Monday, April 15, 2013

परिभाषाएँ - (५) ..............सलीब !




सलीब !

वह बोझ !
जिसे हर किसी को ढोना है
अलग अलग पड़ावों पर
अलग अलग रूपों में ....!!!

वह सज़ा !
जो समाज के ठेकेदारों ने
बेगुनाहों को दी है
बगैर सच जाने .....!!!

वह लेखा जोखा !
जहाँ अपने हर किये की
सफाई देनी होती है
समाज को ...खुद को ......!!!

वह सांत्वना !
जो कभी कभी
अपने ही पापों का बोझ
कुछ कम कर देती है .....!!!

वह उम्मीद का क़तरा  !
जो इंसान की हिम्मत को
कुछ और ठेलता है -
'बस अब दर्द ख़त्म ही हुआ',समझाता हुआ ....!!!

वह ख़तरा !
जो हरदम अहसास दिलाता है
की जहाँ यह बोझ उतरा
तुम्हारा अंत नज़दीक है ......!!!

वह घाव !
जो अपनों के दिए दर्द हैं
जो कभी अनजाने में ...कभी जबरन
कर दिए थे ...रूह पर .......!!!

वह धरोहर !
जिसे सहेजना है
उम्र के आखरी पड़ाव तक
बिना रियायत .......!!!

         

30 comments:

  1. बेहतरीन उअर लाजवाब......हैट्स ऑफ इसके लिए ।

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  2. बढ़िया परिभाषाएं .आखिरी वाली जोरदार है.

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  3. वह धरोहर !
    जिसे सहेजना है
    उम्र के आखरी पड़ाव तक
    बिना रियायत .......!!!
    क्‍या बात है !!! बहुत खूब कहा आपने !!!!!!!!!

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  4. kisi cheez ko alag-alag aur itne kalatmak dhang se dekh leti hain aap, bahut sundar likha hai aapne aur Saleeb ko kisi dharm-mazhab se na jodkar zindagi k pahluon se joda hai, ye zyada sukhad hai!

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  5. बहुत ही बेहतरीन रचना की प्रस्तुति,आभार.

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  6. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार १६ /४/ १३ को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां स्वागत है ।

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    1. रचना को चुनने के लिए आपका हार्दिक आभार राजेशजी ...:)

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  7. वह घाव !
    जो अपनों के दिए दर्द हैं
    जो कभी अनजाने में ...कभी जबरन
    कर दिए थे ...रूह पर ..
    ------------------
    निशब्द करते हैं आपके शब्द ....

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  8. बहुत सुंदर परिभाषाएँ... भाभी !

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  9. सलीब अपने हिस्से का,कीलें अपना स्वभाव

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  10. हर परिभाषा अपने आप में सटीक .... सोचने को विवश करती हुई ।

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  11. बहुत उत्कृष्ट ,निशब्द करती सुंदर प्रस्तुति,आभार सरस जी

    Recent Post : अमन के लिए.

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  12. नतीजा यही कि एक बोझ जो आजीवन ढोना है!

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  13. वह लेखा जोखा !
    जहाँ अपने हर किये की
    सफाई देनी होती है
    समाज को ...खुद को ...

    सच कहा है ... जवाब देना होता है अपने किये का ... सलीब देख के डर तभी लगता है ... इस मंजर पे अपने आप ही सच निकलने लगता है ...

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  15. आपके सलीब को समर्पित

    क्यों मान लें किसी दायित्व को बोझ,
    न बन समाज का मुखिया किसी को दर्द बांटे,
    बनकर उम्मीद हर दिल में बसकर,
    ता उम्र चलो ये दरख्त प्यार का उगाकर देखें

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  16. जीवन को व्यक्त करती
    यथार्थ की जमीन से जुडी
    विचारपूर्ण भावुक सार्थक रचना
    उत्कृष्ट प्रस्तुति
    बधाई

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  17. वह घाव !
    जो अपनों के दिए दर्द हैं
    जो कभी अनजाने में ...कभी जबरन
    कर दिए थे ...रूह पर .......!!!

    सलीब !

    वह बोझ !
    जिसे हर किसी को ढोना है !!

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  18. बहुत सुन्दर सार्थक रचना..

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  19. वाह.....
    बहुत बढ़िया.....
    बेहतरीन...........

    सादर
    अनु

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  20. गहन सत्य .....
    बहुत सही परिभाषाएं सरस जी ...!!

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  21. मर्मस्पर्शी ....आपका यूँ शब्दों को बांधना प्रभावित करता है

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  22. बहुत सुंदर सोचने को विवश करती मर्मस्पर्शी रचना

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  23. बहुत बढ़िया परिभाषाएं ..

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  24. गहरी सोच लिये सुंदर कविता सोचने को विवश करती है.

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