....क्या मिला तुम्हें !
हर शाम अब दरवाज़े पर दस्तक न होगी-
ठहाकों की गूँज , हंसी की फुल्जडी न होगी
अब कौन कन्धों पर उन्हें अक्सर घुमायेगा
ऊँगली पकड़के उनकी, उन्हें चलना सिखाएगा
लाठी बनेगा कौन बुढ़ापे की उनकी -
कौन कन्धों पर रखकर उन्हें शमशान ले जायेगा
बहकावे में आ तुमने, उजाड़े हैं कई घर ....बोलो
....क्या मिला तुम्हें!
सपनों को कहाँ खोजें, नैनों में जो भरे थे
आंसू ही जिनके जीवन की अब धरोहर हैं
मासूम सी आँखों में -सवाल उठ खड़ा हुआ है
क्यों यह हुजूम आज मेरे घर में यूँ उमड़ा है ...
खिलने के दिनों में ,उजाड़े कई बचपन ....बोलो
....क्या मिला तुम्हें!
जीवन तो यूँही चलता है ...
फिर चलता रहेगा...
ज़ख्मों को ढांप हर कोई यूँ बढ़ता रहेगा-
दहशत ने रोका है कभी, न रोक पायेगा !
जीना तो है ज़रूरी - तू भी जान जायेगा !!
फिर अपनी आत्मा को बेच ...
.....क्या मिला तुम्हें -
लाखों की बददुआ को सींच...बोलो
....क्या मिला तुम्हें !!!!
dil ko jhkjhorne wali behtreen rchna,bdhai saras ji
ReplyDeleteकाश यह बात कोई आतंकवादियो और दहशत गर्दों से पूछे और वो इसका जवाब दे पायें तो शायद इस आतंकवाद को रोकने का कोई तरीका मिल जाये....बहुत ही सुंदर संवेदनशील अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteइन चीखते , सुलगते सवालों का जवाब दो ...
ReplyDeleteaapke blog per pehli baar aye hai bahut sunder........
ReplyDeleteVatvrikshha ke link se aapke blog pe pahucha... Rashmi di ki khoj .. :) bahut behtareen likhti hain aap:)
ReplyDeletebahut umda rachna,bdhai aap ko
Deletehttp://urvija.parikalpnaa.com/2012/02/blog-post_18.html?spref=fb
ReplyDeleteआप सबने मेरे प्रयास को सराहा ...अच्छा लगा...और अपनी बात एक दूसरे तक पहुँचाने का ये 'माध्यम' और भी अच्छा ! जब जब ब्लास्ट होंगे..तब तब, यह प्रश्न फन फैला देगा ....
ReplyDeleteकोमल भावो की अभिवयक्ति......
ReplyDeletesarthak rachna prashnon ke uttar mangti hui
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