सलीब !
वह बोझ !
जिसे हर किसी को ढोना है
अलग अलग पड़ावों पर
अलग अलग रूपों में ....!!!
वह सज़ा !
जो समाज के ठेकेदारों ने
बेगुनाहों को दी है
बगैर सच जाने .....!!!
वह लेखा जोखा !
जहाँ अपने हर किये की
सफाई देनी होती है
समाज को ...खुद को ......!!!
वह सांत्वना !
जो कभी कभी
अपने ही पापों का बोझ
कुछ कम कर देती है .....!!!
वह उम्मीद का क़तरा !
जो इंसान की हिम्मत को
कुछ और ठेलता है -
'बस अब दर्द ख़त्म ही हुआ',समझाता हुआ ....!!!
वह ख़तरा !
जो हरदम अहसास दिलाता है
की जहाँ यह बोझ उतरा
तुम्हारा अंत नज़दीक है ......!!!
वह घाव !
जो अपनों के दिए दर्द हैं
जो कभी अनजाने में ...कभी जबरन
कर दिए थे ...रूह पर .......!!!
वह धरोहर !
जिसे सहेजना है
उम्र के आखरी पड़ाव तक
बिना रियायत .......!!!