Thursday, October 30, 2014

कैनवस





अनगिनत रंग , बिखरे पड़े थे सामने
दोस्ती....विरह....दुःख..समर्पण ...
और एक कोरा कैनवस
बनाना  चाहा एक चित्र ....जीवन का
जब चित्र पूरा हुआ
तो पाया सभी रंग एक दूसरे से मिलकर
अपनी पहचान खो चुके थे ..!
लाल ...पीले से मिलकर नारंगी हो गया था
पीले नीले में घुलकर हरा ...
नीला लाल में घुलकर बैंगनी .....
जीवन ऐसा ही तो है
आज की ख़ुशी में हम -
कल की चिंताएँ मिलाकर-
बीते दुःख को आज में शामिल कर -
प्यार और विश्वास में शक को घोल -
उसे ईर्ष्या ....अविश्वास में बदल देते हैं
और उस साफ़ सुथरे कैनवस पर
खिले रंगों को  विकृत कर.... खोजते फिरते हैं
अर्थ...!!!!!!




Thursday, October 9, 2014

जूनून



घंटों बीत जाते हैं सोचते सोचते
अगर ऐसा न होकर
कुछ ऐसा हुआ होता तो -
उसने यह न कहकर
 कुछ यह कहा होता तो -
तो मैं भी कुछ ऐसा कहती !
शनै: शनै:
मैं बादलों पर उतर आती
नर्म फाये तलवे गुदगुदाते
और ज़मीन कोसों दूर रह जाती
तभी सच के ठन्डे स्पर्श से
संक्षेपित-
मैं हरहराकर
ज़मीन से टकराती
पर वह चोट
रोक न पाती मुझे
अगले ही पल
वही सिलसिला फिर रवां हो जाता.....
जूनून जो ठहरा !

सरस