित्व को बोझ,
न बन समाज का मुखिया किसी को दर्द बांटे,
बनकर उम्मीद हर दिल में बसकर,
ता उम्र चलो ये दरख्त प्यार का उगाकर देखें
जीवन को व्यक्त करती
ReplyDeleteयथार्थ की जमीन से जुडी
विचारपूर्ण भावुक सार्थक रचना
उत्कृष्ट प्रस्तुति
बधाई
वह घाव !
ReplyDeleteजो अपनों के दिए दर्द हैं
जो कभी अनजाने में ...कभी जबरन
कर दिए थे ...रूह पर .......!!!
सलीब !
वह बोझ !
जिसे हर किसी को ढोना है !!
बहुत सुन्दर सार्थक रचना..
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteवाह.....
ReplyDeleteबहुत बढ़िया.....
बेहतरीन...........
सादर
अनु
गहन सत्य .....
ReplyDeleteबहुत सही परिभाषाएं सरस जी ...!!
मर्मस्पर्शी ....आपका यूँ शब्दों को बांधना प्रभावित करता है
ReplyDeleteबहुत सुंदर सोचने को विवश करती मर्मस्पर्शी रचना
ReplyDeleteबहुत बढ़िया परिभाषाएं ..
ReplyDeleteगहरी सोच लिये सुंदर कविता सोचने को विवश करती है.
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