५४ साल लम्बी यादें........उतार चढ़ावों से भरीं, जिसमें बहुत कुछ बीता.....
कुछ फाँस सा असहनीय पीड़ा दे गया ....
कुछ अनायास ही खिल आनेवाली मुस्कराहट का सबब बन गया....
कुछ एक कविता बन मुखरित हो गया...
कुछ , बस यूहीं धूप में छाँव सा ठंडक पहुंचा गया ......
और यादों का यह काफिला , पृष्ट दर पृष्ट पूरा जीवन बन गया
जिसमें गाहे बगाहे, कुछ सुरीले, सुखद क्षण,
.....मेरे हिस्से की धूप बन गए.....
Sunday, February 19, 2012
मैं और तुम
अस्फुट शब्दों से निकले ,
अर्थहीन ,
अगम्य ,
कटे हुए,
स्वर बन गए हैं.
अपनी मान्यताओं द्वारा विभाजित ...
मुक़दमे की पैरवी करते हुए
पक्ष और विपक्ष ,
बस यही हमारे सम्बन्ध हैं...!
रश्मिजी आपकी प्रतिक्रिया पढ़कर बहुत अच्छा लगा. मैं अभी इस क्षेत्र में बिलकुल नई हूँ...एक शिशु ही समझ लीजिये, अपितु हूँ तो ५४ की...बस यूहीं ऊँगली पकड़कर मार्गदर्शन करती रहिये ...चलना भी सीख जाऊंगी...सच!....आपका हृदय से आभार
सरस जी बहुत अच्छा लिखतीं हैं आप ..... और ये क्षणिका तो छू गई ....
मैं एक पत्रिका क्षणिका विशेषांक निकाल रही हूँ ... आप कुछ क्षनिकाएं अपने पते के साथ मुझे तुरंत में कर दें .... क्योंकि अंतिम तिथि पार हो चुकी है . मैं फिर भी कोशिश करुँगी ...
पक्ष और विपक्ष भी एक अर्थ रखते हैं
ReplyDeleteरश्मिजी आपकी प्रतिक्रिया पढ़कर बहुत अच्छा लगा. मैं अभी इस क्षेत्र में बिलकुल नई हूँ...एक शिशु ही समझ लीजिये, अपितु हूँ तो ५४ की...बस यूहीं ऊँगली पकड़कर मार्गदर्शन करती रहिये ...चलना भी सीख जाऊंगी...सच!....आपका हृदय से आभार
ReplyDeleteबेहतरीन...
ReplyDeleteआपका लेखन बहुत अच्छा लगा मुझे..
सादर.
सरस जी बहुत अच्छा लिखतीं हैं आप .....
ReplyDeleteऔर ये क्षणिका तो छू गई ....
मैं एक पत्रिका क्षणिका विशेषांक निकाल रही हूँ ...
आप कुछ क्षनिकाएं अपने पते के साथ मुझे तुरंत में कर दें ....
क्योंकि अंतिम तिथि पार हो चुकी है . मैं फिर भी कोशिश करुँगी ...
बेहतरीन लेखन
ReplyDeleteमेरी कविता को इस ब्लॉग पर स्थान देने के लिए बहुत बहुत आभार
ReplyDeletebeech mein naa dikhne waalee deewar
ReplyDeletekaun pahle tode
aapas mein hod machee rahtee
Excellent!!
ReplyDeleteRegards.