(१)
नार्सिस्सिज्म ( आत्ममोह )
हाँ ....
मैं नार्सिसिस्सिट हूँ !
मैंने 'तुम्हारी ' नज़रों में
'अपने' ' ही अक्स को चाहा हरदम ....!
(२)
पिरामिड
तुमने खड़ी कर ली हैं , भीमकाय दीवारें
और क़ैद कर लिया है खुदको भीतर !
सभी अहसासों, संवेदनाओं से दूर.....
'मिस्त्र के फेरो' की भाँती -
पर .....वे तो अमर होना चाहते थे -
.....................और तुम !!!!!
(३)
आंसू
आंसू हैं -
रोक न इन्हें
टूट के बह जाने दे -
ठहरे आंसू ...
नासूरों का घर होते हैं ...!!!
नार्सिस्सिज्म ( आत्ममोह )
हाँ ....
मैं नार्सिसिस्सिट हूँ !
मैंने 'तुम्हारी ' नज़रों में
'अपने' ' ही अक्स को चाहा हरदम ....!
(२)
पिरामिड
तुमने खड़ी कर ली हैं , भीमकाय दीवारें
और क़ैद कर लिया है खुदको भीतर !
सभी अहसासों, संवेदनाओं से दूर.....
'मिस्त्र के फेरो' की भाँती -
पर .....वे तो अमर होना चाहते थे -
.....................और तुम !!!!!
(३)
आंसू
आंसू हैं -
रोक न इन्हें
टूट के बह जाने दे -
ठहरे आंसू ...
नासूरों का घर होते हैं ...!!!
हर क्षणिकाओं के अपने सपने हैं अपनी उम्मीदें
ReplyDeleteसरस बातें पसंद आईं ।।
ReplyDeleteबधाई ।।
तीनो ही क्षणिकायें लाजवाब हैं।
ReplyDeleteठहरे आंसू .नासूरों का घर होते हैं ...!!!...wah
ReplyDeleteक्या बात है हर क्षणिका लाजबाब ..
ReplyDeleteहर क्षणिका लाजवाब ... पिरामिड सबसे ज्यादा पसंद आई
ReplyDeleteबहुत सुंदर.................
ReplyDeleteपहली सबसे ज्यादा भायी....
या शायद आखरी......
शायद सभी ...........
अनुपम भाव संयोजन लिए बेहतरीन क्षणिकांए ..
ReplyDeleteआंसू हैं -
ReplyDeleteरोक न इन्हें
टूट के बह जाने दे -
ठहरे आंसू ...
नासूरों का घर होते हैं ...!!!
बहुत सुंदर ....
(भाँती - भाँति )
वाकई नासूरों के घर होते हैं ठहरे आंसू
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
आंसू हैं -
ReplyDeleteरोक न इन्हें
टूट के बह जाने दे -
ठहरे आंसू ...
नासूरों का घर होते हैं ...!!
वाह!!!!!!बहुत सुंदर रचना,अच्छी प्रस्तुति........
MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: यदि मै तुमसे कहूँ.....
सभी अपने आप में कुछ न कुछ समेटे हैं गागर में सागर की तरह...
ReplyDeleteतुमने खड़ी कर ली हैं , भीमकाय दीवारें
ReplyDeleteऔर क़ैद कर लिया है खुदको भीतर !
सभी अहसासों, संवेदनाओं से दूर.....
'मिस्त्र के फेरो' की भाँती -
पर .....वे तो अमर होना चाहते थे -
.....................और तुम !!!!!
अद्भुत क्षणिकाएं...बधाई स्वीकारें
नीरज
आंसू हैं -
ReplyDeleteरोक न इन्हें
टूट के बह जाने दे -
ठहरे आंसू ...
नासूरों का घर होते हैं ...!! सभी-क्षणिकाएं.बहुत सुन्दर है.. बधाई..सरस जी..
भावपूर्ण सुंदर क्षणिकाएं !!
ReplyDeleteदूसरी क्षणिका बहुत ही अच्छी लगी आंटी!
ReplyDeleteसादर
कल 09/04/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
तीनो बहुत ही लाजवाब .. कुछ ही शब्दों में लिखा गहरा एहसास .. लाजवाब ..
ReplyDeleteक्षणिकाओं के प्रभाव दीर्घजीवी रहते है ज्योंकि ये पल भर में ह्रदय पर अंकित हो जाती है . सुँदर अवलोकन. आभार
ReplyDeleteबहुत ही भावपूर्ण प्रस्तुति । मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
ReplyDeleteसरस जी ...सबसे पहले आपकी मुस्कान बहुत सुंदर है ...!!अब आगे ...आपका लेखन भी एहसासों से भरपूर है ...कुल मिलकर बहुत अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आना ...
ReplyDeleteशुभकामनायें ...यु ही लिखती रहें ....!!यूं ही मुस्कुराती रहें ...!!
तीनो क्षणिकाएं बेहद अर्थपूर्ण. सच है आत्म-मोह में हम सभी जीते है...
ReplyDeleteहाँ ....
मैं नार्सिसिस्सिट हूँ !
मैंने 'तुम्हारी ' नज़रों में
'अपने' ' ही अक्स को चाहा हरदम ....!
शुभकामनाएँ.
ठहरे आंसू ...
ReplyDeleteनासूरों का घर होते हैं ...!!!
वाह....वाह .......बहुत ही सुन्दर।
गजब...गहन भाव!! कम शब्दों में..वाह!
ReplyDeletesahi bahut acche hain...
ReplyDeleteसभी बहुत बढिया क्षणिकाएं हैं ।
ReplyDeleteआंसू हैं -
ReplyDeleteरोक न इन्हें
टूट के बह जाने दे -
ठहरे आंसू ...
नासूरों का घर होते हैं...
एक ही शब्द में कहूँ तो "अद्भुत".
गहन क्षणिकाएं..
ReplyDeleteसुंदर क्षणिकाएँ। यह तो बेहद पसंद आई -
ReplyDelete"नार्सिस्सिज्म ( आत्ममोह )
हाँ ....
मैं नार्सिसिस्सिट हूँ !
मैंने 'तुम्हारी ' नज़रों में
अपने' ' ही अक्स को चाहा हरदम ....!
वाह सरस जी !