Saturday, February 25, 2012

ज़िद

मौज का साहिल से रह रहके टकरा जाना
ज़ब्त किसमें है...यह होड़ लगी हो जैसे -
यह है दीवानगी लहरों की...या बेरुखी साहिल की....
दोनों के जिस्म तार तार...रूहें चलनी हों जैसे...
चोट ऐसी जो एक उम्र तक दिखाई दे,
टुक्रों टुक्रों में हर सिम्त बही हो जैसे...
फिर भी मौजें हैं की दीवानावार साहिल से ,
अब भी टकराती हैं...टकराके पलट जाती हैं ....
इश्क का यह भी एक अंदाज़े-बयान देखा है ,
चोट पहुँचाना ही ...
जैसे शर्ते आशनाई है !!!!

24 comments:

  1. इश्क का यह भी एक अंदाज़े-बयान देखा है ,
    चोट पहुँचाना ही .sundar..

    ReplyDelete
  2. यह है दीवानगी लहरों की...या बेरुखी साहिल की....
    दोनों के जिस्म तार तार...रूहें चलनी हों जैसे...waah! ati sundar

    ReplyDelete
  3. बहुत सुन्दर...
    वाकई!! जाने क्या सोच कर लहरें फिर साहिल को आती हैं...

    ReplyDelete
  4. चोट पहुँचाना ही ...
    जैसे शर्ते आशनाई है !!!!

    बहुत खूब .... यह भी तो सोचा जा सकता है न कि लहरें आती हैं और साहिल से लिपट कर चली जाती हैं ....

    ReplyDelete
  5. अहा! आनंद आ गया।
    निम्न पंक्ति को नहीं समझ सका। खासकर शुरुआत के शब्द। टुक्रों टुक्रों में हर सिम्त बही हो जैसे...

    ReplyDelete
    Replies
    1. टुक्रो शब्द के स्थान पर टुकड़ों पढ़ने पर स्थिति साफ़ हो जाती है ....टायपिंग के दौरान विकल्प चयन में कभी कभी असावधानी रह जाती है

      Delete
  6. चोट पहुँचाना ही ...
    जैसे शर्ते आशनाई है !!!!

    बहुत सुन्दर रचना... बधाई

    ReplyDelete
  7. rasprabha@gmail.com - yadi aap mere dwara sampadit kavy sangrah mein shamil hona chahti hain to sampark karen

    ReplyDelete
  8. कल 27/02/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

    ReplyDelete
  9. इश्क का यह भी एक अंदाज़े-बयान देखा है ,
    चोट पहुँचाना ही ...
    जैसे शर्ते आशनाई है wah...kya kahne..

    ReplyDelete
  10. चोट पहुँचाना ही ...
    जैसे शर्ते आशनाई है !!!!

    सुन्दर!

    ReplyDelete
  11. इश्क का यह भी एक अंदाज़े-बयान देखा है ,
    चोट पहुँचाना ही ...
    जैसे शर्ते आशनाई है !!!!

    शानदार प्रस्तुति

    ReplyDelete
  12. बहुत खूब !

    ReplyDelete
  13. आपके भाव और शब्द प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं,
    हर शब्द अनुपम,हर भाव उत्तम.

    सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.

    प्रथम बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ.
    बहुत अच्छा लगा आपकी प्रस्तुति पढकर.

    मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है.

    ReplyDelete
  14. अब भी टकराती हैं...टकराके पलट जाती हैं ....
    इश्क का यह भी एक अंदाज़े-बयान देखा है ,
    चोट पहुँचाना ही ...
    जैसे शर्ते आशनाई है !!!!बहुत सुंदर पंक्तियाँ
    बहुत बढ़िया सराहनीय प्रस्तुति,सुंदर रचना के लिए बधाई .
    सरस जी,आपके पोस्ट में आना सार्थक रहा,....
    मै आपका फालोवर बन गया हूँ आप भी बने तो मुझे खुशी होगी,...
    मेरे पोस्ट पर आने के लिए आभार,..इसी तरह स्नेह बनाए रखे......

    NEW POST काव्यान्जलि ...: चिंगारी...

    ReplyDelete
  15. इश्क का यह भी एक अंदाज़े-बयान देखा है ,
    चोट पहुँचाना ही ...
    जैसे शर्ते आशनाई है !!!!
    THE WAY OF EXPRESSION OF EMOTIONS SUPERB.
    HIGHT OF LOVE .

    ReplyDelete
  16. वाह !! बहुत ही सुन्दर !!

    ReplyDelete
  17. आप की यह रचना ब्लॉग पत्रिका चिरंतन के " समुन्दर " अंक में 8/6/12 को प्रकाशित की जा रही है. आभार.
    Blog link - sachswapna.blogspot.com

    ReplyDelete