कड़वाहटों के बीच
तुमने अक्सर कहा है मुझसे
अपने आप को मेरी जगह रखकर देखो !
और मैंने रक्खा भी -
तुम्हारी वेदना समझी भी !
तुम्हारी उलझनें बांटी भी !
लेकिन क्या तुमने कभी कोशिश की ...
मैं जानती हूँ-
तुम्हारे लिए यह मुश्किल होगा !
क्योंकि उसके लिए चाहिए -
एक नारी ह्रदय -
उसकी संवेदनाएं -
वह दर्द -
कहाँसे लाते वे नर्म अहसास -
जो एक झिड़की से वाष्प बन
उपेक्षा की ठण्ड से बरस पड़ते हैं -
वह इक्षाएं -
जो बड़ी आतुरता से इंतज़ार करतीं
तुम्हारे माथे से सिलवटों के हटने का
और फिर अश्मिभूत हो जाती हैं
तह दर तह दबती ...
वह गदराई खुशियाँ
जो ढूँढतीं अपना अस्तित्व
तुम्हारी हर ख़ुशी में-
वह मन जो मान लेता
हर वह गलती -
जो तुम्हारे अहम् को पोस्ती है -
क्या यह सब है -
तुम्हारे पास!!!
फिर कैसे कहूं तुमसे -
अपने आप को मेरी जगह रखकर देखो ..!!!!