मित्र नीम-
तुम्हें कड़वा क्यों
कहा जाता है
....
तुम्हें तो सदा
मीठी यादों से
ही जुड़ा पाया
...
बचपन के वे
दिन जब
गर्मियों की छुट्टियों
में
कच्ची मिटटी की गोद
में -
तुम्हारी ममता बरसाती
छाँव में ,
कभी कोयल की
कुहुक से कुहुक
मिला उसे चिढ़ाते
-
कभी खटिया की अर्द्वाइन
ढीली कर
बारी बारी से
झूला झुलाते
और रोज़ सज़ा
पाते
कच्ची अमिया की फाँकों
में नमक मिर्च
लगा
इंतज़ार में गिट्टे
खेलते -
और रिसती खटास को
चटखारे ले खाते....
भूतों की कहानियाँ
...हमेशा तुमसे जुड़ी रहतीं
एक डर..एक
कौतुहल ..एक रोमांच
-
हमेशा तुम्हारे इर्द गिर्द
मंडराता
और हम...
अँधेरे में आँखें
गढ़ा
कुछ डरे... कुछ सहमे
तुम्हारे आसपास
घुंघरुओं के स्वर
और आकृतियाँ खोजते
....
समय बीता -
अब नीम की
ओट से चाँद
को
अठखेलियाँ करता
पाते-
सिहरते ..शर्माते -
चांदनी से बतियाते
-
और कुछ जिज्ञासु
अहसासों को
निम्बोरियाओं
सा खिला पाते ......
तुम सदैव एक
अन्तरंग मित्र रहे
कभी चोट और
टीसों पर मरहम
बन
कभी सौंदर्य प्रसाधन का
लेप बन
तेज़ ज्वर में
तुम्हें ही सिरहाने
पाया
तुम्हारे स्पर्श ने हर
कष्ट दूर भगाया
यही सब सोच
मन उदास हो
जाता है
इतनी मिठास के बाद
भी
तुम्हें क्यों कड़वा कहा
जाता है ...!!!!
बहुत सुंदर ..... नीम पर कभी मैंने भी लिखा था .... एक पुरानी रचना पेश कर रही हूँ ----
ReplyDeleteमैंने एक दिन
नीम के पेड़ से पूछा
कि भाई -
तुम कड़वे क्यों हो ?
उसने मेरी तरफ़
आश्चर्य से देखा
मैं उसकी ओर ही
निहार रही थी
उसके उत्तर के लिए
मैं प्रतीक्षारत थी ।
मुझे लगा कि
उसके सारे अस्तित्व में
एक व्याकुलता भर गई है ।
उसकी पत्ती - पत्ती जैसे
व्यथित हो गई है ।
आकुल हो तब वह बोला -
हाँ ! मैं कड़वा हूँ।
लेकिन तब ही तो तुम
दूसरे तत्वों में
मीठे का अहसास
कर पाते हो ।
मैं कितने रोगों की दवा हूँ
तभी तो तुम जी पाते हो ।
ज़रा तुम मेरे फूल -फल और पत्ते खाओ
और फिर तुम कहीं का भी पानी लाओ
और उसे पी कर बताओ
कि वो पानी कैसा है ?
शर्त के साथ कहता हूँ कि
वो तुमको मीठा ही लगेगा ।
तो हे मेरे प्रश्नकर्ता !
मैं ख़ुद को कड़वा रखता हूँ
लेकिन दूसरे की तासीर
मीठी कर देता हूँ।
यह सुन मैं सोचती हूँ
कि शायद सच भी
इसीलिए कड़वा होता है.
Deleteबहुत सुन्दर रचना संगीताजी ....साँझा करने के लिए बहुत बहुत आभार
यही सब सोच मन उदास हो जाता है
ReplyDeleteइतनी मिठास के बाद भी
तुम्हें क्यों कड़वा कहा जाता है ...!!!!
बेहद गहन भाव !!!! इतनी मिठास के बाद भी क्यूँ कड़वा कहा जाता है .. सही कहा
नीम की कड़वाहट तो सर माथे....
ReplyDelete:-)
सुन्दर भावनात्मक रचना.
सादर
अनु
यही सब सोच मन उदास हो जाता है
ReplyDeleteइतनी मिठास के बाद भी
तुम्हें क्यों कड़वा कहा जाता है ...!!!!
satya bhale hi kadwa hota hai par uska phal meetha hota hai ..bahut badhiya ...
वाह बहुत सुन्दर :-))
ReplyDeleteतुम सदैव एक अन्तरंग मित्र रहे
ReplyDeleteकभी चोट और टीसों पर मरहम बन....
बहुत सुन्दर ....
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार(25-5-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
ReplyDeleteसूचनार्थ!
रचना का चयन करने के लिए हार्दिक आभार वंदनाजी
Deleteनीम सी गुडकारी रचना, और मीठे से आपके शब्द .
ReplyDeleteek niboli jaisee rachna.. :)
ReplyDeletemanmohak
Nimboli .. jaisee kadwi nahi.. nimboli jaisee swasthyavardhak.. andar tak khush karne wali ...
ReplyDeleteलाजवाब अभिव्यक्ति | बहुत सुन्दर | आभार
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
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अपने घर के सामने वाला नीम का पेड़ याद आ गया.... :-)
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना भाभी!
<3
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति बेहतरीन रचना,,,
ReplyDeleteRecent post: जनता सबक सिखायेगी...
माँ की डांट जैसा बाहर से कड़वी लेकिन बहुत शीतल और गुणकारी नीम और उतने ही मीठे आपके शब्द...बहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteतभी तो लोक-गीतों में 'निमिया तर मैको , महुआ तर ससुरो' कहते हैं
ReplyDeleteस्वाद कड़वी तासीर मीठा -बहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteatest post: बादल तू जल्दी आना रे!
latest postअनुभूति : विविधा
नीम का पेड़ हमारे गांव में भी घर के पास हुआ करता था... हम भूल ही चुके थे; आपने फिर याद दिला दिया......
ReplyDeleteआपकी और संगीता जी की भी रचना बहुत अच्छी लगी.. बहुत ही सुन्दर..
ReplyDeleteरचना को इस योग्य समझने के लिए बहुत बहुत आभार शिवमजी
ReplyDeleteसच...क्यों कहते हैं नीम को कड़वा..हमारी भी यादें जुड़ी हैं इससे
ReplyDeleteआपने मित्र और मित्रता को बहुत खूबसूरती से गुणों के प्रतीकों संग पिरोया है सुप्रभात ********
ReplyDeleteसुन्दर रचना सरस जी
ReplyDeleteएक प्रेमपाती सा ।।
सुन्दर रचना सरस जी
ReplyDeleteएक प्रेमपाती सा ।।
सुन्दर रचना सरस जी
ReplyDeleteएक प्रेमपाती सा ।।
नीम जितनी कड़वी होती है उतनी ही मीठी होती है
ReplyDeleteआपने नीम का सुंदर वर्णन तो किया ही है ,साथ ही इसे जीवन से भी जोड़ दिया है
और गजब की व्याख्या की है
सादर
आग्रह है---
तपती गरमी जेठ मास में---
Pahli baar aapke blogpe aayi hun....bahut pyara laga!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और सार्थक रचना
ReplyDeleteकड़वा है सत्य की तरह - जो जीवन देता है
ReplyDeleteनीम तो गुणों की खान है. सुंदर कविता, सार्थक सन्देश.
ReplyDeleteनीम चाहे जितना भी कडुआ हो इसको नकारना आसान नहीं ...
ReplyDeleteसार्थक सन्देश देती है रचना ...
bahut sundar prastuti .aabhar
ReplyDeleteपता नहीं इतने गुण होने पर भी नीम को कड़वेपन से क्यों जोड़ा जाता है...बहुत सुन्दर प्रवाहमयी रचना...
ReplyDeleteकड़वा ही भला ...
ReplyDeleteबेहतरीन भावाभिव्यक्ति !
बहुत प्यारी सी रचना है ....भगवान ने कोई व्यर्थ चीज बनाई ही नहीं है
ReplyDeleteयह तो देखने वालों का दृष्टिकोण है नीम कडवा क्यों है ? मीठा क्यों नहीं है
कोई इसमें बहुत सारे औषधि गुण भी ढूंढ़ते है ...इन सब तर्कों से दूर नीम अपने निबोरियों की कड़वाहट के साथ खुश है किसी के साथ कोई प्रतियोगिता नहीं करता !
आपने तो बहुत बढ़िया भावनात्मक रिश्ता बनाया है इसके साथ ..सुन्दर !
sangita ji ki kavita bhi sundar hai !
ReplyDeletemeri tippani spam me dekhiye !
ReplyDeleteनीम से अनोखा संवाद..सुंदर कविता..
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत रचना ....
ReplyDeleteआपके बहाने संगीता जी की भी नीम पर लिखी रचना पढने को मिली ....
आभार ....!!
यादों से जुदा नीम का पेड़...
ReplyDeleteपेड़ हम से किसी न किसी रूप में जुड़े होते और शायद यादें भी एक जरिया ही है पेड़ों से जुड़ने का...