नीलाभवर्ण बादलों में छिपी बूँदें
वे ख़्वाब हैं
जो देखे थे हमने
कभी झील के किनारे उस बेंच पर
कभी बारिश में ठिठुरते हुए
तो कभी
तुम्हारी छूटती ट्रेन को दौड़कर पकड़ते हुए
सोचा न था कभी
वाष्प बन
वह हो जायेंगे दूर
हमारी पहुँच के परे
लेकिन
संवेदनाओं की नमी
उन्हें दूर न रख सकी
अब्र कणों से फिर बिछ गए
चहुँ ओर......