तुमने एक बार
फिर
उस सतह को
बींधा
जिसके नीचे दबे
थे
बहुत से अहसास-
अनगिनत सपने-
कुछ वादे-
कुछ टूटे
कुछ अनछुए-
कुछ कोशिशें-
उन्हें निभाने की
कुछ टुकड़े कमज़ोर पलों
के -
जो वक़्त से
छूटकर -
छितर गए थे
-
और साथ ही
बिखर गयी -
हर उम्मीद -
उन्हें दोबारा जीने की
-
न छेड़ा होता
उस शांत नीरव
सतह को -
तो हो सकता
है
सब कुछ -
वक़्त के बोझ
तले जो जाता
अश्मिभूत !
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रहता तो भीतर
ही...!!!