बहुत सोचती हो माँ
बेटे के यह शब्द
पुन: उधेड़ देते हैं वह सच
जो ढक मूंदकर रखा था अब तक....
हाँ सोचती हूँ -
हफ़्तों महीनों के बाद मिले उन दिनों को -
जो हमने आज की कल्पना में काटे थे !
सोचती हूँ उन पलों को -
जो हमने -
"बस थोड़ी सी देर और " की ललक में
चुराए थे !
उस छटपटाहट को जो हमारे "कल" में थी
हमारे "आज" के लिए ......
फिर सोचती हूँ वह आज -
जब नींद में छुआ हाथ,
तुम बेरुखिसे खींच लेते हो -
और महसूस होता है उन झरोखों का पट जाना-
जहाँ से एक दूसरे की आत्मा में झांकते थे कभी ....
क्या यही था वह आज !!!!!
.....फिर -
-यह बेरुखी -
-यह अजनबीपन -
-यह बर्फ-
कैसे घुल गयी हमारे रिश्ते में -
-शायद तुम ही बता सको....!!!!!
क्या तब मैं नहीं सोचती थी और आज .... !!!
ReplyDeleteसोचना ....इस सिलसिले से न हम कभी मुक्त हो पाए थे न हो पाएंगे ! यह तो हमारे साथ हर पल जुड़ा है....
Deleteकैसे घुल गयी हमारे रिश्ते में -
ReplyDelete-शायद तुम ही बता सको....!!!!!
its a feeling smoetimes we can express through
our emotions but sometimes it is very difficult
to express in any way.
nice lines and beautiful expression. thanks .
जहाँ से एक दूसरे की आत्मा में झांकते थे कभी ....
ReplyDeleteक्या यही था वह आज !!!!!
भावमय शब्द संयोजन ...
...फिर -
ReplyDelete-यह बेरुखी -
-यह अजनबीपन -
-यह बर्फ-
कैसे घुल गयी हमारे रिश्ते में -
-शायद तुम ही बता सको....!!!!! beautiful expression
................
ReplyDeleteमुझे नहीं लगता तुम भी बता सकते हो............
कुछ बातें अकारण ही होती हैं शायद................या बहुत से कारण होते हो!!!!!
सस्नेह.
..फिर -
ReplyDelete-यह बेरुखी -
-यह अजनबीपन -
-यह बर्फ-
कैसे घुल गयी हमारे रिश्ते में -
-शायद तुम ही बता सको..
उफ़ …………अब क्या कहूँ ?
.....फिर -
ReplyDelete-यह बेरुखी -
-यह अजनबीपन -
-यह बर्फ-
कैसे घुल गयी हमारे रिश्ते में -
-शायद तुम ही बता सको....!!!!
वाह!!!!बहुत सुंदर प्रस्तुति,..,..
MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: गजल.....
ये 'सोच' हम पर किस क़दर हावी है कभी लगता है की हम 'सोचते' हैं या हम सिर्फ 'सोच' मात्र ही हैं......बेहतरीन पोस्ट है कहीं कुछ बहुत नाज़ुक सा होता है रिश्तों के दरमियाँ वो चटक कर टूटता है तो लाख जोड़ने पर भी कसक नहीं जा पाती ।
ReplyDeleteकश्मकश और अंतर्द्वंद
ReplyDeleteबेहतरीन
behad umda!
ReplyDeletehmesha ki tarah behad khubsurat rachna
ReplyDeletehmesha ki tarah behad khubsurat rachna
ReplyDeleteह्र्दय से निकले भावों को सुंदर शब्दों में उकेरने के लिए बधाई सरस जी !
ReplyDeleteप्रवाहमयी...अति सुन्दर रचना..
ReplyDeleteWonderful worth remembering.Pasts are the days.......and this is passing.....
ReplyDeleteमाँ तो माँ है ...उस में बदलाव की संभावना नहीं होती ...
ReplyDeleteखूबसूरत अहसास ...