अनगिनत रंग , बिखरे पड़े थे सामने
दोस्ती....विरह....दुःख..समर्पण ...
और एक कोरा कैनवस
बनाना चाहा एक चित्र ....जीवन का
जब चित्र पूरा हुआ
तो पाया सभी रंग एक दूसरे से मिलकर
अपनी पहचान खो
चुके थे ..!
लाल ...पीले से मिलकर नारंगी हो गया था
पीले नीले में घुलकर हरा ...
नीला लाल में घुलकर बैंगनी .....
जीवन ऐसा ही
तो है
आज की ख़ुशी में हम -
कल की चिंताएँ मिलाकर-
बीते दुःख को
आज में शामिल कर -
प्यार और विश्वास में शक को
घोल
-
उसे ईर्ष्या ....अविश्वास में बदल देते हैं
और उस साफ़ सुथरे कैनवस पर
खिले रंगों को विकृत कर.... खोजते फिरते हैं
अर्थ...!!!!!!