Thursday, December 13, 2012

'फ़र्क पड़ना '




तुम्हारा यह कहना की तुम्हे कोई फ़र्क नहीं पड़ता
इस सच को और पुष्ट कर देता है कि
......तुम्हे फ़र्क पड़ता है  !
दिन की पहली चाय का पहला घूँट तुम ले लो -
मेरे इस इंतज़ार से
..... तुम्हे फ़र्क पड़ता है !
तुमसे अकारण ही हुई बहस से -
 माथे पर उभरीं उन सिल्वटोंसे
.....तुम्हे फ़र्क पड़ता है !
मंदिर की सीढियां चढ़ते हुए , दाहिना पैर
साथ में चौखट पर रखना है  इस बात से
....... तुम्हे फ़र्क पड़ता है !
इस तरह ..रोज़मर्रा के जीवन में
घटने वाली हर छोटी बड़ी बातसे  तुम्हे फ़र्क पड़ता है !
फिर जीवन के अहम् निर्णयों में -
कैसे मान लूं ...की तुम्हे फ़र्क नहीं पड़ता ......
यह 'फ़र्क पड़ना' ही तो वह गारा मिटटी है जो
रिश्तों की हर संध को भर
उसे मज़बूत बनाता है  .....
वह बेल है जो उस रिश्ते पर लिपटकर
उसे खूबसूरत बनाती है
छोटी छोटी खुशियाँ उसपर खिलकर
उस रिश्ते को सम्पूर्ण बनाती हैं
और 'फ़र्क पड़ना'तो वह नींव है
जो जितनी गहरी ,
उतने ही रिश्ते मज़बूती और ऊँचाइयां पाते हैं  ...!!!!

18 comments:

  1. सच है कि जो कहते हैं कि फर्क नहीं पड़ता ...उनको फर्क पड़ता है और फर्क पड़ना रिश्ते की नींव है ऐसा एहसास आपको पढ़ कर हुआ ।

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  2. 'फ़र्क पड़ना'तो वह नींव है
    जो जितनी गहरी ,
    उतने ही रिश्ते मज़बूती और ऊँचाइयां पाते हैं ...!!!!
    बहुत ही सहजता से हर भाव को जबरदस्‍त उकेरा है आपने इस अभिव्‍यक्ति में

    सादर

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  3. वह बेल है जो उस रिश्ते पर लिपटकर
    उसे खूबसूरत बनाती है
    छोटी छोटी खुशियाँ उसपर खिलकर
    उस रिश्ते को सम्पूर्ण बनाती हैं
    और 'फ़र्क पड़ना'तो वह नींव है
    जो जितनी गहरी ,
    उतने ही रिश्ते मज़बूती और ऊँचाइयां पाते हैं

    किसी के होने के एहसास से ही तो फर्क पड़ता है .
    तेरे एहसास से मैं जिंदा हूँ .
    तेरे एहसास से मर जाऊंगा ..
    तू नहीं तेरी जुस्तजू नहीं , तो बाकी रखा क्या है..
    आपने सच कहा ..

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  4. "फर्क नहीं पड़ता" यह कहना ही जतलाता है कि फर्क तो पड़ता है.:).

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  5. कोमल भावो की अभिवयक्ति......

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  6. जबरदस्‍त भावों की उम्दा अभिव्‍यक्ति,,, बधाई।

    recent post हमको रखवालो ने लूटा

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  7. बहुत फ़र्क़ पड़ता है... फ़र्क़ पड़ने से !
    रिश्तों की परिभाषाएँ ही बदल जाती हैं... 'सिर्फ़ एक फ़र्क़ पड़ने से' !
    बहुत सुंदर रचना भाभी !
    ~सादर!!!

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  8. सुन्दर भावो की उम्दा अभिव्यक्ति..

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  9. मेरी मां हमेशा कहती है कि जाओ जो करो, मुझे फर्क नहीं पड़ता, इस कविता में उनके कहे हुए का मर्म है।

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  10. कोमल अहसास लिए
    अति सुन्दर रचना.....
    :-)

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  11. वक़्त ठहर गया और पढने लगा ... क्योंकि फर्क पड़ता है ऐसा कुछ पढकर

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  12. फर्क तो पड़ता है भई... :-)

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  13. रिश्तों की उलझनों को समझने का बेहतरीन प्रयास इस सुंदर कविता के रूप में पसंद आया.

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  14. रिश्तों में छोटी से छोटी बात का भी फर्क पड़ता है ...
    रिश्तों के फर्क को महसूस करती रचना ...

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  15. aapsi rishton ki antrangta ko kya khoob ukera hai..

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  16. very nice....
    मंदिर की सीढियां चढ़ते हुए , दाहिना पैर
    साथ में चौखट पर रखना है इस बात से
    ....... तुम्हे फ़र्क पड़ता है !

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  17. सही में फर्क पड़ता है !!!!


    अपना आशीष दीजिये मेरी नयी पोस्ट

    मिली नई राह !!

    http://udaari.blogspot.in

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  18. सार्थक प्रस्तुति। मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा। धन्यवाद।

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