राधा के महावरी पांवों को-
माधवने माथे धारा था
तब रुक्मिणी औए सत्यभामा से भी
ऊँचा स्थान दे डाला था -
राधा फिर भी आशंकित सी
कान्हा का प्रेम परखती थी -
जबकि कान्हा ने भक्ति में -
अपना सर्वस्व दे डाला था
है भक्तों को पाना मुझको
तो राधा नाम का स्मरण करें -
भक्ति होगी फलदायक तब
मुझसे पहले उसे नमन करें -
जिसको कहती निर्मोही वह
उसने यह वचन निभाया था -
कान्हा से पहले भक्तों ने
राधा का नाम पुकारा था .
जिस प्रकार सूर्य है कांतिहीन
जब किरणें पास नहीं उसके -
वैसे माधव अस्तित्वहीन
जब राधा साथ न थी उनके
इस दैवी निश्छल प्रेम का अर्थ
भक्तों से सदा अनजाना था -
इस अन्तरंग शक्ति को अपनी
माधवने सर्वस्व दे डाला था .