Monday, February 27, 2012

सेतु

यह जो रेत पर पड़ी शिलाएं हैं -
यह वह सेतु है जो तुम तलक पहुँचता था..
जिन पे पाँव टिक न पाते थे कभी...
पंख बन तुमसे जा मिलाता था !
तुमने कई बार उसको छूकर ही -
मन की गहराइयों को नापा था
तुमने भी भरके रेत गड्ढों में-
बीच की हर कमी को पाटा था...!
आज फिर क्या हुआ अचानक जो-
बीच की रेत यूहीं ढहने  लगी-
टूटकर वह शिलाएं चुपकेसे
अपने अपने रास्तों पे बहने लगीं ?
अब तो जब भी पलटके देखती हूँ तो
पाती हूँ उनको इतना टूटा सा
नेस्तेनाबूत करके जैसे कोई -
अपनी बेचारगी पे रोता है.....

15 comments:

  1. बहुत खूब लिखा है

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  2. बहुत अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर..
    नई पोस्ट पर आपका स्वागत है !
    सबसे पहले दक्ष को जन्मदिन की ढेर सारी शुभकामनायें.!!
    Active Life Blog

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  3. क्या ख्यालों की बुरादें मजबूत नहीं होतीं ?

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    1. लेकिन यहाँ बात भावनओंकी और पूर्ण समर्पण की है ....अगर उसमें किसी की भी तरफसे ज़रा सी भी कसर रह जाती है तो सब कुछ बिखर जाता है ...!!!

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  4. हम्म....
    सोच में डाल दिया...
    अच्छे भाव...
    सादर.

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  5. सुंदर रचना.अच्छे भाव,
    सादर....

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  6. रचना का शीर्षक पूरी रचना पर छाया हुआ है.....बहुत सुन्दर

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  7. टूटकर वह शिलाएं चुपकेसे
    अपने अपने रास्तों पे बहने लगीं ?
    अब तो जब भी पलटके देखती हूँ तो
    पाती हूँ उनको इतना टूटा सा
    नेस्तेनाबूत करके जैसे कोई -
    अपनी बेचारगी पे रोता है.....

    सुंदर भाव की बहुत अच्छी रचना....
    समर्थक बन गया हूँ आप भी बने मुझे खुशी होगी,...

    NEW POST काव्यान्जलि ...: चिंगारी...

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  8. तुमने भी भरके रेत गड्ढों में-
    बीच की हर कमी को पाटा था...!

    रेत के साथ सीमेंट की ज़रूरत थी ... बहुत खूबसूरती से उकेरी हैं भावनाएं

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  9. बहुत ही सुंदर पंक्तियाँ ....गहरी अभिव्यक्ति

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  10. bahut hi pyaari rachna hai ,FB par bhi saanjha kar rhi hun saras ji

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  11. बहुत ही बढ़िया


    सादर

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  12. रेत पर बने सेतु का ढहना भले ही उसकी नियति हो ,मन को सोच से भर देता है .

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  13. तुमने भी भरके रेत गड्ढों में-
    बीच की हर कमी को पाटा था...!
    SUNDAR RACHANA MAN KO JHANKRIT KARANEWALI .

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