Sunday, February 19, 2012

मैं और तुम
अस्फुट शब्दों से निकले ,
अर्थहीन ,
अगम्य ,
कटे हुए,
स्वर बन गए हैं.
अपनी मान्यताओं द्वारा विभाजित ...
मुक़दमे की पैरवी करते हुए
पक्ष और विपक्ष ,
बस यही हमारे सम्बन्ध हैं...!

8 comments:

  1. पक्ष और विपक्ष भी एक अर्थ रखते हैं

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  2. रश्मिजी आपकी प्रतिक्रिया पढ़कर बहुत अच्छा लगा. मैं अभी इस क्षेत्र में बिलकुल नई हूँ...एक शिशु ही समझ लीजिये, अपितु हूँ तो ५४ की...बस यूहीं ऊँगली पकड़कर मार्गदर्शन करती रहिये ...चलना भी सीख जाऊंगी...सच!....आपका हृदय से आभार

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  3. बेहतरीन...
    आपका लेखन बहुत अच्छा लगा मुझे..
    सादर.

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  4. सरस जी बहुत अच्छा लिखतीं हैं आप .....
    और ये क्षणिका तो छू गई ....


    मैं एक पत्रिका क्षणिका विशेषांक निकाल रही हूँ ...
    आप कुछ क्षनिकाएं अपने पते के साथ मुझे तुरंत में कर दें ....
    क्योंकि अंतिम तिथि पार हो चुकी है . मैं फिर भी कोशिश करुँगी ...

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  5. मेरी कविता को इस ब्लॉग पर स्थान देने के लिए बहुत बहुत आभार

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  6. beech mein naa dikhne waalee deewar
    kaun pahle tode
    aapas mein hod machee rahtee

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