Wednesday, February 27, 2013

-विनिमय-




कड़वाहटों  के बीच
तुमने अक्सर कहा है मुझसे
अपने आप को मेरी जगह रखकर देखो !
और मैंने रक्खा भी -
तुम्हारी वेदना समझी भी !
तुम्हारी उलझनें बांटी भी !
लेकिन क्या तुमने कभी कोशिश की ...

मैं जानती हूँ-
तुम्हारे लिए यह मुश्किल होगा !
क्योंकि उसके लिए चाहिए -
एक नारी ह्रदय -
उसकी संवेदनाएं -
वह दर्द -
कहाँसे लाते वे नर्म अहसास -
जो एक झिड़की से वाष्प बन
उपेक्षा की ठण्ड से बरस पड़ते हैं -
वह इक्षाएं -
जो बड़ी आतुरता से इंतज़ार करतीं
तुम्हारे माथे से सिलवटों के हटने का
और फिर अश्मिभूत हो जाती हैं
तह दर तह दबती ...
वह गदराई खुशियाँ
जो ढूँढतीं अपना अस्तित्व
तुम्हारी हर ख़ुशी में-
वह मन जो मान लेता
हर वह गलती -
जो तुम्हारे अहम् को पोस्ती है -

क्या यह सब  है -
तुम्हारे पास!!!
फिर कैसे कहूं तुमसे -
अपने आप को मेरी जगह रखकर देखो ..!!!!

Friday, February 22, 2013

क्षणिकाएं - (४)




    काश !

वह शब्द -
जो एक तिलस्मी दुनिया से
बड़ी बेरहमी से घसीटकर
सच की ज़मीन पर
ला पटकता है ..
और हम -
छितरे हुए अरमानों को समेट-
एक और मौके की बाट जोहते
इंतज़ार की लम्बी खोह में
रौशनी तलाशते रह जाते हैं
ज़िन्दगी भर .....!

   अहसास !

रुई के वे नर्म फाये !
जो हमदर्द बन
सोख लेते हैं -
हर दर्द....
हर आंसू....
हर ख़ुशी .....
और बन जाते हैं सौगात-
जीवन भर के ...!

             रुखसती !

वह अहसास
जो पर्त दर पर्त -
छीलता जाता है
लम्हें ...
यादें.....
खुशियाँ....
और उधेढ़ देता है वह सच
जो जज्बातों की तह में
छिपा रखे थे
अब तक ....!

Monday, February 18, 2013

दोस्ती




दुनिया में अजीबो गरीब दोस्त मिले
कोई हमशाख बने ...
कोई हमसोज़ बने ...
किसीने ग़मों को बांटा , अपना समझा -
किसीने दोस्ती में ज़ख्म बेशुमार दिए
कोई खिड़की की चौखट कभी हमसोज़ बनी
कभी चाँद तारों के झुरमुट ने ख्वाबगाह दिए
रिसते पानी के चंद कतरों ने
कभी हथेली पे सजाने को कई ख्वाब दिए
हलके झोके से गिरे शाख के नर्म फूलों ने
टूटकर हँसने के गुर न जाने कितनी बार दिए
और चप्पू से छिड़ी सतह की उन लहरों ने
बींधे जाने पे हँसने के सबब सौगात दिए
यही हमसोज़, यही हमशाख, मेरे हमराज़ यही
इन्हिने पीर सही ..दर्द जब ज़माने ने दिए ....!

Saturday, February 16, 2013

.....इस सियासत में !!!




देख आइने में अक्स अपना सोचता हूँ मैं
बदला है हालातों ने कितना इस सियासत में .

देखे थे फूल झड़ते सदा जिनकी बोली से
हाथों में उनके संग देखे इस सियासत में

दिलों में कौनसे ये पौधे उठ खड़े हैं आज
रिसता है हर एक फूल जिसका इस सियासत में 

भीड़ों में उठते हाथों की बंद मुट्ठियों को देख
ज़ुल्मों की इन्तहा को जाना इस सियासत में

परिंदों को दर बदर उड़ता देखते रहे
उजड़े जाने कितने चमन इस सियासत में