हर मुनासिब कोशिश की तुम्हें मनाने की
तुमने तो ठान ली थी ...बस दूर जाने की
जानते थे तेरी किस बात से डर लगता है
अपना ली वही आदत पार पाने की
बहुत कोशिश थी गमे-दौराँ से रूबरू करूँ
तुम्हें तो जिद्द थी -सिर्फ अपनी सुनाने की
ज़ार ज़ार चाहा बरबादियों का इल्म तो हो
तुमने तो ठान ली थी..तबाहियाँ मचाने की
अब इल्तिजा क्या करें और शिकायत क्या
हाथ खींचा जिससे उम्मीद थी बचाने की
अब इल्तिजा क्या करें और शिकायत क्या
ReplyDeleteहाथ खींचा जिससे उम्मीद थी बचाने की
लाजवाब लिखी हैं आंटी
सादर
अब क्या मनुहार किस बात का हवाला - मैंने तो विश्वास किया तुम पर,खुद पर
ReplyDeleteमन की टीस.....शब्दों में !
ReplyDeleteवाह ! क्या खूब कहा है..
ReplyDeleteबहुत कोशिश थी गमे-दौराँ से रूबरू करूँ
ReplyDeleteतुम्हें तो जिद्द थी -सिर्फ अपनी सुनाने की
यह शेर सबसे अच्छा लगा.
वाह बहुत ही लाजवाब रचना....
ReplyDeleteअब इल्तिजा क्या करें और शिकायत क्या
ReplyDeleteहाथ खींचा जिससे उम्मीद थी बचाने की
बहुत खूबसूरत... लाजवाब
गजब अभिव्यक्ति-
ReplyDeleteउम्मीदें करती रही, दूर तुम जाते रहे-
आभार आदरेया ||
अब इल्तिजा क्या करें और शिकायत क्या
ReplyDeleteहाथ खींचा जिससे उम्मीद थी बचाने की
बहुत खूबसूरत
New post तुम ही हो दामिनी।
अब इल्तिजा क्या करें और शिकायत क्या
ReplyDeleteहाथ खींचा जिससे उम्मीद थी बचाने की,,,,
लाजबाब,खूबशूरत गजल लिखने की बधाई,,,,सरस जी,,,
recent post: कैसा,यह गणतंत्र हमारा,
अब इल्तिजा क्या करें और शिकायत क्या
ReplyDeleteहाथ खींचा जिससे उम्मीद थी बचाने की
बहुत खूब ....
बहुत खूब
ReplyDeleteज़ार ज़ार चाहा बरबादियों का इल्म तो हो
ReplyDeleteतुमने तो ठान ली थी..तबाहियाँ मचाने की
अब इल्तिजा क्या करें और शिकायत क्या
हाथ खींचा जिससे उम्मीद थी बचाने की
पाँचों की पाँचों एक से बढकर एक लेकिन अंतिम दो लाइन ने निःशब्द कर दिया ....
bahut khoob...
ReplyDeleteअब इल्तिजा क्या करें और शिकायत क्या
ReplyDeleteहाथ खींचा जिससे उम्मीद थी बचाने की
हृदयस्पर्शी पंक्तियाँ...
बेहद भावपूर्ण रचना...
अब इल्तिजा क्या करें और शिकायत क्या
ReplyDeleteहाथ खींचा जिससे उम्मीद थी बचाने की
दुनिया के अलम खुद-ब-खुद मिट जाएँ अगर ऐसा नहीं हो. चोट तो उन्ही से लगती है जिनसे चोट ना लगने की सबसे ज्यादा उम्मीद होती है .
सारे शेर बहुत अच्छे लगे.
अब इल्तिजा क्या करें और शिकायत क्या
ReplyDeleteहाथ खींचा जिससे उम्मीद थी बचाने की....वाह..बहुत खूब लिखा है आपने
वाह . बहुत सुन्दर प्रस्तुति . हार्दिक आभार
ReplyDeleteसुंदर शायरी सरस जी ...!!
ReplyDeleteबधाई ...
maene kcuhh din pahle us shaks ko khoya jisne kabhi mujhe toot kr chaha tha, ghalti uski nhi meri thi mae darr aur svaarth ke kaaran use apna nahi paya, ab vo kisi aur ka jeeevan saathi hae.. aapki shayari ne uski yaad dila di.laga ye hr ek baat uske dil se bhi mere lie nikli hogi.. aur jb ye padh kr meri aaknhome aansu hae toh us apr kyaa beeti hogi jb maene uska dil toda..khaer aap likhti rahie, bahut umdaa likhti haen.
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