मौज का साहिल से रह रहके टकरा जाना
ज़ब्त किसमें है...यह होड़ लगी हो जैसे -
यह है दीवानगी लहरों की...या बेरुखी साहिल की....
दोनों के जिस्म तार तार...रूहें चलनी हों जैसे...
चोट ऐसी जो एक उम्र तक दिखाई दे,
टुक्रों टुक्रों में हर सिम्त बही हो जैसे...
फिर भी मौजें हैं की दीवानावार साहिल से ,
अब भी टकराती हैं...टकराके पलट जाती हैं ....
इश्क का यह भी एक अंदाज़े-बयान देखा है ,
चोट पहुँचाना ही ...
जैसे शर्ते आशनाई है !!!!
ज़ब्त किसमें है...यह होड़ लगी हो जैसे -
यह है दीवानगी लहरों की...या बेरुखी साहिल की....
दोनों के जिस्म तार तार...रूहें चलनी हों जैसे...
चोट ऐसी जो एक उम्र तक दिखाई दे,
टुक्रों टुक्रों में हर सिम्त बही हो जैसे...
फिर भी मौजें हैं की दीवानावार साहिल से ,
अब भी टकराती हैं...टकराके पलट जाती हैं ....
इश्क का यह भी एक अंदाज़े-बयान देखा है ,
चोट पहुँचाना ही ...
जैसे शर्ते आशनाई है !!!!
इश्क का यह भी एक अंदाज़े-बयान देखा है ,
ReplyDeleteचोट पहुँचाना ही .sundar..
यह है दीवानगी लहरों की...या बेरुखी साहिल की....
ReplyDeleteदोनों के जिस्म तार तार...रूहें चलनी हों जैसे...waah! ati sundar
bahut achhi abhivyakti
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...
ReplyDeleteवाकई!! जाने क्या सोच कर लहरें फिर साहिल को आती हैं...
बेहतरीन।
ReplyDeleteसादर
चोट पहुँचाना ही ...
ReplyDeleteजैसे शर्ते आशनाई है !!!!
बहुत खूब .... यह भी तो सोचा जा सकता है न कि लहरें आती हैं और साहिल से लिपट कर चली जाती हैं ....
अहा! आनंद आ गया।
ReplyDeleteनिम्न पंक्ति को नहीं समझ सका। खासकर शुरुआत के शब्द। टुक्रों टुक्रों में हर सिम्त बही हो जैसे...
टुक्रो शब्द के स्थान पर टुकड़ों पढ़ने पर स्थिति साफ़ हो जाती है ....टायपिंग के दौरान विकल्प चयन में कभी कभी असावधानी रह जाती है
Deleteचोट पहुँचाना ही ...
ReplyDeleteजैसे शर्ते आशनाई है !!!!
बहुत सुन्दर रचना... बधाई
rasprabha@gmail.com - yadi aap mere dwara sampadit kavy sangrah mein shamil hona chahti hain to sampark karen
ReplyDeleteकल 27/02/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
इश्क का यह भी एक अंदाज़े-बयान देखा है ,
ReplyDeleteचोट पहुँचाना ही ...
जैसे शर्ते आशनाई है wah...kya kahne..
सुन्दर!
ReplyDeleteचोट पहुँचाना ही ...
ReplyDeleteजैसे शर्ते आशनाई है !!!!
सुन्दर!
wah...bahut sundar..bahut khoob
ReplyDeleteइश्क का यह भी एक अंदाज़े-बयान देखा है ,
ReplyDeleteचोट पहुँचाना ही ...
जैसे शर्ते आशनाई है !!!!
शानदार प्रस्तुति
बहुत खूब !
ReplyDeletebahut hi sundar abhivykti...
ReplyDeleteआपके भाव और शब्द प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं,
ReplyDeleteहर शब्द अनुपम,हर भाव उत्तम.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
प्रथम बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ.
बहुत अच्छा लगा आपकी प्रस्तुति पढकर.
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है.
bahut khoobsurat..
ReplyDeleteअब भी टकराती हैं...टकराके पलट जाती हैं ....
ReplyDeleteइश्क का यह भी एक अंदाज़े-बयान देखा है ,
चोट पहुँचाना ही ...
जैसे शर्ते आशनाई है !!!!बहुत सुंदर पंक्तियाँ
बहुत बढ़िया सराहनीय प्रस्तुति,सुंदर रचना के लिए बधाई .
सरस जी,आपके पोस्ट में आना सार्थक रहा,....
मै आपका फालोवर बन गया हूँ आप भी बने तो मुझे खुशी होगी,...
मेरे पोस्ट पर आने के लिए आभार,..इसी तरह स्नेह बनाए रखे......
NEW POST काव्यान्जलि ...: चिंगारी...
इश्क का यह भी एक अंदाज़े-बयान देखा है ,
ReplyDeleteचोट पहुँचाना ही ...
जैसे शर्ते आशनाई है !!!!
THE WAY OF EXPRESSION OF EMOTIONS SUPERB.
HIGHT OF LOVE .
वाह !! बहुत ही सुन्दर !!
ReplyDeleteआप की यह रचना ब्लॉग पत्रिका चिरंतन के " समुन्दर " अंक में 8/6/12 को प्रकाशित की जा रही है. आभार.
ReplyDeleteBlog link - sachswapna.blogspot.com