५४ साल लम्बी यादें........उतार चढ़ावों से भरीं, जिसमें बहुत कुछ बीता.....
कुछ फाँस सा असहनीय पीड़ा दे गया ....
कुछ अनायास ही खिल आनेवाली मुस्कराहट का सबब बन गया....
कुछ एक कविता बन मुखरित हो गया...
कुछ , बस यूहीं धूप में छाँव सा ठंडक पहुंचा गया ......
और यादों का यह काफिला , पृष्ट दर पृष्ट पूरा जीवन बन गया
जिसमें गाहे बगाहे, कुछ सुरीले, सुखद क्षण,
.....मेरे हिस्से की धूप बन गए.....
bahut hi sundar naam diya hai aap ne blog ko "mere hisse ki dhup"
ReplyDeleteDhanyavaad Avantiji
Deleteवाकई बहुत ही सुंदर नाम है ब्लॉग का
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteआपका ब्लॉग और लेखन यूं ही चलता रहे।
सादर
सुन्दर रचना से शुरुआत
ReplyDeleteक्या बात है सरस जी, एक सुन्दर शुरुआत!
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर सृजन
ReplyDeleteसुन्दर भाव...सुन्दर रचना...
बहुत सुंदर.......................
ReplyDeleteअनु
वाह ....अपने हिस्से की धूप ...
ReplyDeleteसुंदर वर्णन ....
आभार सरस जी एवम शुभकामनायें भी ...