अहम्
अक्सर देखा है
रिश्तों को
पहल के दायरे
में -
उलझते हुए -
वादे....
दावे....
रिश्तों की अहमियत.....
प्रघाड़ता.....
सब - दायरे के बाहर
विस्थापित से
-
सर झुकाए खड़े रहते
हैं
और भीतर-
रहता है साम्राज्य
'अहम्' का !
------------
सेंध
आओ मिलकर -
अहम् के दायरे
में सेंध लगायें
-
बारी बारी से
पहल दोहराएं -
इसे -
भीतर ही से
तोड़ गिराए ....
और रिश्तों को पुन:
-
उनकी गरिमा
दिलवाएँ.... !
आओ मिलकर -
ReplyDeleteअहम् के दायरे में सेंध लगायें -
बारी बारी से पहल दोहराएं -
इसे -
भीतर ही से तोड़ गिराए ....
और रिश्तों को पुन: -
उनकी गरिमा
दिलवाएँ.... !..........फिर तो हर क्षण खुशगवार होगा
बढ़िया क्षणिकाएं !
ReplyDeleteNew post कुछ पता नहीं !!! (द्वितीय भाग )
New post: कुछ पता नहीं !!!
सुन्दर क्षणिकाएं, दायरों में सेंध लगाना बहुत आवश्यक है उनमे नयी ऊर्जा भरने के लिए. बहुत सुन्दर कहा है.
ReplyDeleteकबीर की वो पंक्तियाँ फिर से याद आ रही हैं जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि है तो मैं नाही
ReplyDeleteदोनों क्षणिकाएं एक दूसरे की पूरक ... गहन अभिव्यक्ति
ReplyDelete|
ReplyDeleteबेहतरीन आदरेया-
बहुत सुंदर क्षणिकाएं
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति. हार्दिक बधाई.
एक उलझन तो दूसरी सुलझाती क्षणिका...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सरस जी..
सादर
अनु
बहुत सुंदर
ReplyDeleteक्या बात
रिश्तों को पुन: -
ReplyDeleteउनकी गरिमा
दिलवाएँ.... !
अनुपम विचार लिये उत्कृष्ट प्रस्तुति
सादर
utam-***
ReplyDeleteदूसरा वाला बहुत अच्छा।
ReplyDeleteजज़्बात के लिए भी समय निकालें।
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (19-1-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
ReplyDeleteसूचनार्थ!
aham ke dayre me sendh kya hi sunder bhav hain
ReplyDeleterachana
लाजबाब,बहुत बेहतरीन क्षणिकाए,,,सरस जी बधाई,,,,
ReplyDeleterecent post : बस्तर-बाला,,,
क्षणिकाएं सचमुच वर्तमान का सुन्दर चित्रण है
ReplyDeleteन केवल रिश्तों में वरन संगी साथियों में भी अहम् "अहम्" है
बधाई .......आभार
बहुत खूब ... अहम को तोड़ पाना आसान होता तो इंसान बुद्ध हो जाता ...
ReplyDeleteपर जिसने तोड़ लिया ... वो जीवन जी गया ...
लाजवाब क्षणिकाएं ...
बहुत खूबसूरत बात..अहम में सेंध लगाना जरूरी है
ReplyDeleteहर रिश्ते की अपनी ही परिभाषा है ...एक मौन ,एक अहम् दोनों की अभिव्यक्ति है
ReplyDeleteआओ मिलकर -
ReplyDeleteअहम् के दायरे में सेंध लगायें -
बारी बारी से पहल दोहराएं -
इसे -
भीतर ही से तोड़ गिराए ....
और रिश्तों को पुन: -
उनकी गरिमा
दिलवाएँ
यदि हम समकोण बनाना चाहते है तो किसी कोण में शेष कोण को मिलाना पड़ेगा यथा 30 में 60 और 60में 30 तब ही अभीष्ट समकोण बनेगा .बस सेंध और अहम् एक दुसरे के पूरक हैं जिनसे जीवन का स्वरुप निर्धारित होता है आपकी रचनाओं से सदा सिखाने को मिलता है सादर नमन
जब अहम् ख़तम हो जाता है तो बस तू ही तू हो जाता है
ReplyDeleteइस भाव को दर्शाती मेरी नयी पोस्ट
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Gift- Every Second of My life.
अपना आशीष इस बेटी को भी दीजिये
लाजवाब प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteशानदार!!
ReplyDeletemaza aa gaya.....
ReplyDeleteबहुत बढ़िया...
ReplyDeleteबहुत सुंदर अर्थपूर्ण क्षणिकाएँ !
ReplyDelete~सादर!!!
यह अहम ही तो हर समस्या की जड़ है. पर इतना आसान भी कहाँ होता है इसमें सेंध लगाना
ReplyDeleteबहुत अर्थपूर्ण पंक्तियाँ हैं.
जब तक अहम् के दायरे में घिरे रहेंगे तब तक रिश्तों की दूरियों को कभी पाटा नहीं जा सकता...बहुत सुन्दर क्षणिकाएं...
ReplyDeleteआओ मिलकर -
ReplyDeleteअहम् के दायरे में सेंध लगायें -
बारी बारी से पहल दोहराएं -
इसे -
भीतर ही से तोड़ गिराए ....
बहुत सुन्दर ...
वाह, बेहतरीन रचना
ReplyDeleteआओ मिलकर -
ReplyDeleteअहम् के दायरे में सेंध लगायें -
बारी बारी से पहल दोहराएं -
इसे -
भीतर ही से तोड़ गिराए ....
और रिश्तों को पुन: -
उनकी गरिमा
दिलवाएँ.... !
bahut sundar dono rachnayen....aabhar !
आपको गणतंत्र दिवस पर बधाइयाँ और शुभकामनायें.
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