Thursday, May 2, 2013

बचपन




बचपन की कुछ छवियाँ, यादों की दीवारों पर, फ्रेम में जड़ी तस्वीरों सी
अनायास ही एक मुस्कराहट बिखेर देती हैं चेहरे पर ...

आज भी याद आता है
वह माहिम क्रीक पर
हर इतवार ..समुन्दर के किनारे
सीपियाँ और घोंघे बटोरने पहुँच जाना
और माँ का सारी मेहनत को झुंझलाकर कूड़े में फ़ेंक देना
( लेकिन अगले सन्डे , फिर वही क्रम दोहराना )

व्रत उपवास में सुबह से ही माँ के आगे पीछे
खाने के इंतज़ार में घूमना
(उस दिन भूख कुछ ज्यादा ही लगती थी )

लम्बर सफ़र पर ट्रेन में बैठते ही
खाने की फरमाइश करना
( ट्रेन में घर की पूरी सब्जी आचार का मज़ा ही कुछ और होता )

आंधी पानी लू धूप की परवाह किये बगैर
हर शाम बिल्डिंग के नीचे सहेलियों के साथ खेलना
( और सर झुकाकर डांट खा लेना )

पढ़ने के बहाने छत पर सूखती इमली के ढेलों से
थोड़ी थोड़ी इमली चुराकर खाना
( और भगवान से सौरी बोलते जाना )

कभी कभी क्लास टेस्ट में जीरो मिलने पर
खुद ही साइन बनाना, और पकड़े जाना
( ग्लानि और डरके बीच झूलते हुए )


कौन कहता है बचपन 'मासूम' होता है
अलबत्ता शरारतों का पिटारा ज़रूर होता है


27 comments:

  1. शरारत में भी मासूमियत होती है
    डैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
    अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
    lateast post मैं कौन हूँ ?
    latest post परम्परा

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  2. कौन कहता है बचपन 'मासूम' होता है
    अलबत्ता शरारतों का पिटारा ज़रूर होता है

    बिलकुल सही कहा आंटी। :)


    सादर

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  3. लम्बर सफ़र पर ट्रेन में बैठते ही
    खाने की फरमाइश करना
    ( ट्रेन में घर की पूरी सब्जी आचार का मज़ा ही कुछ और होता )
    ,,,

    RECENT POST: मधुशाला,

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  4. सच है बचपन शरारतो का पिटारा होता है..सुन्दर मासूम रचना.

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  5. शायद सब बच्चों की शराता भी एक सी ही होती हैं :):) बहुत कुछ बचपन की याद दिला दी

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  6. वो छोटी सी रातें , वो लम्बी कहानी :):).

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  7. बचपन मासूम शरारतों का पिटारा ही होता है, क्या क्या न याद दिला दिया आपने .
    वो भगवान् को बार बार सॉरी बोलना..अब सुनकर कितना क्यूट सा लगता है .

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  8. एक मेरे बचपन के वे दिन थे .....जहाँ कुछ ख्वाब हंसी जैसे थे....

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  9. अच्छी सी प्यारी सी कविता |

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  10. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार(4-5-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
    सूचनार्थ!

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  11. उस पिटारे में कितनी खिलखिलाहटें भरी पड़ी हैं
    खोलते ही दृश्य की चमक आँखों में झिलमिलाती है ........आंसू बन टपक जाती है

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  12. कौन कहता है बचपन 'मासूम' होता है
    अलबत्ता शरारतों का पिटारा ज़रूर होता है

    आपने सच कहा बहुत खुबसूरत एहसास के साथ अनमोल क्षणों का अंकन

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  13. बचपन के दिन याद आ गए. प्यारी कविता.

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  14. बचपन की सरलता फिर ढूँढे नहीं मिलती !

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  15. कौन कहता है बचपन 'मासूम' होता है
    अलबत्ता शरारतों का पिटारा ज़रूर होता है------
    बचपन को, बचपन की शरारतों को कितनी सच्चाई से
    रचना में बयां किया है
    वाह गजब
    बधाई


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  16. बहुत प्‍यारा अहसास.....हम भी तो यही सब कि‍या करते थे

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  17. यादें जीवन है ..
    बधाई बढ़िया अभिव्यक्ति के लिए !

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  18. इस रचना में सारी बचपन की यादे फिर से ताज़ा हो गई !
    बहुत सुन्दर रचना !

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  19. खूबसूरत यादें .....!!

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  20. बचपन के सागर से मोती छांट के निकाले हैं आपने ...
    गुदगुदाती हैं ये यादें ...

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  21. मेरा भी बचपन ऐसा ही था, हाँ इमलियाँ जो खाई थीं वो पड़ोसी की थीं।

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  22. बहुत खूब .....इस में एक बचपन मेरा भी

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  23. Shararatein wahi rehti hain.. labaade badal jaate hain :)

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  24. बहुत कुछ बचपन की याद दिला दी

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  25. बहुत खूब :) :)

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