Thursday, February 23, 2012

'माँ'

भावनाएं जब बह निकलती,
तोड़ कर हर बाँध को,
मौन...
स्वर बन स्फुटित करता -
अनकहे उदगार को .
शिशु की ऊँगली पकड़कर
जो बचाती चोट से..
देखकर पीड़ा उसीकी ..
व्यथित होती क्षोभ से .
डेनों में हरदम संजोकर
उम्र भर पाला जिसे ...
भेजकर परदेस...
अश्रु बह चले सन्देश ले...
नीड़ अपना जा सजाना ,
प्रेम और विश्वास पर ...
जो अडिग ,अक्षेय होकर
झेले झंजावात को...
सच तो यह है,
आह भी हलकी सी उठती है जहाँ ..
माँ का दिल ढाल बनकर ...
हो खड़ा जाता यहाँ !
यह सभी संकेत माँ के
प्रेम का प्रतिरूप हैं
जिसकी महिमा ...जिसकी शक्ति से
सभी अभिभूत हैं !!!!

15 comments:

  1. अभिभूत हूँ आपको पढ़कर..

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  2. वाह वाह बहुत सुन्दर रचना हम भी अभिभूत हुये।

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  3. गजब की कविता।
    बेहतरीन।

    सादर

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  4. kthy aur shilp dono hi drishti se uttm rchna bdhai swikar kren
    kropya meri maun rchna bhi dekhne ka ksht kren" ek blog sb ka "pr hai
    dr.vedvyathit@gmail.com
    09868842688

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  5. बहुत बहुत सुन्दर...कोमल सा रिश्ता..सुकोमल भाव....
    वाह सरस जी..

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  6. मॉं के बारे में जहां भी कभी पढ़ा मन को भावुक कर जाता है ... बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ।

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  7. मां से बढ़कर कोई नहीं... मां तो बस मां है...

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  8. मा के ऊपर कुछ भी लिखने के लिए शब्द कम पढ़ जाते हैं ....
    .. दिल को छू गयी आपकी रचना ...

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  9. माँ तो बस माँ...बहुत खूबसूरत प्रस्तुति| धन्यवाद।

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  10. खूबसूरत कविता...भाव भीनी...

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  11. सबसे पहले हमारे ब्लॉग 'जज्बात....दिल से दिल तक' पर आपकी टिप्पणी का तहेदिल से शुक्रिया.........आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ...........पहली ही पोस्ट दिल को छू गयी.......और आपकी प्रोफाइल ने भी प्रभावित किया.......सादगी भरा लगा सब कुछ........कितने खुबसूरत जज्बात डाल दिए हैं आपने..........बहुत खूब...........आज ही आपको फॉलो कर रहा हूँ ताकि आगे भी साथ बना रहे|.....आपके ब्लॉग का नाम और पीछे की तस्वीर भी बहुत अच्छी लगी ।

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  12. बहुत ही सुन्दर रचना...

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  13. शानदार भावपूर्ण अभिव्यक्ति.
    मन मग्न हो गया है पढकर.

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