हम दोनों के बीच,
- यह मौन-
क्या तोडा नहीं जा सकता?
क्या शब्दों के वे सारे सेतु
जो हमें कल तक बांधे थे,
-टूट गए ?
याद है वह जगह
जहांसे कई झरने फूटे
और समंदर में खो गए -
वह झरने जो आसपास के लोगों को भी बहा ले जाते!
अब हैं
शून्य में गढ़ी चार आंखें
चार अनजान हाथ !
तुम्हारे इन्ही हाथों के स्पर्श से,
असंख्य सितार बज उठते
तुम्हारे करीब बैठी,
सिगरेट के धुंए में नित नए आकर खोजती!
वे सुरीले क्षण अब नहीं सधते-
क्यों न हम-
इस जड़ता, इस मौन को परे धकेल,
नए शब्दों,
नए संबोधनों की तलाश करें,
फिर एक,
नया सेतु ही क्यों न बनान पड़े!
क्यूँ का एक नयी शुरुआत करें.....शुभ शुरुआत...
ReplyDeleteसुन्दर रचना...
क्यूँ ना एक नयी शुरुआत करें...शुभ शुरुआत...
ReplyDeleteसुन्दर रचना..
नहीं रहा जो कुछ भला, दीजै ताहि भुलाय ।
ReplyDeleteनई एक शुरुवात कर, सेतु नवीन बनाय ।।
दिनेश की टिप्पणी : आपका लिंक
dineshkidillagi.blogspot.com
नए सेतु की तलाश ... मन के भावों को खूबसूरती से उकेरा है ...
ReplyDeleteबहुत ही बढिया।
ReplyDeleteनये सेतु की तलाश ………बहुत खूबसूरत अहसास
ReplyDeleteअब हैं
ReplyDeleteशून्य में गढ़ी चार आंखें
चार अनजान हाथ !
तुम्हारे इन्ही हाथों के स्पर्श से,
असंख्य सितार बज उठते.....
बहुत बढ़िया प्रस्तुति,भावपूर्ण सुंदर अहसास ,...
RESENT POST...काव्यान्जलि ...: बसंती रंग छा गया,...
बहुत मुश्किल होता है टूटे हुए को जोड़ना.......सुन्दर पोस्ट।
ReplyDeleteआदरणीय सरस जी
ReplyDeleteनमस्कार !
निःशब्द कर दिया इस रचना ने
जरूरी कार्यो के ब्लॉगजगत से दूर था
आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ !
यह कविता एक प्रकार से निराशावादिता के विरुद्ध आशावादिता का प्रचार है।
ReplyDeleteसजी मँच पे चरफरी, चटक स्वाद की चाट |
ReplyDeleteचटकारे ले लो तनिक, रविकर जोहे बाट ||
बुधवारीय चर्चा-मँच
charchamanch.blogspot.com
Saras ji,
ReplyDeletesaarthak aur sakaraatmak soch. sahi kaha jivan mein naye setu zaroori hai...taaki zindagi jaari rahe. bahut shubhkaamnaayen.
क्यों न हम-
ReplyDeleteइस जड़ता, इस मौन को परे धकेल,
नए शब्दों,
नए संबोधनों की तलाश करें,
फिर एक,
नया सेतु ही क्यों न बनान पड़े!
powerful expression with deep emotions.
man ke bhaavon ko aashavadita ka aavaran chadha kar ki gai prastuti lajabaab hai hardik aabhar ki aap mere blog par aai jisse aapke is sundar blog ka pata chala chaliye milte rahenge.
ReplyDeleteकल 22/03/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल (संगीता स्वरूप जी की प्रस्तुति में) पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
बहुत खूबसूरत...
ReplyDeletebahut khoobsurat rachna......
ReplyDeletebahut hi sundar srijan ..badhai
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर सृजन...अंतिम पंक्तियों में कमाल का लिखा है आपने बधाई....
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरती से गुंथे हुए अद्भुत भाव....
ReplyDeleteसच है....सेतु बनाना दीवारें बनाने से हमेशा बेहतर है....किसी भी परिश्थिति में .
ReplyDeleteबहुत सार्थक सोच और उसकी प्रभावपूर्ण अभिव्यक्ति..आभार
ReplyDeleteक्यों न हम-
ReplyDeleteइस जड़ता, इस मौन को परे धकेल,
नए शब्दों,
नए संबोधनों की तलाश करें,
फिर एक,
नया सेतु ही क्यों न बनान पड़े!
यही विकल्प व्यावहारिक भी है और उत्तम भी. सुंदर रचना.