हमें और कितना
तोड़ोगे -
मरोड़ोगे-
हमारी सहजता को द्विअर्थी जामा पहना-
और कितना तिरस्कृत करोगे ...!
यूँ तो एक अबोध बालक भी
अपनी हर बात कह लेता है
एक मूक जानवर
अपनी हर ज़रुरत जता देता है,
फिर शब्दों की क्या दरकार...!
हमारी उत्पत्ति, तुम्हारे लिए ही हुई ...
विचारों को बांटने के लिए-
अपनी बात समझाने के लिए
एक सभ्य समाज के निर्माण के लिए
लेकिन तुमने -
हमारा दुरूपयोग किया..!
हमसे अपना वर्चस्व स्थापित कर
हमीं पर लांछन गढ़ दिया -
कभी लोगों को बरगलाया
झूठे वादों में उन्हें उलझाया
और अर्थों का अनर्थ कर डाला.
जानते थे प्यार की ताक़त को
तुमने फिर भी ज़हर फैलाया
मनों में.....
सीमाओं पर उसे बोया
और हमको परास्त किया ...!
सुनो ...
अब भी मानो
हमें पहचानो
हम कुछ भी कर सकते हैं
हर ज़ुल्म से दो हाथ कर सकते हैं -
हमें बेचारा ...कमज़ोर, न समझना
हम सियासत का रुख बदल सकते हैं ...!!!
सुन्दर ...सुदृढ़ अभिव्यक्ति सरस जी ....!!
ReplyDeleteहर ज़ुल्म से दो हाथ कर सकते हैं -
ReplyDeleteहमें बेचारा ...कमज़ोर, न समझना
हम सियासत का रुख बदल सकते हैं ...!!!
बहुत सुंदर लाजबाब प्रस्तुति,,,
RECENT POST: जिन्दगी,
सच है ..शब्द तो हैं हीं, उनके भाव समझना हमारा काम है. बहुत सुन्दर बात कही है .
ReplyDeleteहम कुछ भी कर सकते हैं
ReplyDelete-----------
सच...
आपकी यह रचना कल मंगलवार (18 -06-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार अरुण..
Deleteशब्दों की व्यथा कहें या फिर उनकी ताकत ....बहुत खूबसूरती से व्यक्त की है
ReplyDeleteसरस जी आपने .....बधाई...!
कोमल भावो की और मर्मस्पर्शी.. अभिवयक्ति .....
ReplyDeleteलाजवाब रचना
ReplyDeleteसच है इन शब्दों की ताकत को समझ के इनका इस्तिक्बाल करना चाहिए ...
ReplyDeleteये चाहें तो आग भी लगा सकते हैं ...
सुनो ...
ReplyDeleteअब भी मानो
हमें पहचानो
हम कुछ भी कर सकते हैं
हर ज़ुल्म से दो हाथ कर सकते हैं -
हमें बेचारा ...कमज़ोर, न समझना
हम सियासत का रुख बदल सकते हैं .
अंतर्मन की सीधी सच्ची बात
शब्दों की व्यथा का शब्दों से ही किया सुन्दर चित्रण आपने ....
ReplyDeleteकाश!!शब्दों के दर्द को सियासत के गलियारे में घूमते लोग समझ पाते....
शब्दों पर आए संकट को आपने सुंदर अभिव्यक्ति दी। आभार
ReplyDeleteशब्द को ब्रह्म कहा गया है .देखा जाय तो सारा ब्रह्मांड इन्हीं में समा जाता है.और तीर तलवार तथा तोप के गोलों से भी जो काम नहीं होता ,वह शब्दों के द्वारा संभव हो जाता है .
ReplyDeleteबस ज़रूरत है समझ कर उनका उपयोग करने की !
वाह.......बहुत खुबसूरत।
ReplyDeleteआपने लिखा....हमने पढ़ा
ReplyDeleteऔर लोग भी पढ़ें;
इसलिए आज 19/06/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक है http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
आप भी देख लीजिए एक नज़र ....
धन्यवाद!
इस योग्य समझने के लिए बहुत बहुत आभार यशवंत
Deleteसुंदर भावपूर्ण प्रस्तुति।।।
ReplyDelete"यूँ तो एक अबोध बालक भी
ReplyDeleteअपनी हर बात कह लेता है
एक मूक जानवर
अपनी हर ज़रुरत जता देता है,
फिर शब्दों की क्या दरकार...|"
लाजवाब रचना...बहुत बहुत बधाई...