यह हथेलियाँ...सच्ची हमदर्द
होती हैं
बिना कहे हर
बात जान लेती
हैं
हर आह...हर
सिसकी घुल जाती
है इन लकीरों
में
जब थके चेहरे
को ...वजूद से
अपने ढाँप लेती
हैं -
दुखते रहते जब
थकी पलकों के
फाये हैं -
नर्म गदेलियों से हर
दर्द वह सोख
लेती हैं -
दर्द हजारों जो पपोटों
में छिपे बैठे
हैं -
उन्हें टूटकर बहने को
ज़मीं देती हैं
-
जग की रुसवाइयां जब
हद से गुज़र
जाती हैं
हिचकियों को वह
आँचल में भींच
लेती हैं
या परास्त, थकी किस्मत
की लकीरों को
फिरसे सहलाकर ..जीने की
दिशा देती हैं-
सिर्फ ऐसा नहीं
की दुःख ही
वह साझा करतीं
हर ख़ुशी में
भी साथ देती
हैं
शर्म से लाल
हो गए गालों
को
मोहब्बत भरी आगोश
में पनाह देती
हैं ...!!!!