नन्ही हथेलियाँ गुदगुदाती रेत,
हर बार मुट्ठियों से सरक जाती है
और वह,
उसे मुट्ठियों में भींच
वहां पहुँच जाता है,
जहाँ माँ,
उसका महल बनवा रही है .
मैं भी-
हाथों में रेत भर लेती है,
मुट्ठियाँ भिंचने लगती हैं
वह सरककर डह जाती है.
फिर अंजुरी में भर उसे
हवा के सुपुर्द कर देती हूँ.
पारदर्शी होती रेत ,
चारों ओर भुरभुरा जाती है ....
क्षणार्ध के लिए -
सूरज कई कणों में विभक्त हो जाता है !
और मैं
थककर उस ओर बढ़ जाती हूँ
जहाँ तुम,
एक और महल बनवा रहे हो!!!
और मैं
ReplyDeleteथककर उस ओर बढ़ जाती हूँ
जहाँ तुम,
एक और महल बनवा रहे हो!!!
गहन भाव... सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार
वाह.............
ReplyDeleteबहुत सुंदर...
गहन भाव लिए रचना,,,
बहुत गहन..बहुत सुन्दर प्रस्तुति.........मेरा भी.वाह:वाह: तो बनता है......सारस जी
ReplyDeleteसूरज कई कणों में विभक्त हो जाता है !
ReplyDeleteऔर मैं
थककर उस ओर बढ़ जाती हूँ
जहाँ तुम,
एक और महल बनवा रहे हो!!!
बहुत ही प्यारी लाइन्स हैं आंटी!
सादर
क्रम टूटता नहीं ....
ReplyDeleteनन्ही हथेलियाँ गुदगुदाती रेत,
ReplyDeleteहर बार मुट्ठियों से सरक जाती है
और वह,
उसे मुट्ठियों में भींच
वहां पहुँच जाता है,
जहाँ माँ,
life is like a wave. THE TRUTH OF LIFE.
और मैं
ReplyDeleteथककर उस ओर बढ़ जाती हूँ
जहाँ तुम,
एक और महल बनवा रहे हो!!!
अनुपम भाव संयोजित किए हैं आपने इस अभिव्यक्ति में ।
speechless.....amazing....its pleasure to read your blog.
ReplyDeleteभावों की गहराई देखते ही बनती है। अच्छी भावपूर्ण रचना।
ReplyDeleteवाह .. बहुत सुन्दर
ReplyDeleteरेतीले एहसास
सपनों के महल की शरुआत.....रेत के महल से ही होती है|
ReplyDeleteशुभकामनाएँ!
बिम्ब अच्छे लगे . सुन्दर कविता .
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण रचना है |
ReplyDeleteआशा
बहुत खूबसूरत रचना :)
ReplyDeleteमुट्ठी में रेत सी फिसल जाती है |
पल भर को हथेली में कभी ठहरती ही नहीं |
हाँ इसी का नाम तो जिन्दगी है कितनी भी कोशिश कर लो पर रेत कि तरह फिसलती ही रहती है |
रोक लिया है सुन्दर बिम्ब और खुबसूरत भाव ने...
ReplyDeleteपारदर्शी होती रेत ,
ReplyDeleteचारों ओर भुरभुरा जाती है ....
क्षणार्ध के लिए -
सूरज कई कणों में विभक्त हो जाता है !
kavita ki kendreey panktiyaan
बहुत सुंदर । मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । । धन्यवाद ।
ReplyDeleteगहरे भाव ... बच्चे सामान चाहत फिर से नए महल बनाने कों प्रेरित करती है ... वो थकता नहीं है रेत के फिसल जाने से ... आशा की करणों कों पकड़ने में लग जाता है ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर, भावपूर्ण रचना!
ReplyDeleteबहुत ही संवेदनशील रचना...
ReplyDeleteभाव बड़ी अच्छी तरह मुखरित हुए हैं..
पारदर्शी होती रेत ,
ReplyDeleteचारों ओर भुरभुरा जाती है ....
क्षणार्ध के लिए -
सूरज कई कणों में विभक्त हो जाता है.
अच्छी भावपूर्ण रचना.
आज तलक वो मद्धम स्वर
ReplyDeleteकुछ याद दिलाये कानों में
मीठी मीठी लोरी की धुन
आज भी आये, कानों में !
आज जब कभी नींद ना आये,कौन सुनाये मुझको गीत !
काश कहीं से मना के लायें , मेरी माँ को , मेरे गीत !
सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeletegahre bhav.....
ReplyDeletebahut hi gare bhav aur sunder bimbon ke sath behatarin pratuti...
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