तक़दीर का वह बदरंग स्याह सा टुकड़ा
जो मुख़तलिफ़ रंगों में सदा ढलता है
कभी ममता का रंग ओढ़कर वह
अपनी लाड़ो को विदा करता है
और कभी ओढ़कर फ़र्ज़ की चादर
भस्के रिश्तों के पैबंदों को सीता है
जब मोहब्बतों को पहन इतराता है
तोहमत-औ-ज़ुल्म के हर बोझ को वह ढ़ोता है
तंग आ जाते जो ज़ीस्त की परेशानी से
थककर चूर हुए उस ज़हन को पनाह देता है
दर्द एक दोस्त भी है हमदर्द भी हमराज़ भी है
वह हर हाल में सिर्फ हमसे वफ़ा करता है ......!