आज अपनी सौवीं पोस्ट लिख रही हूँ...जब २ फ़रवरी १९१२ में मैंने अपनी पहली पोस्ट लिखी थी ...तब एक आशंका ... एक झिझक जकड़े हुए थी ...पता नहीं लिख भी पाऊँगी कि नहीं, कोई पढ़ेगा भी कि नहीं...अपनी बात कह भी पाऊँगी कि नहीं .....
कॉलेज के ज़माने में लिखती थी ...उसके बाद विवाह हुआ ....और एक रोक लग गयी...सोच में ..कल्पना शक्ति में .....गुलाब के सुर्ख लाल रंग में मिर्च का रंग दिखाई देने लगा और सरसों के खेत घर की चारदीवारी में खो गए ...और फिर एक लम्बा अन्तराल ...३० साल बाद फिरसे लेखनी उठाई .....डरते ....सहमते ...
जब धीरे धीरे लोगों ने जाना, सराहा , पोस्ट को पढ़कर अपनी प्रतिक्रिया दी ....तो बहोत ख़ुशी हुई .....हिम्मत बढ़ी ....और मैंने अपने विचारों को परवाज़ देदी ...
फिर दोस्त बने....इस आभासी दुनिया में कुछ ऐसी शक्सियतें मिलीं ......जो बहुत अन्तरंग मित्र बन गयीं ...इनसे बहोत कुछ सीखा...और सीखती आ रही हूँ......जब सफ़र शुरू किया था तब अकेली थी ...पर अब बहोत सारे मित्रों का यह कारवां मेरी धरोहर ...मेरी ख़ुशी बन गया है ...किसी ने सखी कहा, किसी ने बेटी और किसी ने प्यार और अधिकार से 'दी' कहा तो किसी ने अग्रजा कहकर मान दिया .....
आज अपनी सौवीं पोस्ट लिखते हुए मुझे बेहद ख़ुशी हो रही है ...मित्रों आपका यह साथ सदा यूहीं बना रहे ...और आपका स्नेह, आपके क्रिटिसिज्म मुझे और अच्छा लिखने के लिए प्रेरित करते रहें ...बस यही चाहती हूँ...
आज बस इतना ही....:) :) :)