(१)
एक अनजाना चेहरा -
एक अज्ञात नाम -
लेकिन कमाल का जज़्बा-
फिर यह शिकायत क्यूं ,
की इंसानियत मर चुकी है ......!
(२)
मौन से बढ़िया साथी आज तक नहीं मिला
वह न रोकता है ...न टोकता है ..
बस मेरे मनकी सुनता है ....
न बहस करता है ...न उलझता है ...
न अपनी बात मनवाने की जिद्द करता है ...
मौन सिर्फ साथ देता है ...जब तक चाहो ...
जहाँ तक चाहो ....!!!!
(३)
शोर सुना है अक्सर -
-सर पीटती लहरों का
-अस्फुट , अर्थहीन नारों का
-विस्फोटों के खौफ का
- नूरा कुश्ती करते विचारों का ....
पर जो देहलाता है सबसे ज्यादा !
वह है शोर-
सन्नाटे का ...!!!
और सन्नाटे का शोर जाने कितना कुछ कहता है
ReplyDeleteबन जाता है सहयात्री, हमदम
खोलता है नए द्वार
आपकी टिप्पणी का रहता है सदा इंतज़ार .....बहुत बहुत आभार ...:)
ReplyDeleteऔर मौत का सन्नाटा????
ReplyDeleteओह! दिल दहलाता है..
हाँ तब मौन मन को बहलाता है...
बहुत अच्छी क्षणिकाएँ..
सादर
अनु
Thanks Anu...:)
Deletebahachchhi hai kshanikaaye ..
ReplyDeleteAabhar:)
Deleteशोर सुना है अक्सर -
ReplyDelete-सर पीटती लहरों का
-अस्फुट , अर्थहीन नारों का
-विस्फोटों के खौफ का
- नूरा कुश्ती करते विचारों का ....
पर जो देहलाता है सबसे ज्यादा !
वह है शोर-
सन्नाटे का ..
तीनों क्षणिकाएं अपने आप में पूर्ण अर्थों को बयां करती ..एक से एक खुबसूरत ..अद्भुत भावयुक्त .
बहुत बहुत आभार रमाकांत जी
Deleteशानदार , जानदार , दमदार ..तीनों :)
ReplyDelete:) :) :)
Deleteपर जो दहलाता है सबसे ज्यादा !
ReplyDeleteवह है शोर-
सन्नाटे का ...!!!
गागर में सागर भरती सी क्षणिकाएं
खुश कर दिया रश्मि तुमने ...:)
Deleteवाह ! अच्छा लिखा है । कम में अधिक या लघु में दीर्घ भाव ।
ReplyDeleteप्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत आभार अमितजी
Deleteएक से एक खुबसूरत भावों को लिए तीनो क्षणिकाए..बधाई सरस जी,,,
ReplyDeleterecent post: किस्मत हिन्दुस्तान की,
प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत आभार
Deleteसुन्दर अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteप्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत आभार
Deleteतीनों ही शानदार.........पहला वाला सबसे अच्छा ।
ReplyDeleteरचना पसंद करने के लिए बहुत बहुत आभार इमरान जी
Deleteतीनो ही बेहतरीन क्षणिकाएँ.. ...पर तीसरी बेहतरीन लगी
ReplyDeleteनयी उम्मीदों के साथ नववर्ष की शुभकामनाएँ !!
@ संजय भास्कर
प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत आभार संजयजी ...नव वर्ष की अशेष शुभकामनाएं आपको भी ...:)
Deleteखामोशियां बहुत कुछ बांटती हैं
ReplyDeleteसांझा करने में जाने इन्हें कैसा सुकून मिलता है
... हर क्षणिका अनुपम भाव संजोये नि:शब्द करती है
सादर
रचना को सराहने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद सदाजी
Deleteसरस जी...तीनों क्षणिकाएँ बहुत सुन्दर हैं ... विशेषकर दूसरी - मौन
ReplyDeleteआपका ब्लॉग पर आना अच्छा लगा ...आभार शालिनीजी ...:)
Deleteसन्नाटे का शोर भी मौन है, किससे शिकायत करे
ReplyDeleteकी इंसानियत मर चुकी है ...
गहन भाव लिए हुए हैं तीनो क्षणिकाएं... आभार
प्रोत्साहन के लिए आभार संध्याजी...:)
ReplyDeleteसच है ... इस सन्नाटे का शोर कभी कभी बहरा कर देता है ...
ReplyDeleteसभी क्षणिकाएं प्रभावी ...
मौन सिर्फ साथ देता है ...जब तक चाहो ...
ReplyDeleteजहाँ तक चाहो ....!!!!kitna achcha likhi hain....
सभी क्षणिकाएं लाज़वाब...
ReplyDeleteगहन भाव लिए सुंदर अभिव्यक्ति ......!!
ReplyDeleteपर जो देहलाता है सबसे ज्यादा !
ReplyDeleteवह है शोर-
सन्नाटे का ...!!!
....बिल्कुल सच...सभी क्षणिकाएं बहुत प्रभावी और अंतस को छू गयीं...