आज अचानक खेल अधूरा
छोडके वह आ बैठी
आँचल के छोरसे पोंछके आंसू
औंधे मूंह जा लेटी
पूछा मैंने जाकर उससे
"अरे क्या हुआ है तुझको "
रोते रोते बोली -
"माँ ..अब दूध न पीना मुझको "
बहला फुसलाकर मैंने फिर जब उससे कारण पूछा
आंसू का रेला उमड़ा ...
और दर्द उसका बह निकला ....
"माँ, वह ग्वाला कितना गन्दा !.....
बछड़ा भूखा रोता था , था पड़ा गले रस्सी का फंदा
ग्वालेने जैसे ही फंदा , गले से निकाला
भूखा बछड़ा दौड़ता हुआ , माँ के पास था आया ....
थोडासा ही दूध अभी वह बछड़ा था पी पाया ...
ग्वालेने झटसे खींच के उसको
माँ से दूर भगाया ......!
बछड़ा दूर बंधा हुआ , था अपनी बारी जोहता
उतने में वह गन्दा ग्वाला ,
सारा दूध था दोहता ...
सारा दूध निकाल ग्वाला,
लोगों में बाँट आया !
जब बछड़े की बारी आयी ,
उसने कुछ न पाया.!!!
माँ क्या ऐसा रोज़ है होता ?
रोज़ वह बछड़ा भूखा रोता ?
न माँ उसका हक छीनकर
कैसे मैं खुश रह पाऊँगी
मेरी प्यारी अम्मा....
अब मैं दूध कभी न पी पाऊँगी !"
सच में किसी का हक़ छीन कर सच्ची खुशी नहीं मिल सकती....बहुत मर्मस्पर्शी और सार्थक अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteहक छीन कर कोई सुखी नही रह सकता,
ReplyDeleteबढ़िया रचना,बहुत सुंदर भाव प्रस्तुति,बेहतरीन पोस्ट,....
MY RECENT POST...फुहार....: दो क्षणिकाऐ,...
sahi kha aapki biteeya ne .
ReplyDeleteअच्छे शब्द संयोजन के साथ बहुत मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteसंजय भास्कर
आदत....मुस्कुराने की
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
इस दर्द को मैंने महसूस किया और अन्दर कुछ उमड़ा
ReplyDeleteइस रचना को पढते हुए विस्मय और रोमांच सा महसूस हुआ. एक बच्ची के मन में कितनी संवेदना. बहुत भावमय और संदेशप्रद रचना, बधाई.
ReplyDeleteनिः शब्द!
ReplyDeleteइस पोस्ट की तारीफ मे जो कहा जाए कम ही होंगा ।
सादर
balak ke dwara bahut sunder bhav ki rachna ki hai .......
ReplyDeleteबहुत कोमल भाव... मर्मस्पर्शी रचना...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर.................
ReplyDeleteबच्चों के मन सी कोमल रचना....दिल को हौले से छू गयी.....
महुत संवेदनशील रचना ...
ReplyDeleteआह .... जब जब एक बछड़े को देखूंगी यही ख़याल मन में आएगा. क्या कहूँ इस कविता के लिए तो शब्द ही नहीं हैं.
ReplyDeleteमाँ क्या ऐसा रोज़ है होता ?
ReplyDeleteरोज़ वह बछड़ा भूखा रोता ?
न माँ उसका हक छीनकर
कैसे मैं खुश रह पाऊँगी
मेरी प्यारी अम्मा....
अब मैं दूध कभी न पी पाऊँगी !"
भावमय और संदेशप्रद रचना,
बच्चों के मन के कोमल भाव को बहुत ही मासूमियत से उकेरा है..मन को छू गई सरस जी....
ReplyDeleteकल 07/04/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeletesparsh karnewali rachna
ReplyDeleteसंवेदनशीलता ही मानवीयता की शक्ति है ...
ReplyDeleteशुभकामनायें आपको !
कोमल,संवेदनशील रचना..
ReplyDeleteआह कितनी गहरी संवेदनाओं को आपने कुशलता और सहजता से उकेरा है. आज के इस दौर में जहाँ इंसानी रिश्तों में भी आपस में संवेदन शुन्यता हावी हो रही है वहां पर एक निरीह पशु के लिए ऐसी संवेदना, यह तो मानवीय नहीं बल्कि ईश्वरीय संवेदना का उदहारण है. साधुवाद स्वीकार करें इतनी सुन्दर संवेदनशील रचना के लिए.
ReplyDeleteबहुत ही प्यारी रचना,आप की रचनाएं निशब्द कर देती है सरस जी
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