प्रश्नों की बौछार
लगी है
और मैं -
इनके बीच खड़ी
खोज रहीं हूँ
उनके जवाब ...
' जो होता है
क्यों होता है
'?
शायद ईश्वर की मर्ज़ी
..
'क्या ईश्वर इतने निष्ठुर
हैं '?
नहीं
जो होता है,
अच्छे के लिए
होता है...
शायद यह भी
उसी अच्छे होने
की
पहली कड़ी है
...
किसी भी ईमारत
को बनाने के
लिए -
'पहली ईंट' को
नींव की ईंट
बनना होता है
-
वही उस ईमारत
को
मजबूती , ताक़त और
स्थिरता देती है
-
लेकिन 'उसे'
अपनी आहुति देनी होती
है ...
'तो क्या इश्वर
ने उसकी आहुति
ली '?
नहीं आहुति नहीं ...
बलिदान माँगा -
जो जला सके
उस आग को
-
जिला दे मानवता
को -
जो जंगल की
आग सा -
ध्वंस कर -
नेस्तनाबूत
कर दे हैवानियत
को ...!
दामिनी
......
आज उस ईंट
पर
एक बुलंद इमारत की
नींव पड़ चुकी
है -
शायद यही इसमें
छिपी अच्छाई हो
...
शायद यही ईश्वर
की मंशा हो
...!
आशा तो अब कुछ सशक्त कदम उठाए जाने की है इतना कुछ होने के बाद ..
ReplyDeleteप्रभावशाली रचना ,,
सादर !
उम्मीद पर दुनिया कायम है ...बस वही कर सकते हैं.....आपने रचना सराही .....बहुत बहुत आभार
Deleteनीव पड़ गयी ,ईमारत जरुर बनेगी .
ReplyDeleteNew post तुम ही हो दामिनी।
कोई भी आहुति हो - वह ईश्वर की ही है .... सबके भीतर वही तो विद्यमान है
ReplyDeleteइस आहुति के बाद तो प्रभु को प्रार्थना सुननी चाहिए न .....
Deleteबहुत ही प्यारी और भावो को संजोये रचना......
ReplyDeleteदामिनी ......
ReplyDeleteआज उस ईंट पर
एक बुलंद इमारत की नींव पड़ चुकी है -
शायद यही इसमें छिपी अच्छाई हो ...
शायद यही ईश्वर की मंशा हो ...!
मशाल जलती रहनी चाहिए हव्य डालें ज्वाला आसमान तक उठने दें ताकि इश्वर भी न्याय करने मज़बूर हो जाये .
ऐसा ही होगा रमाकांत जी ...लाखों लोगों की दुआओं और प्रार्थनाओं का कुछ तो असर होगा
Deleteपता नहीं इमारत बनने भी दी जायेगी या नहीं :(
ReplyDeleteहाँ शिखा....लेकिन ऐसा हुआ तो इस देश के लोग चुप नहीं रहेंगे ......सब्र की भी कोई सीमा है ....
Deleteबलिदान व्यर्थ न जाए बस.....
ReplyDeleteवरना ढह जायेंगी आस्थाएं...
सादर
अनु
अगर इस सबके बाद भी कोई ठोस कदम न उठा तो वाकई ....आस्था के पाँव उखड जायेंगे ....
Deleteहर ऐसा हादसा ईश्वर पर सवाल खड़ा कर देता है लेकिन आप जैसे लोग हैं जो इस सवाल से आगे बढ़ने का हौसला दिखाते हैं और छोड़ जाते हैं कविता में आशा की उम्मीद। मेरे एक दोस्त ने अपने छोटे बच्चे को खो दिया। उसने अपने ब्लाग में ईश्वर से माफी माँगी कि अपने नन्हे बच्चे को वो दुनिया नहीं दिखा पाया। उसे पढ़कर मुझे लगा कि ईश्वर मेरे जीवन में वापस आ गए। आपकी कविता पढ़कर वो क्षण फिर याद आ गया।
ReplyDeleteसौरव जी ....आपकी टिप्पणी से अभिभूत हूँ .....लेकिन ऐसे हादसे वाकई भीतर से झंझोड़ जाते हैं ....एक बेबसी सी महसूस होती है .......लेकिन सबके हाथ बंधे हैं..न्याय के भी ...सब कुछ अपनी परिधि में करना है ...यह बात और है...की ऐसे नि:श्रंस कृत्यों की परिधि कोई क्यों नहीं तै करता ......तब न्याय के लिए सिर्फ एक ही जगह बचती है ....जहाँ सब हाथ जोड़े खड़े हैं
Deleteहाँ, शायद ये आहुति लेकर ही कुछ अच्छाई की नींव पड़े,
ReplyDeleteशुरुआत तो हो चुकी है, न्याय मिले न मिले कम से कम लड़कियों ने आवाज़ उठाना तो सीख ही लिया है,
सार्थक कविता।
एक शुरुआत ही सबसे बड़ी उम्मीद होती है ....रचना अच्छी लगी तुम्हे ...अच्छा लगा ...:)
Deleteयह प्रश्न तो सबके मन में उठ रहा है .... गहन अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteवाकई......आभार संगीताजी .....
Deletebas uski kurbani rang laaye tab hai sarthakta
ReplyDeleteन जाने कितने हाथ ...कितने स्वर ....इसी के लिए प्रार्थना में लगे हैं
Deleteयह पाशविक उन्माद की अति थी -ईश्वर ने तो उसे प्रबुद्ध ,प्रसन्न और यौवन-संपन्न नारी बनाया था ,जिसे शान्ति से जीने को मिलता तो जीवन सौन्र्दर्य और सुरुचि पूर्ण होता .पर इंसानी हवस को यह सहन नहीं हुआ .
ReplyDeleteइसका निदान खोजने के लिये अब मानवी शक्तियाँ क्या विधान करती हैं-यह देखना है .इसी पर भविष्य की संभावनाएँ निर्भर हैं !
मौजूदा हालातों को देखकर ...तो अब सबसे विश्वास उठने सा लगा है ....जिसने सबसे क्रूरतम कृत्य किया ...उसी को नाबालिग ठहराने पर तुले हैं सब .....अब इसे अति न कहें तो क्या कहें
ReplyDeleteव्यर्थ कुछ भी नहीं होता। असर होगा और दिखेगा भी।
ReplyDeleteसादर
हाँ यशवंत ....यही विश्वास इस लड़ाई को जिंदा रखे है
Deleteआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 31-01-2013 को यहाँ भी है
ReplyDelete....
आज की हलचल में.....मासूमियत के माप दंड / दामिनी नहीं मिलेगा तुम्हें न्याय ...
.. ....संगीता स्वरूप
. .
रचना का चयन करने के लिए हार्दिक आभार संगीताजी
Deleteकाश! आपकी ये बात सच हो ..! इस नींव की इमारत बुलंद हो ....~ पहला पत्थर हमेशा याद रहेगा ....
ReplyDelete~सादर!!!
नीव की सार्थकता इसीमें है कि उस पर बनी इमारत बुलंद हो लेकिन भय है कि हमारे आसपास जो नीति नियंता सत्ता में बैठे हैं वे इमारत की हर एक ईंट को आघात दे कमज़ोर करने की कोशिश कर रहे हैं ! इसे दुर्भाग्य न मानें तो भला क्या मानें ? डर है दामिनी का बलिदान कहीं व्यर्थ ना हो जाए !
ReplyDeleteरोज़ की अखबार की सुर्खियाँ...न्यायालयों की गतिविधियाँ..इसी और इंगित करती हैं...वाकई ..यह शंका तो मन में अक्सर कौंधती है ...कि क्या वाकई उसका बलिदान बेमाने होगा.....लेकिन उम्मीद फिर भी बाकी है ...क्योंकि इस बार पूरा देश एकजुट है ....
Deleteशायद बदलाव की नींव दामिनी के नाम ही हो. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteशायद ....हार्दिक आभार रंजन जी
Deleteऐसे अनुत्तरित प्रश्नों के उत्तर खोजने ही होंगे अब... बहुत सुन्दर व सार्थक प्रयास!
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