रोक एक दिन मैंने पूछा -
वन में उडती तितली को-
इतनी खुश, उत्साहित सी तुम ,
हरदम कैसे दिखती हो !
तुम्हे देख, गुम होजाता सब दुःख -
मन हल्का हो जाता है,
वह भी तुमसे प्रेरित होकर नभको छूना चाहता है !
दुखों के बोझोंसे कैसे मन हल्का कर पाती हो
कैसे चिंता भूलभालकर, यूँ स्वच्छंद उड़ पाती हो ?
बोली तितली ...सुनो सहेली,
दुखसे कातर हर कोई होता,
चोट मुझे भी लगती है ,
और दर्द भी मुझको अक्सर होता ...
लेकिन इनको ढोकर जब मैं -
नभ में दूर उड़ जाती हूँ ,
बादलों पर बोझ उतार सब,
फिर हल्की हो जाती हूँ !
अपना अपना बोझ सखीरी
हमें स्वयं ही ढोना है
लेकिन दर्द, कम करना है तो
मीत प्यारासा खोजना है
कह उससे सब दर्द व्यथा फिर
तुम भी मुझ जैसी हो लो
अपना दुःख हल्का करने को
बादल एक तुम भी खोजो..!!!!
तुम भी मुझ जैसी हो लो
ReplyDeleteअपना दुःख हल्का करने को
बादल एक तुम भी खोजो..!!!!
वाह ...बहुत खूब लिखा है आपने .. आभार ।
उत्कृष्ट प्रस्तुति ।
ReplyDeleteबधाई स्वीकारें ।।
बादल एक तुम भी खोजो..!!!!behad khoobasurat panktiyan.bdhai jivan ke prati skaratmak soch darshati hae.
ReplyDeleteअपना अपना बोझ सखीरी
ReplyDeleteहमें स्वयं ही ढोना है
लेकिन दर्द, कम करना है तो
मीत प्यारासा खोजना है
कह उससे सब दर्द व्यथा फिर
तुम भी मुझ जैसी हो लो
अपना दुःख हल्का करने को
बादल एक तुम भी खोजो.
beautiful lines with eternal emotions and nice feelings.
वाह!
ReplyDeleteएक कतरा बादल का कहीं न कहीं हम सबके लिए है तो ज़रूर...
सुन्दर रचना!
अपना अपना बोझ सखीरी
ReplyDeleteहमें स्वयं ही ढोना है
लेकिन दर्द, कम करना है तो
मीत प्यारासा खोजना है
बहुत खूब आंटी
सादर
बहुत सुन्दर....
ReplyDeleteसांझा करने से
दुःख घटता है...
सुख बढ़ता है.......
प्यारी रचना.....................
दो कदम तुम चलो ... आकाश मुट्ठी में भर लो
ReplyDeleteकह उससे सब दर्द व्यथा फिर
ReplyDeleteतुम भी मुझ जैसी हो लो
अपना दुःख हल्का करने को
बादल एक तुम भी खोजो..
बहुत बढ़िया रचना,सुंदर अभिव्यक्ति,बेहतरीन पोस्ट,....
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अपना दुःख हल्का करने को
ReplyDeleteबादल एक तुम भी खोजो..!!!bhut satik likha hai....
मन के भावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने.....
ReplyDeleteतितली की सलाह बिलकुल सही है।
ReplyDeleteआपका तितली से संवाद बहुत भाया ! सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeletewaah' bahut sundar utkrisht prastuti Saras ji badhayi sweekar karen !
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