आज तक जो
भी लिखा -
तुम से ही
जुड़ा था -
उसमें विरह था
...दूरियां थीं...शिकायतें थीं..
इंतज़ार था ...यादें थीं..
लेकिन प्रेम जैसा
कुछ भी नहीं
....
हो सकता है
वे जादुई शब्द
हमने एक दूसरे
से कभी कहे
ही नहीं-
लेकिन हर उस
पल जब एक
दूसरे की ज़रुरत
थी ...
हम थे...
नींद में
अक्सर तुम्हारा हाथ
खींचकर ...
सिरहाना बना
..आश्वस्त हो
सोई हूँ
.....
तुम्हारे घर देर
से पहुँचने पर
बैचैनी ...
और पहुँचते ही महायुद्ध
!
तुम्हारे कहे बगैर
-
तुम्हारी चिंताएं टोह लेना-
और तुम्हारा उन्हें यथा
संभव छिपाना
हर जन्म दिन
पर रजनी गंधा
और एक कार्ड
...
जानते हो उसके
बगैर -
मेरा जन्म दिन
अधूरा है
हम कभी हाथों
में हाथले
चांदनी रातों में नहीं
घूमे-
अलबत्ता दूर होने
पर
खिड़की की झिरी
से चाँद को
निहारा ज़रूर है
यही सोचकर की तुम
जहाँ भी हो
..
उसे देख मुझे
याद कर रहे
होगे....
यही तै किया
था न -
बरसों पहले
जब महीनों दूर रहने
के बाद -
कुछ पलों के
लिए मिला करते
थे
कितना समय गुज़र
गया
लेकिन आदतें आज भी
नहीं बदलीं
और इन्ही आदतों में
न जाने कब
--
प्यार शुमार हो गया
-
चुपके से ...
दबे पाँव.....