Sunday, April 7, 2013

परिभाषाएं -- (४)






ज़िन्दगी -

एक अज़ीम- ओ- शान खैरात ..!
जो सिर्फ
किश्तों में है मिलती..

वह जुम्बिश ..!
जो साँसे चलते रहने के गुमाँ को
है जिंदा रखती ....

वह फ़रियाद ..!
जिसकी कहीं ..कभी
सुनवाई नहीं होती ...

वह मुफ़्लिस नदी ..!
जो सिर्फ मौसम के रहमो-करम से
है बहती .....

वह नेमत..!
जिसे मांगते सभी हैं
पर क़ुबूल नहीं होती ....

नूर का वह बेरंग कतरा ..!
अपनी मर्ज़ी के रंग भर जिसमें
शिकायत इंसां को...
ख़ुदा से हैं होती  .....



44 comments:

  1. नूर का वह बेरंग कतरा ..!
    अपनी मर्ज़ी के रंग भर जिसमें
    शिकायत इंसां को...
    ख़ुदा से हैं होती .....
    जबरदस्‍त ... सभी एक से बढ़कर एक

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    1. सदाजी इस प्रोत्साहन के लिए ह्रदय से आभार ...!!

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  2. ज़िन्दगी........
    जिससे कभी जी नहीं भरता......

    बहुत प्यारी परिभाषाएँ...
    ये श्रंखला ही बड़ी सुन्दर है दी...

    सादर
    अनु

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    1. तुम्हे पसंद आयीं यह जानकार ख़ुशी हुई अनु ...:)

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  3. जिसमे शिकायत इन्सा को खुदा से होती।।।
    क्या खूब कहा ...

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    1. दाद के लिए शुक्रिया आशाजी

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  4. नूर का वह बेरंग कतरा ..!
    अपनी मर्ज़ी के रंग भर जिसमें
    शिकायत इंसां को...
    ख़ुदा से हैं होती .....


    बहुत सुंदर

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    1. ज़हे नसीब....आपका मुद्दत से इंतज़ार था ब्लॉग पर संगीताजी

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  5. बहुत सुन्दर परिभाषाएं
    LATEST POSTसपना और तुम

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    1. आपका बहुत बहुत आभार कालिपदजी

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  6. बहुत ही बेहतरीन सुन्दर प्रस्तुति....

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    1. आपका बहुत बहुत आभार राजेंद्र जी

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  7. नूर का वह बेरंग कतरा ..!
    अपनी मर्ज़ी के रंग भर जिसमें
    शिकायत इंसां को...
    ख़ुदा से हैं होती .....
    लाज़वाब... जिंदगी के हर रंग को सुन्दर परिभाषा दी है आपने... बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...

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    1. रचना पसंद करने के लिए आभार संध्याजी

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  8. नूर का वह बेरंग कतरा ..!
    अपनी मर्ज़ी के रंग भर जिसमें
    शिकायत इंसां को...
    ख़ुदा से हैं होती .....
    यह सबसे अच्छी लगी.

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  9. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति....आभार

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  10. वह नेमत..!
    जिसे मांगते सभी हैं
    पर क़ुबूल नहीं होती ...

    वाह !!! बहुत बेहतरीन भाव पूर्ण सुंदर पंक्तियाँ!!!

    RECENT POST: जुल्म

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  11. लाजवाब. सारे अपने में उत्कृष्ट.

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  12. सब बेजोड़ ....जिन्दगी को जिन्दा रखने की मुकम्मल बातें ....

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  13. वाह.......बहुत ही सुन्दर ।

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  14. वह फ़रियाद ..!
    जिसकी कहीं ..कभी
    सुनवाई नहीं होती .

    बहुत सुंदर रचना

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  15. वह नेमत..!
    जिसे मांगते सभी हैं
    पर क़ुबूल नहीं होती ....
    - सभी सही बैठ रही हैं !

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  16. नव संवत् का रवि नवल, दे स्नेहिल संस्पर्श !
    पल प्रतिपल हो हर्षमय, पथ पथ पर उत्कर्ष !!




    ख़ैरात ! जुंबिश ! फ़रियाद ! नेमत !
    सच , क्या-क्या नहीं है ज़िंदगी ?
    आदरणीया सरस जी

    अच्छी तरह परिभाषित किया है ज़िंदगी को आपने...
    नूर का वह बेरंग कतरा ..!
    अपनी मर्ज़ी के रंग भर जिसमें
    शिकायत इंसां को...
    ख़ुदा से है होती .....

    इंसां की फ़ितरत ही ऐसी है ...

    # मैंने जिंदगी के लिए लिखा -
    ज़िंदगी दर्द का फ़साना है !
    हर घड़ी सांस को गंवाना है !
    जीते रहना है , मरते जाना है !
    ख़ुद को खोना है , ख़ुद को पाना है !

    चांद-तारे सजा’ तसव्वुर में ,
    तपते सहरा में चलते जाना है !
    जलते शोलों के दरमियां जा’कर ,
    बर्फ के टुकड़े ढूंढ़ लाना है !

    :)


    आपको सपरिवार नव संवत्सर २०७० की बहुत बहुत बधाई !
    हार्दिक शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं...

    -राजेन्द्र स्वर्णकार


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    1. बहुत भवपूर्ण रचना

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    2. बहुत उम्दा सोच राजेंद्र जी ...साभार !

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  17. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज बुधवार (10-04-2013) के "साहित्य खजाना" (चर्चा मंच-1210) पर भी होगी! आपके अनमोल विचार दीजिये , मंच पर आपकी प्रतीक्षा है .
    सूचनार्थ...सादर!

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  18. जिंदगी को बहुत बेहतरीन ढंग से परिभाषित किया है. और ये पंक्तियाँ:
    नूर का वह बेरंग कतरा ..!
    अपनी मर्ज़ी के रंग भर जिसमें
    शिकायत इंसां को...
    ख़ुदा से हैं होती .....
    बहुत दार्शनिक. सुन्दर प्रस्तुति..

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  19. वह मुफ़्लिस नदी ..!
    जो सिर्फ मौसम के रहमो-करम से
    है बहती .....

    वह नेमत..!
    जिसे मांगते सभी हैं
    पर क़ुबूल नहीं होती ....

    नूर का वह बेरंग कतरा ..!
    अपनी मर्ज़ी के रंग भर जिसमें
    शिकायत इंसां को...
    ख़ुदा से हैं होती .....

    मालिक के इसी करतब के तो हम सब तलबगार हैं

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  20. zindagi ko itne sateek arth diye hain, apne.......apni galtiyon ka dosh bhagwaan par madhne ko jitni khoobsurti se aapne zindagi ki paribhasha k roop me prastut kiya hai, mujhe sabse zyada pasand ayi ye panktiyan, yun to puri kavita bahut prabhavi hai.

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    1. शुक्रिया सुनीता...आपकी प्रोत्साहन भरी टिप्पणियों का इंतज़ार रहता है

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  21. नूर का वह बेरंग कतरा ..!
    अपनी मर्ज़ी के रंग भर जिसमें
    शिकायत इंसां को...
    ख़ुदा से हैं होती .....

    ...बहुत खूब! ज़िंदगी का बहुत सटीक चित्रण...

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  22. सच कहा है जिंदगी ऐसी ही होती है ... विविध रंग कोई नहीं देखता ... बस खुदा से शिकायत ही होती है ...

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  23. सरस जी बहुत सुंदर रचना

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  24. बहुत सुंदर परिभाषाएं दी हैं आपने ज़िन्दगी की ,सरस जी.....
    सभी एक से बढ़ कर एक....

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  25. जिन्दगी की परिभाषा ..जो हर पल ..हर मोड़ पर बदल जाती है ....बहुत सुंदर

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  26. बेहतरीन परिभाषा ज़िन्दगी की।
    सादर
    मधुरेश

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  27. बहुत सुंदर परिभाषायें
    ~सादर

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  28. नूर का वह बेरंग कतरा ..!
    अपनी मर्ज़ी के रंग भर जिसमें
    शिकायत इंसां को...
    ख़ुदा से हैं होती .....
    यही तो हकीकत है सब किया धरा इंसान का है और शिकायत खुदा से करते हैं जन्नते जिंदगी बख्शी थी उसने इंसान ने हवा का रुख ही बदल डाला ,बहुत सुन्दर प्रस्तुति सरस जी हार्दिक बधाई

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  29. रचना को इस योग्य समझने के लिए और इस प्रोत्साहन के लिए आपका हार्दिक आभार शशिजी

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  30. जी में आ रहा है कि इन परिभाषाओं से कुछ दिल की बात करूँ..

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