मेरी बेटी अब माँ बन गयी है
मेरी बेटी अब माँ बन गयी है
बचपन में
कई बार पोछें हैं मेरे आँसू
फ्रॉक के घेर से
ज़ख्मों पर फूँक मार
उड़ाकर दर्द को
हथेलियाँ नचा
काफूर कर दी है सारी पीड़ा...
अनेकों बार
छोटीसी गोद में सिर रख
दुलारा है मेरी थकन को
और भर दी है स्फूर्ति...
अब वह नन्ही
बड़ी हो गई है
नन्ही को सीने से लगा
हरती है उसकी पीड़ा
आँचल में छिपा
दुलारती है उसे
भरती है जीवन की ऊर्जा।
ताज्जुब करती है
माँ,
माँ बनना कितना सुखद होता है
एक विचित्र सा एहसास
मेरे खून, माँसपेशियों से बनी
मेरा अंश..!
मेरा अपना सृजन..!
अद्वितीय है
यह अनुभव माँ
निहारती हुए
हर हरकत पर भरमाते हुए
छिपा लेती है उसे दुनिया से
बुरी नज़र से दूर।
मेरी नन्ही अब माँ बन गयी है।
सरस दरबारी