बचपन की कुछ छवियाँ, यादों की दीवारों पर, फ्रेम में जड़ी तस्वीरों सी
अनायास ही एक मुस्कराहट बिखेर देती हैं चेहरे पर ...
आज भी याद आता है
वह माहिम क्रीक पर
हर इतवार ..समुन्दर के किनारे
सीपियाँ और घोंघे बटोरने पहुँच जाना
और माँ का सारी मेहनत को झुंझलाकर कूड़े में फ़ेंक देना
( लेकिन अगले सन्डे , फिर वही क्रम दोहराना )
व्रत उपवास में सुबह से ही माँ के आगे पीछे
खाने के इंतज़ार में घूमना
(उस दिन भूख कुछ ज्यादा ही लगती थी )
लम्बर सफ़र पर ट्रेन में बैठते ही
खाने की फरमाइश करना
( ट्रेन में घर की पूरी सब्जी आचार का मज़ा ही कुछ और होता )
आंधी पानी लू धूप की परवाह किये बगैर
हर शाम बिल्डिंग के नीचे सहेलियों के साथ खेलना
( और सर झुकाकर डांट खा लेना )
पढ़ने के बहाने छत पर सूखती इमली के ढेलों से
थोड़ी थोड़ी इमली चुराकर खाना
( और भगवान से सौरी बोलते जाना )
कभी कभी क्लास टेस्ट में जीरो मिलने पर
खुद ही साइन बनाना, और पकड़े जाना
( ग्लानि और डरके बीच झूलते हुए )
कौन कहता है बचपन 'मासूम' होता है
अलबत्ता शरारतों का पिटारा ज़रूर होता है
शरारत में भी मासूमियत होती है
ReplyDeleteडैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
lateast post मैं कौन हूँ ?
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कौन कहता है बचपन 'मासूम' होता है
ReplyDeleteअलबत्ता शरारतों का पिटारा ज़रूर होता है
बिलकुल सही कहा आंटी। :)
सादर
लम्बर सफ़र पर ट्रेन में बैठते ही
ReplyDeleteखाने की फरमाइश करना
( ट्रेन में घर की पूरी सब्जी आचार का मज़ा ही कुछ और होता )
,,,
RECENT POST: मधुशाला,
सच है बचपन शरारतो का पिटारा होता है..सुन्दर मासूम रचना.
ReplyDeleteशायद सब बच्चों की शराता भी एक सी ही होती हैं :):) बहुत कुछ बचपन की याद दिला दी
ReplyDeleteवो छोटी सी रातें , वो लम्बी कहानी :):).
ReplyDeleteबचपन मासूम शरारतों का पिटारा ही होता है, क्या क्या न याद दिला दिया आपने .
ReplyDeleteवो भगवान् को बार बार सॉरी बोलना..अब सुनकर कितना क्यूट सा लगता है .
एक मेरे बचपन के वे दिन थे .....जहाँ कुछ ख्वाब हंसी जैसे थे....
ReplyDeletebachapn ke meethe din khub
ReplyDeleteअच्छी सी प्यारी सी कविता |
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार(4-5-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
ReplyDeleteसूचनार्थ!
उस पिटारे में कितनी खिलखिलाहटें भरी पड़ी हैं
ReplyDeleteखोलते ही दृश्य की चमक आँखों में झिलमिलाती है ........आंसू बन टपक जाती है
ReplyDeleteकौन कहता है बचपन 'मासूम' होता है
अलबत्ता शरारतों का पिटारा ज़रूर होता है
आपने सच कहा बहुत खुबसूरत एहसास के साथ अनमोल क्षणों का अंकन
बचपन के दिन याद आ गए. प्यारी कविता.
ReplyDeleteबचपन की सरलता फिर ढूँढे नहीं मिलती !
ReplyDeleteकौन कहता है बचपन 'मासूम' होता है
ReplyDeleteअलबत्ता शरारतों का पिटारा ज़रूर होता है------
बचपन को, बचपन की शरारतों को कितनी सच्चाई से
रचना में बयां किया है
वाह गजब
बधाई
बहुत प्यारा अहसास.....हम भी तो यही सब किया करते थे
ReplyDeleteयादें जीवन है ..
ReplyDeleteबधाई बढ़िया अभिव्यक्ति के लिए !
इस रचना में सारी बचपन की यादे फिर से ताज़ा हो गई !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना !
खूबसूरत यादें .....!!
ReplyDeleteबचपन के सागर से मोती छांट के निकाले हैं आपने ...
ReplyDeleteगुदगुदाती हैं ये यादें ...
मेरा भी बचपन ऐसा ही था, हाँ इमलियाँ जो खाई थीं वो पड़ोसी की थीं।
yadon ke jharokhe se jhankta bachpan
ReplyDeleteबहुत खूब .....इस में एक बचपन मेरा भी
ReplyDeleteShararatein wahi rehti hain.. labaade badal jaate hain :)
ReplyDeleteबहुत कुछ बचपन की याद दिला दी
ReplyDeleteबहुत खूब :) :)
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