चश्मा -
बचपन की आदतें-
कभी नहीं भूलतीं -
रंग बिरंगे चश्मे आँखों पर चढ़ा -
कितनी शान से घूमते थे -
जिस रंग का चश्मा -
उसी रंग की दुनिया -
सब कुछ एक ही रंग में ढला हुआ
कितना दिलचस्प लगता .
आदतें आज भी नहीं बदलीं
आज भी दुनिया को उसी तरह देखते है -
आँखों पर -
प्रेम-
द्वेष -
पक्षपात का चश्मा लगाये -
और रिश्तों को उसी रंग में ढला पाते हैं ...!
विश्वास -
एक सुन्दर रिश्ता -
एक अदृश्य डोर-
जो बांधे रहती है -
एक शिशु को ...माता पिता की ऊँगली से -
एक पत्नी को समर्पण से -
एक भक्त को ईश्वर से -
एक योद्धा को अपने अस्त्र से-
इस सृष्टि को अपने नियमों से -
सदा......!