Saturday, April 7, 2012

-क्षणिकाएं -

                           (१)

                   नार्सिस्सिज्म ( आत्ममोह )

                   हाँ ....
                   मैं नार्सिसिस्सिट  हूँ !
                   मैंने  'तुम्हारी ' नज़रों में
                   'अपने' ' ही अक्स को चाहा हरदम ....!


                      (२)

                  पिरामिड

              तुमने खड़ी कर ली हैं , भीमकाय दीवारें
             और क़ैद कर लिया है  खुदको भीतर !
             सभी अहसासों, संवेदनाओं से दूर.....
             'मिस्त्र के फेरो' की भाँती -
              पर .....वे तो अमर होना चाहते थे -
              .....................और तुम !!!!!

              
                  (३)

             आंसू

               आंसू हैं -
               रोक न इन्हें
               टूट के बह जाने दे -
               ठहरे आंसू ...
              नासूरों का घर होते हैं ...!!!



                                                                  
                                        

29 comments:

  1. हर क्षणिकाओं के अपने सपने हैं अपनी उम्मीदें

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  2. सरस बातें पसंद आईं ।।

    बधाई ।।

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  3. तीनो ही क्षणिकायें लाजवाब हैं।

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  4. ठहरे आंसू .नासूरों का घर होते हैं ...!!!...wah

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  5. क्या बात है हर क्षणिका लाजबाब ..

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  6. हर क्षणिका लाजवाब ... पिरामिड सबसे ज्यादा पसंद आई

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  7. बहुत सुंदर.................
    पहली सबसे ज्यादा भायी....
    या शायद आखरी......
    शायद सभी ...........

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  8. अनुपम भाव संयोजन लिए बेहतरीन क्षणिकांए ..

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  9. आंसू हैं -
    रोक न इन्हें
    टूट के बह जाने दे -
    ठहरे आंसू ...
    नासूरों का घर होते हैं ...!!!

    बहुत सुंदर ....


    (भाँती - भाँति )

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  10. वाकई नासूरों के घर होते हैं ठहरे आंसू
    बहुत सुन्दर

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  11. आंसू हैं -
    रोक न इन्हें
    टूट के बह जाने दे -
    ठहरे आंसू ...
    नासूरों का घर होते हैं ...!!
    वाह!!!!!!बहुत सुंदर रचना,अच्छी प्रस्तुति........

    MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: यदि मै तुमसे कहूँ.....

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  12. सभी अपने आप में कुछ न कुछ समेटे हैं गागर में सागर की तरह...

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  13. तुमने खड़ी कर ली हैं , भीमकाय दीवारें
    और क़ैद कर लिया है खुदको भीतर !
    सभी अहसासों, संवेदनाओं से दूर.....
    'मिस्त्र के फेरो' की भाँती -
    पर .....वे तो अमर होना चाहते थे -
    .....................और तुम !!!!!

    अद्भुत क्षणिकाएं...बधाई स्वीकारें

    नीरज

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  14. आंसू हैं -
    रोक न इन्हें
    टूट के बह जाने दे -
    ठहरे आंसू ...
    नासूरों का घर होते हैं ...!! सभी-क्षणिकाएं.बहुत सुन्दर है.. बधाई..सरस जी..

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  15. भावपूर्ण सुंदर क्षणिकाएं !!

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  16. दूसरी क्षणिका बहुत ही अच्छी लगी आंटी!

    सादर

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  17. कल 09/04/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  18. तीनो बहुत ही लाजवाब .. कुछ ही शब्दों में लिखा गहरा एहसास .. लाजवाब ..

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  19. क्षणिकाओं के प्रभाव दीर्घजीवी रहते है ज्योंकि ये पल भर में ह्रदय पर अंकित हो जाती है . सुँदर अवलोकन. आभार

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  20. बहुत ही भावपूर्ण प्रस्तुति । मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।

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  21. सरस जी ...सबसे पहले आपकी मुस्कान बहुत सुंदर है ...!!अब आगे ...आपका लेखन भी एहसासों से भरपूर है ...कुल मिलकर बहुत अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आना ...
    शुभकामनायें ...यु ही लिखती रहें ....!!यूं ही मुस्कुराती रहें ...!!

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  22. तीनो क्षणिकाएं बेहद अर्थपूर्ण. सच है आत्म-मोह में हम सभी जीते है...

    हाँ ....
    मैं नार्सिसिस्सिट हूँ !
    मैंने 'तुम्हारी ' नज़रों में
    'अपने' ' ही अक्स को चाहा हरदम ....!

    शुभकामनाएँ.

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  23. ठहरे आंसू ...
    नासूरों का घर होते हैं ...!!!

    वाह....वाह .......बहुत ही सुन्दर।

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  24. गजब...गहन भाव!! कम शब्दों में..वाह!

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  25. सभी बहुत बढिया क्षणिकाएं हैं ।

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  26. आंसू हैं -
    रोक न इन्हें
    टूट के बह जाने दे -
    ठहरे आंसू ...
    नासूरों का घर होते हैं...

    एक ही शब्द में कहूँ तो "अद्भुत".

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  27. गहन क्षणिकाएं..

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  28. सुंदर क्षणिकाएँ। यह तो बेहद पसंद आई -
    "नार्सिस्सिज्म ( आत्ममोह )

    हाँ ....
    मैं नार्सिसिस्सिट हूँ !
    मैंने 'तुम्हारी ' नज़रों में
    अपने' ' ही अक्स को चाहा हरदम ....!
    वाह सरस जी !

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