कौरवों के विनाश के बहुत दिनों पश्चात नारदजी ने श्री कृष्ण से प्रार्थना की कि जिस कार्यवश वे धरती पर अवतरित हुए थे वह तो पूर्ण हो गया ....इसलिए अब वे वैकुण्ठ को प्रस्थान करें .कृष्ण ने कहा " परन्तु अभी एक कार्य शेष है. यदुवंशी बल, विवेक, वीरता, शूरता और धन वैभव में उन्मत्त होकर सारी पृथ्वी को ग्रस लेने पर तुले हुए हैं ..इन्हें मैंने वैसे ही बांध रखा है जैसे सागर के तट को भूमिसे . यदि मैं घमंडी और उच्छ्श्रंखल, यदुवंशीओंका यह विशाल वंश नष्ट किये बिना ही चला गया, तो वे मर्यादा का उल्लंघन कर सारे लोकों का संहार कर डालेंगे. इनका अंत हो जाने पर मैं वैकुण्ठ को प्रस्थान कर जाऊँगा".
(श्रीमदभागवत पुराण अंक ६: २९, ३०, ३१ I पृष्ट ७४६ गीता प्रेस )
ठीक यही स्तिथि लंका की थी ......अब आगे (उन्ही के शब्दों में )......
रावण ने इतनी प्रलयंकारी शक्तियां उत्पन्न कर दीं थीं, जो उसकी मृत्यु के पश्चात् निरंकुश होकर सारी मानवता के लिए अभिशाप बन जातीं. यह बात रावण जान चुका था और उसने निश्चय कर लिया था कि अपनी मृत्यु के पूर्व वह इन सारी शक्तियों का विनाश कर देगा.
एक और प्रश्न जो उठता है .....वह यह कि क्या राम विष्णु के अवतार थे ?
रामायण के मूल लेखक वाल्मीकि के अनुसार , राम अवतार नहीं थे . वे एक आदर्श पुरुष थे, एक आदर्श पुत्र, एक आदर्श राजा और एक वीर राजकुमार . महाभारत में व्यास जी ने इस बात का समर्थन करते हुए गीता में कृष्ण से कहलाया है ,"पवित्र करने वालों में मैं वायु हूँ, शस्त्रधारियों में मैं दशरथ पुत्र राम हूँ."
( भगवदगीता १०: ३९ )
चक्रवर्ती राजगोपालाचारी के अनुसार भी "राम को पता नहीं था कि वे अवतार हैं, पर कृष्ण को पता था कि वे अवतार हैं. महाभारत और रामायण का अध्ययन करते समय यह भेद ध्यान में रखना आवश्यक है ."
( चक्रवर्ती राजगोपालाचारी )
तुलसीदासने रामको विष्णु का अवतार माना है. रावण भी राम को विष्णु का अवतार मानकर मन ही मन उनकी पूजा करता था .
रामचरित मानस में मंदोदरी को राम-भक्तिन के रूप में चित्रित किया गया है , जो अपने पति से एक नहीं पूरे ६ बार अनुरोध करती है कि वे सीता को वापस कर राम से संधि कर लें.एक बार सुन्दरकाण्ड में ३५:३ और ५ बार लंकाकाण्ड में ५:४, ६:३, ४< १३:४, १४, और १५.
केवल मंदोदरी ही नहीं मारीच (अरण्यकाण्ड २४:२, २५ और २६ ) और कुम्भकर्ण ( ६२:१,२, ३, और ४ ) ने भी रावण से कहा कि राम विष्णु के अवतार हैं; और सीता को वापस कर राम से क्षमा मांगने का अनुरोध किया था .
क्या यह संभव है कि मंदोदरी, विभीषण और कुम्भकर्ण जानते थे कि राम अवतार हैं और रावण जो सबसे बुद्धिमान था इस भेद से अनभिज्ञ था ? क्या यह विचारणीय नहीं है कि राम की शरण में जाने के प्रस्ताव पर वह केवल विभीषण पर रुष्ट हुआ था और भरी सभा में उसे लात मारी थी जबकि उसने मंदोदरी और कुम्भकर्ण को वही परामर्श देने पर एक भी अपशब्द नहीं कहा था ? रावण जानता था कि इतने अपमान और तिरस्कार के बाद विभीषण का जाकर राम से मिलना उसके लिए घातक सिद्ध हो सकता है. तो क्या उसने विभीषण का अपमान किसी गुप्त योजना के अंतर्गत किया था ?
एक नहीं अनेक रामायण और दूसरे ग्रंथों में यह उलेख है कि रावण जानता था कि राम विष्णु के अवतार हैं. अध्यात्म रामायण के युद्धकाण्ड में रावण मंदोदरी से कहता है कि वह रामको साक्षात् विष्णु और जानकी को भगवती लक्ष्मी जानता था. और यह जानकार ही राम के हाथों मरने के लिए वह सीता को तपोवन से बलपूर्वक ले आया था .
( अध्यात्म रामायण ६: ११: ५७ )
डोंगरे महाराजकी तत्वार्थ रामायण में लिखा है कि एक बार रावण ने मंदोदरी से कहा, " मैं जानता हूँ कि राम परमात्मा है, फिर भी उनसे बैर लिया है क्योंकि मैं अकेला बैठकर ध्यान करूंगा तो केवल मुझे ही मुक्ति मिलेगी; परन्तु अगर में रामचन्द्रजी के साथ विरोध करता हूँ तो मेरे संपूर्ण वंश का कल्याण होगा ."
कनरीज़ में लिखी तोर्वे रामायण के अनुसार रावण ने अंतिम बार युद्ध में जाने से पूर्व अपना सारा धन दान कर दिया था , कारावास के बंदी मुक्त कर दिये थे और यह कह गया था कि यदि वह युद्ध में मारा जाये तो उसके स्थान पर उसके 'विश्वासपात्र ' भाई विभीषण को लंका के सिंहासन पर बैठाया जाए .
( रामकथा ५९७)
( क्रमश: )