यह जो रेत पर पड़ी शिलाएं हैं -
यह वह सेतु है जो तुम तलक पहुँचता था..
जिन पे पाँव टिक न पाते थे कभी...
पंख बन तुमसे जा मिलाता था !
तुमने कई बार उसको छूकर ही -
मन की गहराइयों को नापा था
तुमने भी भरके रेत गड्ढों में-
बीच की हर कमी को पाटा था...!
आज फिर क्या हुआ अचानक जो-
बीच की रेत यूहीं ढहने लगी-
टूटकर वह शिलाएं चुपकेसे
अपने अपने रास्तों पे बहने लगीं ?
अब तो जब भी पलटके देखती हूँ तो
पाती हूँ उनको इतना टूटा सा
नेस्तेनाबूत करके जैसे कोई -
अपनी बेचारगी पे रोता है.....
यह वह सेतु है जो तुम तलक पहुँचता था..
जिन पे पाँव टिक न पाते थे कभी...
पंख बन तुमसे जा मिलाता था !
तुमने कई बार उसको छूकर ही -
मन की गहराइयों को नापा था
तुमने भी भरके रेत गड्ढों में-
बीच की हर कमी को पाटा था...!
आज फिर क्या हुआ अचानक जो-
बीच की रेत यूहीं ढहने लगी-
टूटकर वह शिलाएं चुपकेसे
अपने अपने रास्तों पे बहने लगीं ?
अब तो जब भी पलटके देखती हूँ तो
पाती हूँ उनको इतना टूटा सा
नेस्तेनाबूत करके जैसे कोई -
अपनी बेचारगी पे रोता है.....
बहुत खूब लिखा है
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर..
ReplyDeleteनई पोस्ट पर आपका स्वागत है !
सबसे पहले दक्ष को जन्मदिन की ढेर सारी शुभकामनायें.!!
Active Life Blog
क्या ख्यालों की बुरादें मजबूत नहीं होतीं ?
ReplyDeleteलेकिन यहाँ बात भावनओंकी और पूर्ण समर्पण की है ....अगर उसमें किसी की भी तरफसे ज़रा सी भी कसर रह जाती है तो सब कुछ बिखर जाता है ...!!!
Deleteसुंदर रचना.....
ReplyDeleteहम्म....
ReplyDeleteसोच में डाल दिया...
अच्छे भाव...
सादर.
सुंदर रचना.अच्छे भाव,
ReplyDeleteसादर....
रचना का शीर्षक पूरी रचना पर छाया हुआ है.....बहुत सुन्दर
ReplyDeleteटूटकर वह शिलाएं चुपकेसे
ReplyDeleteअपने अपने रास्तों पे बहने लगीं ?
अब तो जब भी पलटके देखती हूँ तो
पाती हूँ उनको इतना टूटा सा
नेस्तेनाबूत करके जैसे कोई -
अपनी बेचारगी पे रोता है.....
सुंदर भाव की बहुत अच्छी रचना....
समर्थक बन गया हूँ आप भी बने मुझे खुशी होगी,...
NEW POST काव्यान्जलि ...: चिंगारी...
तुमने भी भरके रेत गड्ढों में-
ReplyDeleteबीच की हर कमी को पाटा था...!
रेत के साथ सीमेंट की ज़रूरत थी ... बहुत खूबसूरती से उकेरी हैं भावनाएं
बहुत ही सुंदर पंक्तियाँ ....गहरी अभिव्यक्ति
ReplyDeletebahut hi pyaari rachna hai ,FB par bhi saanjha kar rhi hun saras ji
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteसादर
रेत पर बने सेतु का ढहना भले ही उसकी नियति हो ,मन को सोच से भर देता है .
ReplyDeleteतुमने भी भरके रेत गड्ढों में-
ReplyDeleteबीच की हर कमी को पाटा था...!
SUNDAR RACHANA MAN KO JHANKRIT KARANEWALI .