Wednesday, February 29, 2012

प्रीति

बगुलों के पंखों पर बैठी वह -
चुपके से घर आयी -
आंगन के नीम के पत्तों पर -
एक स्मित हास सी छाई..
चंदा से छिटकी ,
रूठके वह,
जब सिरहाने आ बैठी-
तो बीती यादें बेला बन
हर सू आँगन में महकीं
चंदा ने मनुहार कर ..
फिर उसको पास बुलाया -
पौ फटते ही ...फिर चांदनी को अपने पास ही पाया...

5 comments: