Monday, April 23, 2012

-यह शहर -




यह शहर सपनों का शहर है -
हर गली ....हर कूचे में जो पलते हैं-
अनबुझी ख्वाइशों की सूरत में-
रातभर करवटें बदलते हैं ...

यह शहर वादों का शहर है -
पर्त दर पर्त चस्पां होते जो -
उन चेहरों पे जो गाँव, कस्बों में-
राह तकते हैं..बात जोहते हैं .....

यह ज़ज्बातों का शहर भी है -
इनके मूँह मांगे दाम मिलते हैं -
यह हर दस्तूर को निभाते है -
हर मौके पे , मुफिक होते हैं ......

यह उम्मीदों का शहर भी है-
जो हर शिकस्त से लड़खड़ाती हैं-
लेकिन फिर थाम अपना ही दामन -
एक और जंग में जुट जाती हैं ....

इस शहर के अनेक चेहरों में -
एक चेहरा, छिपा अभी भी है -
उस कीमती कालीन के नीचे-
छिपा हुआ सा एक.....
 दलदल भी है ....!!!!!    

28 comments:

  1. शायद पहले पढ़ी है ये रचना???
    दोबारा पोस्ट की है क्या सरस जी??

    खैर जो भी हो....
    बहुत बढ़िया रचना.....सार्थकता लिए.

    अनु

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  2. इस शहर के अनेक चेहरों में -
    एक चेहरा, छिपा अभी भी है -
    उस कीमती कालीन के नीचे-
    छिपा हुआ सा एक.....
    दलदल भी है ....!!!!!

    बिल्‍कुल सच कहा है आपने प्रत्‍येक पंक्ति में ..आभार इस बेहतरीन प्रस्‍तुति के लिये ।

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  3. 'सपनों का शहर...'
    शहर का व्यक्तित्व हमसे ही तो बनता है...
    सुन्दर रचना!

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  4. शहर है ..विभिन्नताओं से भरा होगा ही..सुन्दर सच्ची रचना.

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  5. यह शहर वादों का शहर है -
    पर्त दर पर्त चस्पां होते जो -
    उन चेहरों पे जो गाँव, कस्बों में-
    राह तकते हैं..बात जोहते हैं .....

    वाह !!!!!! बहुत बढ़िया प्रस्तुति,सुंदर रचना,....

    MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...:गजल...

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  6. बहुत ही बढ़िया।


    सादर

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  7. अब तो यह शहर ही
    अपनी जिंदगी है ।



    आभार दीदी ।।

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    1. सुन्दर, ख़ूबसूरत भावाभिव्यक्ति .

      कृपया मेरे ब्लॉग meri kavitayen की 150वीं पोस्ट पर पधारने का कष्ट करें तथा मेरी अब तक की काव्य यात्रा पर अपनी प्रति क्रिया दें , आभारी होऊंगा .

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  8. इसमें ही शहर खुद को जीता है , अन्यथा हादसा बन रह जाता है ...

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  9. इस शहर के अनेक चेहरों में -
    एक चेहरा, छिपा अभी भी है -
    उस कीमती कालीन के नीचे-
    छिपा हुआ सा एक.....
    दलदल भी है ....!!!!! प्रभावशाली रचना.....

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  10. इस शहर के अनेक चेहरों में -
    एक चेहरा, छिपा अभी भी है -
    उस कीमती कालीन के नीचे-
    छिपा हुआ सा एक.....
    दलदल भी है ....!!!!!

    ....हरेक पंक्ति महानगर की सच्चाई दर्शाती...बहुत सटीक और सशक्त प्रस्तुति...

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  11. सपनों का शहर है, इसलिए उम्मीदें भी अभी तक कायम है।

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  12. बेहद सशक्त रचना..............
    बहुत खूब सरस जी.

    ये हमारी दूसरी टिप्पणी है.....पहली स्पाम जी खा गए....
    अनु

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  13. यह उम्मीदों का शहर भी है-
    जो हर शिकस्त से लड़खड़ाती हैं-
    लेकिन फिर थाम अपना ही दामन -
    एक और जंग में जुट जाती हैं ....

    उम्मीदें भी अभी तक कायम है।

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  14. सार्थकता लिए हुए सशक्‍त अभिव्‍यक्ति
    कल 25/04/2012 को आपकी इस पोस्‍ट को नयी पुरानी हलचल पर लिंक किया जा रहा हैं.

    आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!


    ... मैं तबसे सोच रही हूँ ...

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  15. यह उम्मीदों का शहर भी है-
    जो हर शिकस्त से लड़खड़ाती हैं-
    लेकिन फिर थाम अपना ही दामन -
    एक और जंग में जुट जाती हैं ....

    इस शहर के अनेक चेहरों में -
    एक चेहरा, छिपा अभी भी है -
    उस कीमती कालीन के नीचे-
    छिपा हुआ सा एक.....
    दलदल भी है ....!!!!!

    बेहतरीन है सरस जी आपकी पोस्ट कई बार अल्फाज़ कम पद जाते हैं तारीफ के लिए।

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  16. इस शहर के अनेक चेहरों में -
    एक चेहरा, छिपा अभी भी है -
    उस कीमती कालीन के नीचे-
    छिपा हुआ सा एक.....
    दलदल भी है!

    ...सचाई तो यही है!...बहुत सुन्दर रचना!

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  17. इस शहर के अनेक चेहरों में -
    एक चेहरा, छिपा अभी भी है -
    उस कीमती कालीन के नीचे-
    छिपा हुआ सा एक.....
    दलदल भी है ....!!!!!.... वाह !! क्या खूब लिखा है ... बेहतरीन प्रस्तुति ... !!

    एक गुज़ारिश है .. क्षितिजा ही काफी है ... उसे आगे से प्लीज़ 'जी' हटा दीजिये ... :)

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  18. विसंगतियों को आईना दिखा दिया

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  19. ख़ूबसूरत रचना! सरस जी :)

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  20. इस शहर के अनेक चेहरों में -
    एक चेहरा, छिपा अभी भी है -
    उस कीमती कालीन के नीचे-
    छिपा हुआ सा एक.....
    दलदल भी है ....!!!!! bahut khoob saras ji...

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  21. सपनों का शहर .... खूबसूरती से शहर को परिभाषित किया ... दलदल से बचाने में भलाई है

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  22. एक शहर जिसके हर हिस्से को आपने शब्दों में साकार किया है बहुत सुन्दर रचना ...वाह

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  23. यह शहर वादों का शहर है -
    पर्त दर पर्त चस्पां होते जो -
    उन चेहरों पे जो गाँव, कस्बों में-
    राह तकते हैं..बात जोहते हैं .....

    यह ज़ज्बातों का शहर भी है -
    इनके मूँह मांगे दाम मिलते हैं -
    यह हर दस्तूर को निभाते है -
    हर मौके पे , मुफिक होते हैं ......

    बढ़िया प्रस्तुति .भाव प्रधान अनुभूति सघन रचना .कृपया 'बाट' और मुंह शुद्ध रूप लिख लें .और मैं ये मुफिक क्या चीज़ है कहीं माफिक या मुरीद तो नहीं ?कृपया अन्यथा न लें .

    हर मौके पे , मुफिक होते हैं ....क्या अर्थबोध निकालें इस पंक्ति का .

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    1. वीरुभई सबसे पहले तो आपका धन्यवाद कहूं की आपने इतने ध्यान से कविता को पढ़ा ...वर्ना अक्सर सिर्फ टिप्पणी के नाम पर टिप्पणी दे दी जाती है
      दूसरी बात ...आपसे क्षमा चाहूंगी , वह त्रुटी शब्द बोध की वजहसे नहीं वरन टाइप फॉण्ट की वजह से हुई अंग्रेजी में टाइप करके अनुवाद करने में यह चूक हो गयी और तीसरी बात मुफीक यानि उचित, sateek, suitable....

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  24. सुंदर रचना,....

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  25. उस कीमती कालीन के नीचे-
    छिपा हुआ सा एक.....
    दलदल भी है ....!!!!! bahot achche.....

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  26. आह ! अति सुन्दर ...

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